अबूझ पर्व दशहरा पर शुभ योग बना रहे हैं ग्रह
दशमी तिथि मुहूर्त
दशमी तिथि 1 अक्तूबर, बुधवार की शाम 7 बजकर 2 मिनट से शुरू हो रही है, जो 2 अक्तूबर की शाम 7 बजकर 10 मिनट पर समाप्त होगी। उदया तिथि के आधार पर दशहरा 2 अक्तूबर, गुरुवार को मनाया जाएगा।
शस्त्र पूजा मुहूर्त
2 अक्तूबर, गुरुवार की दोपहर 2 बजकर 9 मिनट से 2 बजकर 56 मिनट तक।
अपराह्न पूजा मुहूर्त
2 अक्तूबर, गुरुवार की दोपहर 1 बजकर 21 मिनट से 3 बजकर 44 मिनट तक।
रावण दहन मुहूर्त
2 अक्तूबर, गुरुवार को शाम के लगभग 6 बजकर 5 मिनट के बाद अर्थात प्रदोष काल में किया जाएगा।
शुभ योग
- पूरे दिन रवि योग रहेगा।
- रात 11 बजकर 28 मिनट से 12 बजकर 34 बजे तक सुकर्म योग होगा। उसके बाद धृति योग का प्रभाव रहेगा।
विशेष– दशहरा तिथि को अबूझ मुहूर्त भी माना जाता है, इसलिए इस दिन बिना किसी विशेष मुहूर्त देखे शुभ कार्य, जैसे- व्यापार की शुरुआत, प्रॉपर्टी या वाहन आदि खरीदना जा सकता है।
दशहरा हिंदू धर्म में एक अत्यंत महत्वपूर्ण त्योहार माना जाता है, जिसे बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। इसे हर साल आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाने की परंपरा है। इस दिन भगवान राम ने रावण का वध करके माता सीता को मुक्त किया था, इसलिए इसे धर्म और न्याय की विजय का पर्व भी कहा जाता है।
देशभर में इस दिन रावण, कुंभकरण और मेघनाद के पुतलों का दहन बड़े उत्साह और धूमधाम के साथ किया जाता है। यह पर्व मां दुर्गा और महिषासुर के युद्ध की भी याद दिलाता है, जिसे विजयादशमी के नाम से भी जाना जाता है। लोग इस दिन शुभ मुहूर्त के अनुसार रावण दहन करते हैं और अपने घर तथा जीवन में खुशहाली और सकारात्मक ऊर्जा की कामना करते हैं।
धार्मिक महत्व
दशहरा का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व अत्यंत व्यापक है। यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत और धर्म की रक्षा का प्रतीक माना जाता है। पूर्वी भारत में दशहरा दुर्गा पूजा और दुर्गा विसर्जन के रूप में मनाया जाता है। यहां यह पर्व माता दुर्गा के महिषासुर वध और उसके विजयी स्वरूप का उत्सव होता है।
पूरे नौ दिनों तक चलने वाले इस उत्सव में दुर्गा की पूजा, विशेष आराधना और विधिवत अनुष्ठान किए जाते हैं और अंत में विसर्जन के समय नदी या तालाब में देवी की मूर्ति का विसर्जन किया जाता है।
वहीं उत्तर भारत में दशहरा रामलीला और रावण दहन के रूप में प्रमुखता से मनाया जाता है। इस दिन भगवान राम द्वारा रावण का वध कर माता सीता को मुक्त कराने की कथा को याद किया जाता है। शहर-शहर रावण, कुंभकरण और मेघनाथ के पुतलों का दहन किया जाता है।
यह आयोजन न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक रूप से भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह सामूहिक रूप से बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश देता है और लोगों में नैतिक मूल्यों, साहस और सामूहिक सद्भावना को बढ़ावा देता है। इस प्रकार दशहरा न केवल धार्मिक आस्था का उत्सव है, बल्कि संस्कृति और परंपराओं के माध्यम से जीवन में नैतिकता और सकारात्मक ऊर्जा लाने वाला त्योहार भी है।
दशहरा पूजा विधि
दशहरे के दिन सुबह दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर गेहूं या चूने से दशहरे की प्रतिमा बनाएं। गाय के गोबर से 9 छोटे गोले और 2 कटोरियां बनाएं। एक कटोरी में सिक्के रखें और दूसरी में रोली, चावल, जौ और फल रखें।
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इस प्रतिमा को केले, जौ, गुड़ और मूली अर्पित करें। इस दिन दान-दक्षिणा दें और जरूरतमंदों को भोजन कराएं। पूजा समाप्त होने के बाद घर के बड़ों के पैर छूकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करें।
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