चिंता बढ़ा रहे हैं स्ट्रीट डॉग के हमले

हैदराबाद, हयातनगर में दो दिन पूर्व आठ वर्षीय प्रेमचंद नाम के एक लड़के पर कुत्तों ने हमला कर दिया था। कल युसूफगुड़ा के लक्ष्मी नरसिंम्हा नगर में मनवीत नंदन नाम का दो साल का लड़का कुत्तों के हमले में घायल हो गया। ऐसी घटनाओं से बच्चों के माता-पिता परेशान हैं। बच्चों से लेकर महिलाओं और बुजुर्गों तक आवारा व सड़क छाप कुत्तों का शिकार हो रहे है। आवारा कुत्तों को नियंत्रित करने में जीएचएमसी कुछ खास नहीं कर पा रहा है। हर साल करोड़ों रुपये खर्च करने के बावजूद कुत्तों के काटने के मामले कम नहीं हो रहे हैं।

ऐसा लगता है कि कुत्तों की नसबंदी की प्रक्रिया सिर्फ कागजी कार्रवाई तक सीमित होकर रह गयी है। आवारा कुत्तों को नियंत्रित करने के संदर्भ में जीएचएमसी द्वारा कोर्ट के आदेशों को नजरअंदाज किया जा रहा है। लगातार कहीं न कहीं लोग कुत्तों के काटने का शिकार हो रहे हैं। नारायणगुडा में स्थित आईपीएम (इंस्टीट्यूट ऑफ प्रिवेंटिव मेडिसिन) में प्रति दिन कुत्तों के काटने के सौ से ज्यादा पीड़ितों की लाइन लगी हुई है। यह दिखाता है कि कुत्तों का खतरा कितना बढ़ गया है। ध्यान देने वाली बात यह है कि अकेले आईपीएम में इस वर्ष अब तक 33,765 लोग कुत्तों के काटने के नये मामले आए हैं।

जीएचएमसी की लापरवाही से 4 लाख स्ट्रीट डॉग्स पर नियंत्रण फेल

60,440 और लोगों का इलाज हो चुका है। इस मामले में रिकॉर्ड बताते हैं कि एक साल में 94,000 से ज़्यादा लोगों को कुत्तों ने काटा है। इससे स्पष्ट है कि जीएचएमसी ने आवारा कुत्तों पर नियंत्रण के कार्यों को हवा में छोड़ दिया गया है। आवारा कुत्तों के नियंत्रण के तहत खास तौर पर आवारा कुत्तों के लिए एबीसी (एंटी बर्थ कंट्रोल ऑपरेशन) के अलावा, जीएचएमसी रेबीज के टीके लगाने में लापरवाही बरत रहा है। जीएचएमसी एबीसी ऑपरेशन बढ़ाने के लिए तीनों ज़ोन में एनिमल केयर सेंटर बनाने में भी लापरवाही बरत रही है।

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हालांकि, डॉक्टरों का कहना है कि होटलों और घरों का कचरा सड़कों के किनारे फेंका जाता है और ये कुत्ते उसे खाने के लिए लोगों पर हमला कर रहे हैं। अधिकारियों का कहना है कि जीएचएमसी की परिधि में करीब 4 लाख आवारा कुत्ते हैं। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि इनमें से 70 प्रतिशत कुत्तों की नसबंदी नहीं की गई है। हर साल आवारा जानवरों पर कंट्रोल’ हेड के तहत कुत्तों पर कंट्रोल के लिए फंड दिया जाता है। अधिकारियों का कहना है कि नसबंदी, वैक्सीनेशन, जागरूकता प्रोग्राम और दूसरे जानवरों की भलाई के प्रोग्राम पर पांच साल में 40 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं।

स्ट्रीट डॉग्स नियंत्रण में जीएचएमसी की लापरवाही और करोड़ों का खर्च

एनिमल बर्थ कंट्रोल (एबीसी) और एंटी-रेबीज (एआर) प्रोग्राम पर करोड़ों रुपये खर्च किए गए हैं। हालांकि, सरकारी आंकड़े बताते हैं कि 70 प्रतिशत कुत्तों का ऑपरेशन नहीं हुआ है। एक कुकटपल्ली जोन में पांच साल के समय में 8.50 करोड़ रुपये दिए गए थे, लेकिन 6.95 करोड़ रुपये खर्च हुए। स्ट्रीट डॉग्स से जुड़ी 50,000 से ज़्यादा शिकायतें हैं। सरकारी रिकॉर्ड साफ करते हैं कि एक कुकटपल्ली जोन में 4,000 से ज्यादा शिकायतें प्राप्त हुई हैं। कोर्ट के आदेश के बावजूद जीएचएमसी के इलाके में कितने स्ट्रीट डॉग हैं, इसका सही आंकड़ा अधिकारियों के पास नहीं है। इसका कारण यह है कि सर्वे नहीं किया गया है।

वर्ष 2023 में ब्लू क्रॉस की देखरेख में किए गए रिकॉर्ड के अनुसार, आवारा कुत्तों की आबादी लगभग 4 लाख होने की बात कही गई है, लेकिन इसका कोई सही रिकॉर्ड नहीं हैं। इसके अलावा, पब्लिक एसोसिएशन के नेताओं और कई पार्टियों के नेताओं का कहना है कि स्ट्रीट डॉग कंट्रोल और वैक्सीनेशन के नाम पर वॉलंटरी ऑर्गेनाइजेशन को करोड़ों रुपये दिए जा रहे हैं, लेकिन ये काम नहीं कर रहे हैं। इसके अलावा स्ट्रीट डॉग पर सुप्रीम कोर्ट के दिए गए आदेशों को लागू नहीं किया जा रहा है। जानवरों को एनिमल शेल्टर तक पहुंचाने में अधिकारियों की लापरवाही की कड़ी आलोचना हो रही है।

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