टेनिस खिलाड़ी राधिका की हत्या : समाज की सोच में बदलाव जरूरी
यहां सवाल यह भी उठता है कि क्या जनरेशन गैप के कारण समाज में ऐसी घटनाएं जन्म ले रही हैं अथवा इसके पीछे कोई अन्य कारण हैं? यह ठीक है कि अलग-अलग पीढ़ियों के लोगों के बीच सोच, मूल्यों, व्यवहार और दृष्टिकोणों में अंतर पाया जाता है, लेकिन जरूरत इस बात की है कि दोनों ही पीढ़ियां (बुजुर्ग और युवा) एक-दूसरे के दृष्टिकोण, व्यवहार और मूल्यों को समझें।
हाल ही में हरियाणा के गुरुग्राम में नेशनल लेवल की टेनिस खिलाड़ी राधिका यादव (25 वर्ष) की उसके ही पिता द्वारा गोली मारकर हत्या कर दी गई, वास्तव में यह बहुत ही दुखद और त्रासद है। अब यहां सवाल उठता है कि यह मामला ऑनर किलिंग का है या इसके पीछे बात कुछ और थी? जो भी हो निर्मम हत्या की खबर ने हर किसी को झकझोर के रख दिया है। राधिका यादव की घटना के अलावा इधर नारनौंद उपमंडल के गांव बास के एक निजी स्कूल संचालक पर भी दो छात्रों ने हमला कर दिया, जहां इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई, यह बहुत ही दुखद है।
उपलब्ध जानकारी के अनुसार गुरुवार गुरू पूर्णिमा के दिन, नारनौंद के एक स्कूल के दो छात्रों ने स्कूल संचालक पर चाकू से हमला कर दिया था, जहां एक निजी अस्पताल में इलाज के दौरान स्कूल संचालक की मौत हो गई तथा हमले के बाद दोनों आरोपी छात्र मौके से फरार हो गए। दोनों ही घटनाओं में रिश्तों और आत्मीय अहसासों का कत्ल हुआ है। यह बहुत ही दुखद है कि आज हमारे समाज में रिश्ते तार-तार होते चले जा रहे हैं और रिश्तों में एक घुटन पैदा हो चुकी है।
जनरेशन गैप और टूटते रिश्तों की सामाजिक पीड़ा
यह ठीक है कि समय के साथ आज मनुष्य की जरूरतें, इच्छाएं और प्राथमिकताएं बदलीं हैं, शादी, बच्चे, नौकरी, या किसी अन्य शहर में रिहाइश से रिश्तों में आमूलचूल परिवर्तन आएं हैं। पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव भी हमारे रिश्तों-नातों पर कहीं न कहीं अवश्य पड़ा है। एकल परिवार भी एक बड़ा कारण है, लेकिन रिश्तों को निभाने के लिए आपसी संवाद, विश्वास, भरोसा एक-दूसरे की भावनाओं और जरूरतों को समझने के साथ ही साथ एक-दूसरे के लिए समय निकालने, तथा जब कोई समस्या या परेशानी आती है, तो उसे नज़रअंदाज़ करने के बजाय, एक-दूसरे के साथ मिलकर उसका समाधान खोजने का प्रयास करने की आवश्यकता होती है।
गुरूग्राम और नारनौंद में जो घटना हुई है, इन घटनाओं ने हर किसी के मन और आत्मा को विचलित किया है कि आखिर क्यों ऐसी घटनाएं हमारे समाज में घटित हो रहीं हैं ? आज हममें न सहनशीलता रही है और न ही धैर्य और संयम। हम छोटी-छोटी या यूं कहें कि ज़रा-जरा सी बातों को अपने इगो (अहम्) का हिस्सा बना लेते हैं और क्रोध या तैश में आकर ऐसा कुछ कर बैठते हैं कि फिर पश्चाताप के अलावा हमारे पास करने को कुछ शेष नहीं बचता है।
आज आए दिन मीडिया की सुर्खियों में हम रिश्तों के कत्ल की खबरें पढ़ते-सुनते हैं, यह दर्शाता है कि आज हमारा समाज एक ग़लत दिशा में और अनैतिकता की ओर बढ़ रहा है। बहरहाल, यहां सवाल यह भी उठता है कि क्या जनरेशन गैप के कारण समाज में ऐसी घटनाएं जन्म ले रही हैं अथवा इसके पीछे कोई अन्य कारण हैं? यह ठीक है कि अलग-अलग पीढ़ियों के लोगों के बीच सोच, मूल्यों, व्यवहार और दृष्टिकोणों में अंतर पाया जाता है, लेकिन जरूरत इस बात की है कि दोनों ही पीढ़ियां (बुजुर्ग और युवा) एक-दूसरे के दृष्टिकोण, व्यवहार और मूल्यों को समझें।
राधिका की हत्या: पीढ़ियों के टकराव की त्रासदी
यह ठीक है कि युवा पीढ़ी निर्णयों में बुजुर्गों की तुलना में कुछ ज्यादा उतावली व आक्रामक होती है, लेकिन बुजुर्गों का यह दायित्व बनता है कि वे युवा पीढ़ी का नैतिक व सही मार्गदर्शन करें, उन्हें समझाएं-बुझाएं। जानकारी के अनुसार राधिका सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर बनना चाहतीं थी, उनकी हत्या से खेल जगत गमगीन है। दो साल पहले लगी चोट के कारण टेनिस में कॅरियर बनाने से दूर रहने के बाद, राधिका सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर बनने की ख्वाहिश रखती थीं और वह अक्सर इंस्टाग्राम पर रील बनाकर अपलोड करती थीं।
दीपक अपनी बेटी की सोशल मीडिया पर मौजूदगी से नाराज था। उसने उसे रील डिलीट करने को भी कहा था। जानकारी के अनुसार दीपक अपनी बेटी के टेनिस अकादमी चलाने, उसके बढ़ते कद और आर्थिक आजादी से भी खुश नहीं था। दीपक ने पुलिस के सामने यह कबूल किया है कि गांव वालों के तानों ने उसके गुस्से को और भड़का दिया, जो यह कहते थे कि वह अपनी बेटी की कमाई पर पल रहा है।
गौरतलब है कि राधिका ने विभिन्न टेनिस टूर्नामेंटों में हरियाणा और देश का प्रतिनिधित्व किया था और कई पदक और पुरस्कार जीते थे। विभिन्न समाचार-पत्रों में गुरुग्राम में राज्य स्तरीय टेनिस खिलाड़ी की हत्या की वजह उसके रील बनाने का जुनून बताया गया है, तो अन्य पत्रों में बेटी द्वारा टेनिस अकादमी खोलने से पिता का नाराज होना बताया गया है, लेकिन वास्तव में ये कोई ऐसी वजह नहीं है कि पिता ही अपने ही जिगर के टुकड़े को गोली मार दे। जाहिर है विवाद व टकराव की लंबी पृष्ठभूमि रही होगी।
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पीढ़ियों की टकराहट और नैतिकता का संकट
बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि आज हमारे सामाजिक परिवेश में लगातार बदलाव आ रहें हैं। नई पीढ़ी की स्वच्छंदता व स्वतंत्रता और अपने बड़े फैसले स्वयं लेने की प्रवृत्ति बुजुर्ग पीढ़ी को रास नहीं आ रही है, जिसका प्रतिकार या यूं कहें कि विरोध वे हिंसक तरीके से करने लगे हैं। वहीं नारनौंद में हुई घटना हमें आक्रामक होते किशोरों की हकीकत पर विचार करने को बाध्य करती है।
कहा जा रहा है कि प्रिंसिपल सख्त और बेहद अनुशासनप्रिय थे, लेकिन ये वजह किसी शिक्षक की हत्या को तार्किकता नहीं दे सकती। अनुशासनप्रिय होना अच्छी बात है, लेकिन यह बहुत ही दुखद है कि आज की युवा पीढ़ी अनुशासन में कम ही रहना चाहती है। पहले के जमाने में तो शिक्षा अध्यापक केंद्रित थी और अनुशासन तोड़ने पर छात्रों की पिटाई आम बात हुआ करती थी, लेकिन आज की शिक्षा छात्र केंद्रित हो गई है।
इसका यह मतलब तो नहीं है कि छात्र अपनी मनमर्जी से किसी भी तरह का व्यवहार करें। छात्रों को संयम व धैर्य रखते हुए नैतिकता व अच्छे स्वभाव का परिचय देना चाहिए। बहरहाल, गुरूग्राम की घटना के संदर्भ में राधिका के पिता ने बेटी को तब गोली मारी, जब वह रसोई बना रही थी, तथा उस दिन उसकी मां का जन्मदिन भी था। इस संदर्भ में जांच-पड़ताल लगातार जारी है, तथा पुलिस हर कोण से पूछताछ कर रही है।
बेटियों को समान अधिकार और सम्मान दें
पिता ने हत्या की बात कुबूल ली है और उसके शुरुआती जवाब से यही लगता है कि कथित सम्मान के नाम पर हत्या हुई है। राधिका वर्सेटाइल जीनियस(बहुआयामी प्रतिभा) थी और जाहिर है, उसे जीनियस बनाने में उसके पिता का बड़ा हाथ था। ऐसे में यहां सवाल यह उठता है कि क्या राधिका के पिता से राधिका की ख्याति, तरक्की और उसकी आत्मनिर्भरता देखी नहीं गई? राधिका अपनी टेनिस अकादमी के अलावा, सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर बनकर सोशल मीडिया से भी कमाई कर रही थी।
वह अपने पिता या परिवार पर किसी भी तरह से बोझ नहीं थी, तो फिर आखिर क्यों उसका पिता ही अपनी ही बेटी का दुश्मन हो गया?अगर पिता ने यह बताया है कि लोग उसे बेटी की कमाई खाने वाला बताकर अपमानित करते थे, तो यह बहुत ही शर्मनाक और निंदनीय बात है। बहरहाल, कहना चाहूंगा कि आज बेटियाँ हर क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर देश का नाम रोशन कर रही हैं और वे बोझ नहीं हैं बल्कि हमारे समाज, हमारे देश का अभिमान हैं।

यह बहुत ही दुखद है कि आज भी बेटियों को समाज में बेटों के समान स्थान प्राप्त नहीं है। हमें जरूरत इस बात की है कि हम समाज की बेटियों के प्रति इस मानसिक सोच को बदलें, इसमें परिवर्तन लाएं। आज जरूरत इस बात की है कि हमारे समाज में नये बदलावों को स्वीकार करें और अपनी युवा पीढ़ी के साथ सामंजस्य बिठाते हुए आगे बढ़ें।
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