तेलंगाना उच्च न्यायालय ने रद्द कीं ग्रुप-1 परीक्षा संबंधी याचिकाएँ
हैदराबाद, तेलंगाना उच्च न्यायालय ने गत फरवरी माह के दौरान ग्रुप-1 परीक्षा के आयोजन को लेकर जारी अधिसूचना में हस्तक्षेप करने से साफ इनकार दिया। ग्रुप-1 अधिसूचना दिव्यांग आरक्षण से संबंधित सरकारी आदेश संख्या 29 को चुनौती देते हुए दायर याचिकाओं को खारिज करने का अदालत ने फैसला सुनाया।
दिव्यांग आरक्षण से संबंधित नियमों में सुधार लाने हेतु वर्ष 2018 के दौरान जारी सरकारी आदेश संख्या 10, वर्ष 2019 में जारी सरकारी आदेश संख्या 96 और हाल ही में जारी सरकारी आदेश संख्या 29 को चुनौती देते हुए 7 याचिकाएँ दायर की गई थी। इन याचिकाओं पर सुनवाई के बाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जस्टिस सुजय पाल और जस्टिस जी. राधा रानी की खण्डपीठ ने आज अपना फैसला सुनाते हुए इन्हें खारिज कर दिया। खण्डपीठ ने बताया कि अधिसूचना जारी होने और इसके संबंध में अदालत की शरण लेने में काफी लम्बा समय होने को अनुचित बताया और कहा कि देरी होने के कारणों का खुलासा भी नहीं किया गया। खण्डपीठ ने कहा कि इसके पूर्व याचिकाकर्ताओं और सरकार की दलील सुनने के पश्चात वर्ष 2022 के दौरान अधिसूचना के आधार पर संपन्न प्राथमिक परीक्षा को रद्द कर दिया गया। इस कारण गत 19 फरवरी को 563 पदों के संबंध में अधिसूचना जारी की गई। गत 7 जुलाई को अंतिम की (कुंजी) जारी की गई। मेरिट लिस्ट जारी होने के बाद याचिकाकर्ताओं द्वारा अदालत की शरण लेने को अनुचित ठहराया।
खण्डपीठ ने बताया कि सरकारी आदेश संख्या 29 के सरकार के आधिकारिक वेबसाइट पर अपलोड न किए जाने के कारण देरी होने की याचिकाकर्ता की दलील को भी अनुचित बताया। गत 19 फरवरी को अधिसूचना जारी होने के बाद सूचना प्राप्त करने के अधिकार के तहत सरकारी आदेश की प्रति प्राप्त करने के लिए याचिकाकर्ताओं की ओर से प्रयास नहीं किया गया। इसे भी खण्डपीठ ने गलत करार दिया।
खण्डपीठ ने याचिकाकर्ता को याद दिलाया कि पूर्व अधिसूचना के आधार पर परीक्षा आयोजित करने से संबंधित याचिका को विगत में ही अदालत ने खारिज कर दिया था। इसीलिए प्राथमिक परीक्षा रद्द करने के बाद पुरानी अधिसूचना के आधार पर परीक्षा का आयोजन करना भी अनुचित है। इसी कारण याचिकाकर्ताओं की याचिकाओं को खारिज किया जा रहा है। इसके अलावा खण्डपीठ ने बताया कि फैसले के अनुसार वेब नोट, डी-कोडिंग वेबसाइट से संबंधित विषयों पर अदालत हस्तक्षेप नहीं करेगी। इसके संबंध में किसी प्रकार की कोई आपत्ति हो, तब बाद के परिणामों के आधार पर याचिकाकर्ता अदालत की शरण ले सकते हैं।