चुप्प! कनाडा सुन लेगा…
हाल ही में यह खुलासा हुआ है कि कनाडा ने ऑस्ट्रेलिया के ऑस्ट्रेलिया टुडे को भारतीय विदेश-मंत्री एस. जयशंकर की ऑस्ट्रेलियाई विदेश-मंत्री पेनी वोंग के साथ संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस की रिपोर्टिंग प्रसारित करने से रोक दिया है। इसे कनाडा की मुक्त भाषण और मीडिया की स्वतंत्रता को कतरने तथा कूटनीतिक रिश्तों को खराब करने वाली हरकत कहा जाना ठीक ही है। ग़ौरतलब है कि भारतीय विदेश-मंत्री की ऑस्ट्रेलिया यात्रा के दौरान आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस भारत-ऑस्ट्रेलिया द्विपक्षीय संबंधों, ख़ासकर सुरक्षा सहयोग और हिंद-प्रशांत मुद्दों के संदर्भ में महत्वपूर्ण थी। कहना न होगा कि अप्रत्याशित मीडिया ब्लैकआउट ने कनाडा के भारत के साथ पहले से ही तनावपूर्ण रिश्तों पर काली छाया डाली है। इससे कनाडा की मंशा और उसके व्यापक कूटनीतिक रुख पर संदेह होना स्वाभाविक है।
विडंबना देखिए कि यह वही कनाडा है, जो लंबे समय से स्वतंत्र भाषण और प्रेस स्वतंत्रता का मसीहा होने का दावा करता आया है। ऑस्ट्रेलिया टुडे पर अचानक सेंसरशिप कनाडा के अपने सिद्धांतों और उसके द्वारा वकालत किए जाने वाले वैश्विक मानदंडों के विपरीत है। मीडिया प्रसारणों पर अंकुश लगाने की यह घटना कनाडा के पाखंड को उजागर करने के लिए तो काफी है ही, साथ ही यह भी संदेश देती है कि वह वोट की राजनीति के लिए खालिस्तानी चरमपंथियों के पोषण का दोषी है! अन्यथा भारत के विदेश-मंत्री के बयान से इस तरह क्यों बौखलाता?
भारत और कनाडा के बीच चल रहे राजनयिक तनावों को देखते हुए, विशेष रूप से खालिस्तानी कार्यकर्ता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या पर राजनयिक विवाद के बाद, यह संभव है कि कनाडा ने प्रेस कवरेज को संभावित रूप से भड़काऊ या अपने कथन के प्रतिकूल माना हो। लेकिन उसे प्रतिबंधित करना तो अभिव्यक्ति की आज़ादी पर कुठाराघात ही है न? क्या कनाडा की जनता अपनी सरकार की इस तानाशाही करतूत को आम बात मानकर नज़रअंदाज़ कर देगी? यदि ऐसा होता है, तो इसे लोकतंत्र की दुनिया के लिए शुभ समाचार नहीं माना जा सकता।
भारत के लिए, यह घटना कनाडा के साथ उसके पहले से ही तनावपूर्ण रिश्तों को और जटिल बनाएगी। प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो द्वारा निज्जर की मौत में भारत की संलिप्तता के आरोपों के बाद से दोनों देशों के बीच कूटनीतिक रिश्ते तनावपूर्ण चल रहे हैं। कनाडा सरकार द्वारा एक ऑस्ट्रेलियाई आउटलेट को भारतीय मंत्री की प्रेस कॉन्फ्रेंस को प्रसारित करने से रोकने के कदम ने आग में घी डालने का काम किया है। यह अवरोध भारत की वैश्विक कूटनीति के प्रति कनाडा की बढ़ती बेचैनी को भी उजागर करता है, जो क्वाड और हिंद-प्रशांत रणनीति जैसे मंचों पर जोर पकड़ रही है। शायद कनाडा इस कारण भी असहज हो कि ये ऐसे मंच हैं, जहाँ भारत के साथ ऑस्ट्रेलिया महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
दूसरी ओर, इस घटना से ऑस्ट्रेलिया के लिए एक नाजुक कूटनीतिक स्थिति पैदा हो गई लगती है। याद रहे कि ऑस्ट्रेलिया के भारत और कनाडा, दोनों के साथ मजबूत और बढ़ते रिश्ते हैं। वह अपने एक मीडिया आउटलेट पर प्रतिबंध को कूटनीतिक अपमान के रूप में देख सकता है। लेकिन समझा जाता है कि इसके लिए वह कनाडा के साथ रिश्ते बिगड़ना नहीं चाहेगा। बेशक, एक गाँठ तो पड़ ही गई है।
अंतत इतना और कि, भारतीय कूटनीति पर रिपोर्टिंग करने वाले विदेशी मीडिया आउटलेट को सेंसर करके, कनाडा ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय में खुद को अलग-थलग करने का जोखिम उठाया है। उसे शायद ही बुद्धिमत्तापूर्ण कहा जा सके! यही नहीं, यह घटना कनाडा के अपने विदेशी संबंधों को सँभालने में एक बड़ी समस्या की ओर इशारा करती है, जिससे वैश्विक मंच पर कनाडा की विश्वसनीयता को नुकसान ही पहुँचेगा।