महिला क्रिकेट का स्वर्णिम विहान
क्रिकेट के मैदान पर एक नया सवेरा हुआ है। भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने आईसीसी महिला विश्व कप 2025 का खिताब जीतकर इतिहास रच दिया है। फाइनल में साउथ अफ्रीका को रोमांचक मुकाबले में हराकर कप कब्जा करने वाली यह जीत न केवल एक खेल उपलब्धि है, बल्कि लाखों भारतीय महिलाओं के सपनों को पंख लगाने वाली घटना है। कप्तान हरमनप्रीत कौर की अगुवाई में स्मृति मंधाना, शेफाली वर्मा, दीप्ति शर्मा, ऋचा घोष और अमनजोत कौर जैसी खिलाड़ियों ने जो जज्बा दिखाया, वह पूरे देश को गौरवान्वित करता है। यह जीत सिर्फ 11 खिलाड़ियों की नहीं, बल्कि पूरे राष्ट्र की है। यह विजय नारी शक्ति का प्रतीक है, जो पुरुष क्रिकेट के दबदबे को चुनौती देती है।
इस विश्व कप का सफर आसान नहीं था। भारत ने लीग चरण से लेकर नॉकआउट तक कड़ी मेहनत की। सेमीफाइनल में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ रिकॉर्डतोड़ स्कोर बनाकर टीम ने साबित कर दिया कि वह सर्वश्रेष्ठ है। फाइनल में साउथ अफ्रीका की मजबूत गेंदबाजी के सामने स्मृति मंधाना की शतकीय पारी और हरमनप्रीत की आक्रामक कप्तानी ने मैच का रुख मोड़ दिया। दीप्ति शर्मा की स्पिन ने प्रतिद्वंद्वी को धराशायी कर दिया। यह जीत 1983 के पुरुष विश्व कप की याद दिलाती है। लेकिन इसमें एक खास अंतर है। यह महिलाओं की जीत है, जो लंबे समय से उपेक्षित रही हैं!
महिला क्रिकेट की उपेक्षा और सामाजिक पूर्वाग्रह
सवाल है कि, महिला क्रिकेट इतनी उपेक्षित क्यों रही? उत्तर जटिल है; और जड़ें गहरी। सबसे बड़ा कारण है हमारे सांस्कृतिक पूर्वाग्रह। भारतीय समाज में क्रिकेट को पुरुषों का खेल माना जाता रहा है। मीडिया कवरेज की कमी इसका प्रमाण है। टेलीविजन चैनल पुरुष आईपीएल पर करोड़ों खर्च करते हैं, लेकिन महिला लीग को सीमित दर्शक मिलते हैं। बीसीसीआई का निवेश भी असमान है।
पुरुषों के लिए स्टेडियम भरे रहते हैं, जबकि महिलाओं के लिए हर स्तर पर सुविधाएँ अपर्याप्त हैं। लड़कियाँ मैदान पर आती हैं, लेकिन परिवार और समाज का दबाव उन्हें घर की ओर मोड़ देता है। सयानों की मानें तो, महिला क्रिकेट में भाग लेने वाली खिलाड़ियों की संख्या पुरुषों की तुलना में 70 प्रतिशत कम है। वैश्विक स्तर पर भी, महिला क्रिकेट को प्रायोजक कम मिलते हैं, क्योंकि कॉर्पोरेट दुनिया इसे कम लाभकारी मानती है। कहना न होगा कि यह उपेक्षा न केवल खेल को प्रभावित करती है, बल्कि लैंगिक समानता के सिद्धांत को भी ध्वस्त करती है।
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महिला क्रिकेट की जीत से बदलाव की नई सुबह
बेशक, इस विश्व कप जीत से स्थिति में बदलाव की किरणें दिख रही हैं। यह उपलब्धि एक मील का पत्थर साबित हो सकती है। उम्मीद की जानी चाहिए कि यह जीत अनेक बालिकाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगी। स्कूलों में क्रिकेट कोचिंग सेंटर बढ़ेंगे और ग्रामीण क्षेत्रों में लड़कियों की भागीदारी दोगुनी हो सकेगी। सरकार और बीसीसीआई को अब मजबूरन ध्यान देना पड़ेगा। पिछले वर्षों में महिला प्रीमियर लीग (डब्ल्यूपीएल) को बढ़ावा मिला, लेकिन अब इसे पुरुष आईपीएल जितना वित्तीय समर्थन मिलना चाहिए। प्रायोजकों को भी आकर्षित होना पड़ेगा।
विजेता टीम की ब्रांड वैल्यू बढ़ जाएगी न! वैश्विक स्तर पर, यह जीत आईसीसी को महिला क्रिकेट के लिए अधिक फंड आवंटित करने के लिए प्रेरित करेगी। भारत जैसे देश में, जहाँ क्रिकेट की पूजा होती है, यह जीत लैंगिक समानता की बहस को नई ऊँचाई देगी। राजनीतिक नेता भी इसे भुनाएँगे। लेकिन बात तो तब है जब नीतियाँ बदलें। क्या खेल मंत्रालय महिला खेलों के लिए अलग बजट लाएगा? और हाँ, मीडिया को भी जिम्मेदार बनना होगा।
महिलाओं को हेडलाइन में जगह मिले, न सिर्फ पुरुषों की छाया में! अंत में, यह जीत सिर्फ एक ट्रॉफी नहीं, बल्कि एक स्वर्णिम विहान है। अब समाज, सरकार और खेल संस्थाओं की बारी है। उपेक्षा को इतिहास का हिस्सा बनाएँ; और समर्थन को भविष्य का आधार!
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