मनुष्य का शरीर पिंजरे के समान : जयश्रीजी

हैदराबाद, जिस प्रकार पिंजरे में बंद पंछी एक दिन उड़ जाता है, उसी तरह जब मनुष्य अपनी आयुष्य की डोर समाप्त करेगा, तब यह पिंजरा रूपी शरीर रिक्त हो जाएगा। पंछी की तरह जब आत्मा शरीर से निकल जाएगी, फिर उस खाली निर्जीव मनुष्य रूपी पिंजरे का कोई अर्थ नहीं रहता।

उतक्त उद्गार श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ ग्रेटर हैदराबाद के तत्वावधान में काचीगुड़ा स्थित श्री पूनम चंद गांधी जैन स्थानक में चातुमासिक धर्म सभा को संबोधित करते हुए साध्वी जयश्रीजी म.सा. आदि ठाणा-3 ने व्यक्त किये। संघ के कार्याध्यक्ष विनोद कीमती द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, म.सा. ने कहा कि ज्ञानी जन कहते हैं कि पिंजरे से आत्मा रूपी पंछी उड़े, उससे पहले जागृत हो जाना चाहिए। अपने आत्म देव की पहचान कर उससे संबंध जोड़ लेना चाहिए।

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जन्म-मरण और आत्मा की पहचान का महत्व

मनुष्य का सबसे बड़ा दुख उसका जन्म है और जन्म होने से ही मनुष्य संसार में नाना प्रकार के दुःख, कष्ट, कठिनाइयों का सामना करता है। का दुःख भी जन्म होने के कारण मिलता है। मरण का भय और रण का भय और चिता का कारण भी जन्म ही है।

साध्वी राजश्रीजी म.सा. ने कहा कि जीवन में तप, त्याग, साधना को अपनाने का अवसर हमारे सामने पर्व के रूप में हैं। जन्म-मरण के चक्कर को मिटाने के लिए त्याग का पर्व हमारे सामने उपस्थित हो रहा है। अभी तक हमारी दौड़ बाहर की तरफ लगी हुई है, इस कारण खुद की पहचान नहीं हो पा रही है। जिस दिन खुद की पहचान व्यक्ति कर लेगा, फिर वह खुदा बनने से वंचित नहीं रह पाएगा।

धर्म सभा का संचालन करते हुए संघ के सह कोषाध्यक्ष अशोक चाणोदिया ने बताया कि आज के नवकार महामंत्र जाप वे लाभार्थी परिवार दौलतराज, अजयराज, भाव्य धारीवाल हैं। नवपद ओली की आराधना गतिमान है। आयंबिल की व्यवस्था संघ के तत्वावधान में सुचारू रूप से जारी है।

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