शेख हसीना का पलायन : भारतीय परिप्रेक्ष्य
पड़ोसी राष्ट्र बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के अचानक अपने पद से इस्तीफ़ा देने और देश से भाग निकलने को दक्षिण एशियाई राजनीति में एक निर्णायक मोड़ कहा जा सकता है। इस पूरे घटनाचक्र का भारत पर गहरा असर पड़ेगा। बांग्लादेश में यह उथल-पुथल पिछले कुछ दिनों से जारी व्यापक विरोध प्रदर्शनों से पैदा हुई, जिसका नेतृत्व मुख्य रूप से छात्रों ने किया, जो उस विवादास्पद नौकरी कोटा प्रणाली की बहाली के ख़िलाफ़ आंदोलन कर रहे थे, जिसमें 30 प्रतिशत सरकारी नौकरियाँ स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों के लिए आरक्षित थीं।
इसके पीछे और कौन-सी देशी-विदेशी ताक़तें थीं, यह तो भविष्य बताएगा। लेकिन फिलहाल यह स्पष्ट है कि उच्च न्यायालय के फैसले द्वारा पुनः लागू किए गए आरक्षण ने उच्च बेरोजगारी दरों और योग्यता-आधारित अवसरों की कथित कमी का सामना कर रहे युवाओं में निराशा को भड़काया। विरोध प्रदर्शन जल्दी ही प्रधानमंत्री शेख हसीना के कथित बेलगाम सत्तावादी शासन और चुनाव धाँधली के ख़िलाफ़ एक व्यापक आंदोलन में बदल गया, जिसका समापन उनके इस्तीफ़े और देश से पलायन के साथ हुआ।
भारत के लिए, बांग्लादेश की यह उथल-पुथल चुनौतियाँ और अवसर, दोनों प्रस्तुत करती है। भारत और बांग्लादेश के बीच गहरे ऐतिहासिक संबंध, आार्थिक साझेदारी और एक जटिल भू-राजनीतिक परिदृश्य है। भारत के लिए तत्काल चिंता अपने पड़ोसी राज्य में स्थिरता सुनिश्चित करना है, क्योंकि अशांति सीमाओं से आगे बढ़ सकती है और क्षेत्रीय सुरक्षा को प्रभावित कर सकती है। शरणाार्थियों की आमद, संभावित चरमपंथी गतिविधियाँ और व्यापार में व्यवधान ऐसे महत्वपूर्ण मुद्दे हैं, जिनका भारत को तुरंत समाधान करना चाहिए।
भारत ने ऐतिहासिक रूप से अवामी लीग और शेख हसीना का समर्थन किया है, उनकी सरकार को इस्लामी चरमपंथ के ख़िलाफ़ एक विश्वसनीय सहयोगी के रूप में देखा है। उनके जाने के बाद, द्विपक्षीय संबंधों के भविष्य को लेकर अनिश्चितता स्वाभाविक है, क्योंकि वर्तमान हालात को देखते हुए यह नहीं लगता कि वहाँ भारत के लिए अनुकूल सरकार सत्ता में आने वाली है। फिलहाल तो वहाँ बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) सहित उन विपक्षी दलों का दबदबा बढ़ने के आसार हैं, जो भारत के प्रभाव की आलोचना करते रहे हैं।
दूसरी ओर, संकट के प्रति भारत की प्रतिक्रिया क्षेत्रीय शत्ति के रूप में उसकी छवि को आकार दे सकती है। शांतिपूर्ण समाधान की वकालत करके और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं का समर्थन करके, भारत लोकतांत्रिक मूल्यों और मानवाधिकारों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को मजबूत कर सकता है। इस क्षेत्र में भारत के रणनीतिक हित, जिसमें इसकी कनेक्टिविटी परियोजनाएँ और आार्थिक निवेश शामिल हैं, बांग्लादेश में स्थिरता पर निर्भर हैं। इसलिए, भारत को बांग्लादेश में सभी राजनीतिक हितधारकों के साथ बातचीत और तालमेल को बढ़ावा देना चाहिए और हिंसा को हतोत्साहित करना चाहिए।
इसके अलावा, यह स्थिति भारत को बांग्लादेश के भीतर अपनी नीतियों, ख़ासकर तीस्ता नदी के पानी के बँटवारे और सीमा प्रबंधन जैसे मुद्दों के बारे में चिंताओं को दूर करने का मौका देती है। अधिक सहानुभूतिपूर्ण और सहयोगात्मक दृष्टिकोण भारत की सॉफ्ट पावर को मजबूत कर सकता है और बांग्लादेशी जनता के बीच सद्भावना को बढ़ावा दे सकता है। लेकिन यह आसान नहीं होगा, क्योंकि चीन और पाकिस्तान का समर्थन करने वाले तत्व इसमें बाधक बनेंगे।
निष्कर्षतः, शेख हसीना का सत्ता से बेदखल होना भारत के लिए एक जटिल परिदृश्य प्रस्तुत करता है। हालाँकि इसके साथ कई संभावित जोखिम जुड़े हैं, लेकिन यह भारत को शांतिपूर्ण परिवर्तन सुनिश्चित करने और बांग्लादेश के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने में रचनात्मक भूमिका निभाने का अवसर भी प्रदान करता है। आने वाले हफ़्तों में भारत की गतिविधियाँ इस द्विपक्षीय संबंध के भविष्य को आकार देने और क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखने में अहम होंगी।