संत एकनाथ ने प्यासे गधे को पिलाया गंगाजल

संत एकनाथ अपनी आध्यात्मिक शक्ति के अलावा लोगों को जागृत करने के लिए भी प्रसिद्ध हैं। वह जात-पात व अंधविश्वास के विरोधी थे। उनका मानना था कि परमात्मा सब जगह विद्यमान हैं। गृहस्थ भी बिना किसी कर्मकांड के आध्यात्मिक मार्ग पर अग्रसर हो सकता है। यहाँ उनके जीवन का एक प्रसंग प्रस्तुत है।

संत एकनाथ ने एक बार हरिद्वार से गंगाजल से भरी कांवड़ उठाकर रामेश्वर में चढ़ाने का संकल्प किया। रास्ता बहुत लंबा था। बीच मार्ग में एक निर्जन और सूखा क्षेत्र पड़ा। दूर-दूर तक जल का कोई स्रोत दिखाई नहीं दे रहा था। साथ लाया जल भी खत्म हो गया था। सभी कांवड़िये अगले गाँव पहुँचने की जल्दी में थे।

गंगाजल से गधे की सेवा: संत एकनाथ की करुणा की अद्भुत मिसाल

रास्ते में सभी की दृष्टि एक गधे पर पड़ी। वह प्यास से तड़प रहा था, लेकिन किसी ने भी उसकी पीड़ा की ओर ध्यान नहीं दिया और सबके सब आगे बढ़ गये। एकनाथ सहसा रुक गये। उनका मानना था कि सभी प्राणी परमात्मा का रूप हैं तो उस गधे को प्यास से तड़पता देखकर आगे कैसे बढ़ सकते हैं। उन्होंने अपनी काँवड़ को काँधे से उतारकर भूमि पर रखा और पूरा गंगाजल उस गधे को पिला दिया।

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जल पीते ही गधे के शरीर में ऊर्जा आ गई। वह उठ खड़ा हुआ। यह देखकर एकनाथ की आँखों में अश्रु आ गए। वह हाथ जोड़कर गद्गद् कंठ से बोले, देवाधिदेव! इस अकिंचन का श्रम सार्थक हुआ। आपने जल ग्रहण करके इस भक्त का मान रख लिया। उन्हें गधे को काँवड़ का गंगाजल पिलाते देखकर उनके कुछ साथी हंसने लगे तो कुछ इस कृत्य को पाप की श्रेणी का बताने लगे।

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एकनाथ तो अपनी मन की करने वालों में से थे। वह कहने लगे, महादेव इस गधे की प्यास मिटने से अवश्य प्रसन्न हो रहे होंगे।
कहने का अर्थ है कि पूजा-पाठ तथा अन्य अनुष्ठान करना चाहिए। इससे मन में एकाग्रता आती है, परमात्मा का सान्निध्य मिलने की संभावना रहती है, किन्तु उससे पहले असहाय और मजबूर जीवों की सहायता करना मानव का प्रथम कर्त्तव्य है।

-पवन गुरु

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