मुठभेड़ के बाद की गई कानूनी कार्रवाई पर रिपोर्ट तलब

हैदराबाद, तेलंगाना उच्च न्यायालय ने मुलुगु ज़िले के एटूनागारम मंडल के पूलाकोम्मा आदिवासी इलाके में नक्सली मुठभेड़ के बाद की गई कानूनी कार्रवाई के संबंध में लिखित रूप में रिपोर्ट पेश करने के पुलिस को आदेश दिए। इस मुठभेड़ में 7 नक्सलियों के मारे जाने की घटना को लेकर दायर याचिका पर आज उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जस्टिस बी. विजयसेन रेड्डी ने सुनवाई की।

न्यायाधीश ने मारे गए नक्सलियों के शव के साथ क्या किया गया और घटनास्थल से नक्सलियों के शव पोस्टमॉर्टम के लिए ले जाने तक कानून के तहत किस प्रावधानों का पालन किया गया, इसका भी उल्लेख करते हुए लिखित रूप में रिपोर्ट पेश करने के अंतरिम आदेश जारी किए। इसके साथ ही याचिकाकर्ता आइलम्मा के पति के शव को आगे की सुनवाई तक सुरक्षित रखने के एटूनागारम पुलिस को आदेश दिए। शेष 6 नक्सलियों के शव उनके रिश्तेदारों को सौंपने के भी आदेश जारी किए गए। इस आदेश के साथ मामले की सुनवाई 5 दिसंबर तक स्थगित कर दी गई।

इस मुठभेड़ में मारे गए नक्सली की पत्नी आइलम्मा ने पुलिस पर आरोप लगाते हुए कि मुठभेड़ से पूर्व नक्सलियों को नशीला भोजन दिया गया और भोजन के बाद नक्सलियों के नशे में आने के साथ ही उनका फर्जी मुठभेड़ किया गया, इस आरोप के साथ याचिका दायर की। सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से सरकारी अधिवक्ता महेशराज ने दलील देते हुए बताया कि नक्सलियों के शवों का पोस्टमॉर्टम पूर्ण हो चुका है और पोस्टमॉर्टम के समय याचिकाकर्ता भी उपस्थित थी। पोस्टमॉर्टम की वीडियो रिकॉर्डिंग की गई और इसकी रिपोर्ट आनी है। इस परिस्थिति में शवों को अस्पताल में रखने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि नक्सलियों के रिश्तेदार शव सौंपने का आग्रह कर रहे हैं। याचिकाकर्ता को उसके पति का शव देखने की भी अनुमति दी गई।

इस दौरान न्यायाधीश ने हस्तक्षेप कर कहा कि नक्सलियों के शवों का पोस्टमॉर्टम योग्य डॉक्टरों द्वारा किया गया है, और क्या बाकी रहा, यह सवाल याचिकाकर्ता के अधिवक्ता से किया। 9 फोरेंसिक विशेषज्ञ डॉक्टरों द्वारा पोस्टमॉर्टम किया गया, तब दुबारा से पोस्टमॉर्टम करने की क्या आवश्यकता है। इस पर याचिकाकर्ता के अधिवक्ता सुरेश कुमार ने दलील देते हुए बताया कि याचिकाकर्ता के पति के शरीर पर बुलेट और एसिड डालने के घाव है, जो इस बात को दर्शाता है कि यह मुठभेड़ फर्जी है। पुलिस ने मुठभेड़ के बाद भी कानून का उल्लंघन किया है। पोस्टमॉर्टम के लिए एनक्वेस्ट की कार्रवाई पुलिस को नहीं, बल्कि एग्जीक्यूटिव मेजिस्ट्रेट को मृतक नक्सलियों के रिश्तेदारों के समक्ष की जानी चाहिए। पुलिस ने इस नियम का उल्लंघन किया है। किस हथियार का मुठभेड़ में उपयोग किया गया, इसे लेकर भी कई संदेह है, जिन्हें रिश्तेदारों के समक्ष सुलझाना चाहिए। एनक्वेस्ट के समय उपलब्ध रहने के लिए याचिकाकर्ता ने ई-मेल से पुलिस को जानकारी दी, लेकिन पुलिस ने इस ई-मेल पर कोई प्रतिक्रिया नहीं जताई। जब मुठभेड़ फर्जी नहीं है, तब पुलिस इतनी हड़ाउड़ी क्यों कर रही है। इस पर सरकारी अधिवक्ता ने प्रतिवाद करते हुए कहा कि काकतिया मेडिकल कॉलेज के 9 फोरेंसिक विशेषज्ञ डॉक्टरों द्वारा पोस्टमॉर्टम किया गया और इस दौरान राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के दिशा-निर्देशों का पालन किया गया। पोस्टमॉर्टम के समय याचिकाकर्ता भी उपस्थित थी।

आगे अधिवक्ता ने कहा कि एटूनागारम में शव सुरक्षित रखने के लिए फ्रीजर उपलब्ध नहीं है और शवों की सुरक्षा के लिए सावधानी नहीं बरती जा रही है, यह सब अवास्तविक है। याचिकाकर्ता की माँग के अनुसार, पुलिस ने हर कार्रवाई की है। रिश्तेदारों द्वारा शव सौंपने की माँग की जा रही है, ऐसी स्थिति में शवों को वरंगल के अस्पताल भेजना अनुचित है। इस पर न्यायाधीश ने याचिकाकर्ता से सवाल करते हुए कहा कि शवों को कब तक सुरक्षित रखा जा सकता है। इसके संबंध में आदेश नहीं दिए जा सकते। ऐसी स्थिति में कानून व्यवस्था की समस्या उत्पन्न हो सकती है, इस पर याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने बताया कि इसके पूर्व इस प्रकार की घटना में शवों का पुन पोस्टमॉर्टम किया गया और कई बार वरंगल के एमजीएम अस्पताल में शव सुरक्षित भी रखे गए। उन्होंने कहा कि पुलिस की कार्रवाई पर उन्हें संदेह है।

इसीलिए वे पुन पोस्टमॉर्टम की माँग कर रहे हैं। इस पर न्यायाधीश ने कहा कि 9 फोरेंसिक विशेषज्ञ डॉक्टरों द्वारा पोस्टमॉर्टम करने के बाद दुबारा पोस्टमॉर्टम करने के आदेश नहीं दिए जा सकते। इस विवाद का कहीं न कहीं निपटारा करना ही है। दोनों पक्ष यदि सहमत होते हैं, तो शवों की समीक्षा के लिए एक अधिवक्ता को नियमित किया जा सकता है। इस पर याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने पोस्टमॉर्टम की रिपोर्ट आने तक याचिकाकर्ता के पति के शव को सुरक्षित रखने के आदेश देने का आग्रह किया, इस दौरान प्रतियाचिका दायर करने के पुलिस को आदेश देने का भी आग्रह किया। इस पर स्वीकृति जताते हुए न्यायाधीश ने याचिकाकर्ता के पति के शव को सुरक्षित रखने और पुलिस को प्रतियाचिका दायर करने के आदेश जारी किए।

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