तेलंगाना हाईकोर्ट : आरोप-पत्र दायर करने में देरी पर फटकार

हैदराबाद, तेलंगाना उच्च न्यायालय ने जयशंकर भूपालपल्ली ज़िले की भूपालपल्ली पुलिस थाने में भारास के पूर्व विधायक गंड्रा वेंकटरमणा रेड्डी, गंड्रा ज्योति, गंड्रा गौतम रेड्डी के खिलाफ दर्ज मामलों को लेकर जाँच-पड़ताल गंभीरता से न करने और आरोप-पत्र दायर करने में देरी को लेकर कड़ी नाराजगी जाहिर की। जनवरी में एफआईआर दर्ज होने के बावजूद वर्तमान समय तक भी आरोप-पत्र दायर न करने के कारण अदालत ने पुलिस को जमकर फटकार लगाई।

कोमपल्ली के गोरेंट्ला तालाब की शिखम भूमि पर अवैध रूप से निर्मित किए जा रहे मंदिर के लिए ज़िलाधीश द्वारा निधियाँ मंजूर करने पर भी अदालत ने सवाल उठाते हुए गुस्सा जाहिर किया। अदालत ने सवाल किया कि किस अधिकार के साथ निधियाँ मंजूर की गई। अदालत ने चेताते हुए कहा कि यदि यही रवैया रहा, तो तालाब भूमि पर कई प्रकार के निर्माण हो सकते हैं।

अदालत ने याचिका वापस लेने की अनुमति देने से किया इनकार

अदालत के फटकारे जाने पर याचिकाकर्ता की ओर से याचिका वापस लेने के लिए अधिवक्ता ने अनुमति देने का आग्रह किया, लेकिन अदालत ने उनके आग्रह को अस्वीकार कर दिया। सर्वे नं. 209 में दो एकड़ तालाब से संबंधित शिखम भूमि में अधिकारियों को डरा-धमकाकर वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर और वाणिज्य संबंधी निर्माण कार्य को लेकर निजी व्यक्तियों द्वारा दी गई शिकायत पर दर्ज मामले को खारिज करने का आग्रह करते हुए भारास के पूर्व विधायक गंड्रा वेंकटरमणा रेड्डी और उनके परिवार ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की, जिस पर उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जस्टिस जूकंटी अनिल कुमार ने सुनवाई की।

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता ने दलील देते हुए बताया कि शिकायत करने वाले व्यक्ति का निधन हो गया है और मामले की जाँच-पड़ताल भी पूरी नहीं हुई है। पुलिस की ओर से अतिरिक्त सरकारी अधिवक्ता ने दलील देते हुए बताया कि पुलिस मामले की छानबीन कर रही है, अधिकारियों की ओर से दस्तावेज प्राप्त न होने के कारण आरोप-पत्र दायर करने में देरी हो रही है।

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ज़िलाधीश की भूमिका और 25 करोड़ मंजूरी पर अदालत के तीखे सवाल

इस पर हस्तक्षेप कर न्यायाधीश ने सवाल किया कि इस मामले में ज़िलाधीश की भूमिका भी है और दस्तावेज कब तक प्राप्त हो सकते हैं। न्यायाधीश ने कहा कि अधिकारी दस्तावेज नहीं देते हैं, तब अदालत से आदेश कैसे प्राप्त किए जा सकते हैं। यही व्यवहार यदि कोई सामान्य व्यक्ति करता है, तो इसके परिणाम कितने तीव्र हो सकते हैं। अदालत ने सवाल किया कि ज़िला मिनरल फाउंडेशन ट्रस्ट से 25 करोड़ रुपये विधायक के कहने पर कैसे मंजूर किए जा सकते हैं।

यह कोई प्राचीन और पौराणिक मंदिर नहीं है और इस मामले को ऐसे ही छोड़ दिया गया, तो तालाब भूमि पर और कोई निर्माण कार्य प्रारंभ कर सकता है। न्यायाधीश ने फटकारते हुए कहा कि 90 दिन के भीतर आरोप-पत्र दायर करने के नियम का इस मामले में पालन क्यों नहीं किया गया।

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इस दौरान याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता ने कहा कि यह नियम जमानत मंजूर करने से संबंधित है न कि जाँच-पड़ताल को लेकर यह नियम बनाया गया। इस पर असंतोष जताते हुए न्यायाधीश ने कहा कि इस प्रकार कौन से कानून में क्या कहा गया है, यह कहने की आवश्यकता नहीं है। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता ने पुन हस्तक्षेप कर याचिका वापस लेने की अनुमति देने का आग्रह किया, लेकिन न्यायाधीश ने अनुमति देने से इनकार करते हुए मामले की सुनवाई 18 नवंबर तक स्थगित कर दी।

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