लेने से नहीं, देने से मिलती है संतुष्टि

प्रवचन

किसी ने सच ही कहा है- लालच बुरी बला है, जो कितनी भी कोशिश करने पर पीछा नहीं छोड़ती। जिस तरह इंसान जीवन भर डर और ईर्ष्या जैसे रोगों से निजात पाने की जद्दोजहद करता है, ठीक उसी तरह वह लालच से भी मुक्ति पाने के चरम प्रयासों में अपनी जिंदगी लगा देता है, किन्तु अंत में उसकी वह कोशिश नाकाम ही सिद्ध होती है।

इंसान यह भूल जाता है कि लालच को साधने में उसका सारा जीवन जैसे बीत जाता है, वैसे ही उसकी उम्र बीत जाती है, पर लालच नहीं जाता। इसका अर्थ है कि हम सभी जीवनभर लालची रहते हैं, नहीं! उम्र के हर दौर में लालच हमारे अंदर भिन्न भिन्न रूप से आता रहता है। कभी प्रबल रूप में तो कभी अति सूक्ष्म रूप में, परन्तु वह हम सभी के भीतर मरते दम तक रहता अवश्य है।

वर्षों पूर्व एक विज्ञापन बना था, जिसकी टैगलाइन थी- ये दिल मांगे मोर। उसका भावार्थ था कि हम जीवन में चाहे कितना कुछ भी प्राप्त कर लें, लेकिन उससे कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि हमारे दिल को और पाने की चाहना रहती है। यह सिद्धांत वर्तमान परिदृश्य में काफी अच्छी तरह से फिट बैठता है। हम सभी को सारे दिन में कुछ न कुछ चाहिए कि लालसा लगी रहती है, फिर चाहे वह बड़ा घर हो, बैंक-बैलेंस में बढ़ोतरी की इच्छा हो, बड़ी गाडी हो, कपड़ों का बड़ी अल्मारी हो, बड़ा पीन वाला टीवी या मोबाइल फोन आदि कभी न ख़त्म होने वाली सूचि है, जो हमारी मृत्यु तक हमारे मन में बनती ही रहेगी।

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उदारता ही सच्ची संतुष्टि का मार्ग

अमूमन हम सभी की चाहना कोई हर बार पूरी नहीं हो पाती है। इतनी सारी इच्छाएं पूरी करने के लिए अपेक्षाकृत काफी कम संख्या में साधन उपलब्ध होते हैं, जिसके परिणाम स्वरूप मन की उलझन और बढ़ जाती है। ऐसे हालातों में इस समस्या से कैसे निपटा जाए? अपनी सारी इच्छाओं को झट से पूरा करके? क्या इससे यह समस्या सुलझ जाएगी? शायद नहीं! क्योंकि चीजों की इच्छाएं पूरी होने के बाद हमारे भीतर फिर से अन्य इच्छाएं जैसे कि दूसरों से मान, शान, प्यार, स्नेह पाने की अपेक्षाएं आाक्रमक तरीके से जाग्रत हो जाएँगी।

मान लीजिए, यह सब अपेक्षाएं भी हमारी पूर्ण हो जाती हैं, तो क्या हम आंतरिक रूप से संतुष्टता महसूस करेंगे? यदि हाँ, तो कितने समय के लिए? इसका उत्तर है- बहुत ही कम अवधि के लिए। तो क्या ये पा ऐसे ही चलता रहेगा? लालच की इस बला से हमें कभी भी छुटकारा नहीं मिल पाएगा? क्यों नहीं! निश्चित रूप से मिलेगा इसका इलाज! इसके लिए सर्वप्रथम हमें वह सभी अल्पकालीन एवं भौतिकतावादी चीजों से परे जाना होगा, जो केवल सीमित अवधि के लिए हमें खुशी प्रदान करती है।

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राजयोगी ब्रह्माकुमार निकुंज

इसके साथ-साथ हमें तृष्णा, लालच और लोभ से मुक्ति पाने के लिए उससे विपरीत मार्ग का अनुसरण करना होगा, जी हाँ! हमें अपने अंदर उदारता का गुण धारण करना होगा। याद रखें! देने में जो सुख है, वह लेने में नहीं है। अत जो भी आपके पास है, ख़ुशी, मुस्कुराहट, अपनापन, वह सब खुले दिल से दूसरों में बांटो फिर देखो। आप अंदर से कितनी ख़ुशी और संतुष्टता का अनुभव करोगे। आज से उदार दिल बनकर बस देते जाओ, देते जाओ और बदले में अपने भीतर भरपूरा व संतुष्टता पाते जाओ।

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