महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024 और यूपी उपचुनावों में भाजपा ने जबरदस्त प्रदर्शन करते हुए अपनी जीत का परचम लहराया है। झारखंड में उसे वैसी सफलता नहीं मिली। फिलहाल बात महाराष्ट्र की, जहाँ भाजपा के नेतृत्व वाले महायुति गठबंधन ने (यह टिप्पणी लिखे जाने तक) 223 सीटों पर बढ़त बना ली है। इन नतीजों ने भाजपा की रणनीतिक क्षमता और राजनीतिक चतुराई को एक बार फिर से साबित कर दिया।
सयाने याद दिला रहे हैं कि कुछ माह पूर्व हुए लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र की 48 में से 30 सीटों पर महाविकास अघाड़ी (एमवीए) की जीत ने भाजपा को बुरी तरह भूलुंठित किया था। लेकिन वह हार पार्टी को सतर्क भी कर गई। पार्टी ने अपनी रणनीतियों को बदला और योगी आदित्यनाथ तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रचार का चेहरा बनाया। यह कदम सिर्फ चुनावी प्रचार नहीं, बल्कि वोटरों के ध्रुवीकरण की सोची-समझी योजना थी।
भाजपा की अप्रत्याशित बढ़त का श्रेय शिवसेना और एनसीपी में विभाजन को भी जाता है। एकनाथ शिंदे ने शिवसेना के परंपरागत वोट बैंक को महायुति में जोड़ने में सफलता पाई। इसी तरह अजित पवार ने एनसीपी के समर्थकों को भाजपा की तरफ खींचा। इन दोनों गुटों के सहयोग से गठबंधन की ताकत बढ़ी और यह महाविकास अघाड़ी पर भारी पड़ा।
योगी आदित्यनाथ का बँटेंगे तो कटेंगे नारा और मोदी का एक हैं तो सेफ हैं संदेश प्रभावी रहे। महाराष्ट्र में पहले इस तरह की ध्रुवीकरण वाली राजनीति सीमित थी, लेकिन अब यह ट्रेंड बदलता दिखा। पारंपरिक रूप से भाजपा का मजबूत आधार रहे हिंदुत्व के मुद्दे ने इस बार महाराष्ट्र में भी गहरी पैठ बनाई।
लोकसभा चुनाव के दौरान शिथिल दिखे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने, पिछली नाराज़गी को किनारे धर कर, महाराष्ट्र चुनावों में पूरी ताकत झोंक दी। जमीनी स्तर पर आरएसएस कार्यकर्ताओं की सािढयता और उनकी सोची-समझी रणनीतियों ने महायुति की जीत को सुनिश्चित किया।
लाडली बहना योजना ने महिला मतदाताओं को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मध्यप्रदेश में सफलता के बाद इस योजना को महाराष्ट्र में लागू किया गया, जिससे महायुति को अतिरिक्त समर्थन मिला। महिलाओं के बैंक खातों में हर महीने 1500 रुपये भेजने की यह पहल ग्रामीण और शहरी, दोनों वर्गों में लोकप्रिय रही।
दूसरी तरफ, महाविकास अघाड़ी महँगाई, बेरोजगारी और मराठा आरक्षण जैसे मुद्दों को भुनाने में विफल रही। ख़ासतौर पर मराठा आरक्षण का मुद्दा, जो महाराष्ट्र की राजनीति में केंद्रीय भूमिका निभाता है, महाविकास अघाड़ी के पक्ष में जनसमर्थन जुटाने में नाकाम रहा। वहीं, महँगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दे ध्रुवीकरण और कल्याणकारी योजनाओं के सामने फीके पड़ गए।
कांग्रेस का संविधान बचाओ अभियान महाराष्ट्र में अपेक्षित प्रभाव नहीं डाल सका। लोकसभा चुनावों में इस नारे को मिली सफलता के बावजूद विधानसभा चुनावों में यह असरहीन रहा। जनता का ध्यान संविधान से जुड़े आदर्शवादी मुद्दों से हटकर हिंदुत्व और ध्रुवीकरण की ओर चला गया।
महाविकास अघाड़ी सोयाबीन की एमएसपी, बेरोजगारी और मराठा आरक्षण जैसे मुद्दों को लेकर राज्य सरकार को घेरने की कोशिश करती रही। लेकिन ये मुद्दे जनता के मतों को प्रभावित करने में विफल रहे। मतदाताओं ने इनके बजाय भाजपा की योजनाओं और संगठित प्रचार तंत्र को तरजीह दी।
यह चुनाव न केवल भाजपा/महायुति की सफलता की कहानी कहता है, बल्कि महाराष्ट्र की राजनीति में एक नए ट्रेंड की शुरूआत का सूचक भी है। जहाँ पहले मराठा और क्षेत्रीय मुद्दे हावी रहते थे, अब हिंदुत्व और ध्रुवीकरण जैसे राष्ट्रीय मुद्दों ने प्राथमिकता ले ली है। साथ ही, महाराष्ट्र में भाजपा का पुनरुत्थान चुनावी सफलता भर नहीं है, बल्कि यह पार्टी की रणनीतिक क्षमता, संगठित कार्यशैली और कल्याणकारी नीतियों के कुशल प्रबंधन का प्रमाण है।