आत्मघाती न हो ग़ाज़ा पर कब्ज़े की ज़िद!
हाल की खबरों के अनुसार, इजराइल अब ग़ाज़ा सिटी पर पूर्ण नियंत्रण की योजना पर काम कर रहा है। इसमें लाखों फिलिस्तीनियों को दक्षिणी क्षेत्रों में विस्थापित करना और शहर को सैन्य रूप से नियंत्रित करना शामिल है। यह अभियान न केवल क्षेत्रीय भू-राजनीति को प्रभावित कर रहा है, बल्कि बंधकों की सुरक्षा के लिए भी गंभीर खतरे पैदा कर रहा है। याद रहे कि 7 अक्टूबर, 2023 को इजराइल पर हमास के आतंकी हमले में लगभग 1200 लोग मारे गए थे। फलत इजराइल-हमास युद्ध भड़क उठा था।
इस दौरान इजराइल ने ग़ाज़ा पट्टी में हमास के खिलाफ व्यापक सैन्य अभियान शुरू किया, जिसका लक्ष्य हमास को जड़ से उखाड़ना और बंधकों की रिहाई सुनिश्चित करना है। दरअसल, हमास को खत्म करना इजराइल का प्राथमिक उद्देश्य है, जिसे वह अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा मानता है। ग़ाज़ा सिटी हमास का गढ़ और उसके नेतृत्व और सैन्य ठिकानों का केंद्र है। इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने बार-बार कहा है कि जब तक हमास का विनाश और बंधकों की रिहाई नहीं हो जाती, सैन्य कार्रवाई जारी रहेगी। इसके अलावा, यह अभियान हमास पर संघर्षविराम की वार्ता में दबाव डालने की रणनीति भी हो सकता है।
ग़ाज़ा नियंत्रण: मानवीय संकट और बंधकों का खतरा
सयाने बता रहे हैं कि ग़ाज़ा सिटी पर इजराइली नियंत्रण के मानवीय और भू-राजनैतिक परिणाम गंभीर हो सकते हैं। ग़ाज़ा में पहले ही 96 प्रतिशत आबादी खाद्य असुरक्षा का सामना कर रही है और 45,553 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं। लाखों लोगों का विस्थापन और बुनियादी ढाँचे का विनाश मानवीय संकट को और गहरा सकता है। भू-राजनैतिक रूप से, यह अभियान ईरान और हिजबुल्लाह जैसे हमास के समर्थकों के साथ तनाव बढ़ा सकता है।
इजराइल को यह नहीं भूलना चाहिए कि ग़ाज़ा सिटी पर सैन्य कार्रवाई बंधकों की सुरक्षा के लिए गंभीर जोखिम भी पैदा करती है। हमास ने बंधकों को सुरंगों और घनी आबादी वाले क्षेत्रों में रखा है, जहाँ हवाई और जमीनी हमले अनजाने में उनकी जान ले सकते हैं। 2024 में छह बंधकों के शव मिलने की घटना ने इस खतरे को उजागर किया। हमास बंधकों को मनोवैज्ञानिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करता है। उन्हें भूखों मारा और प्रताड़ित किया जाता है।
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ग़ाज़ा कब्ज़ा: बंधकों और मानवीय संकट की चुनौतियाँ
भय है कि इजराइल की नई कार्रवाई में वे भी मारे जा सकते हैं। या कि चरम हताशा से ग्रसित होकर हमास उनकी हत्या कर सकता है। ये दोनों ही स्थितियाँ इजराइल के लिए आत्मघाती और अवांछनीय होंगी। वैसे भी नेतन्याहू अब तक बंधकों को न छुड़ा पाने के कारण अयोग्य होने का लांछन तो झेल ही रहे हैं! जगज़ाहिर है कि ग़ाज़ा में भयावह मानवीय स्थिति – भोजन, पानी और, चिकित्सा सुविधाओं की कमी – बंधकों की स्थिति को भी तो दिनोंदिन बदतर बनाती जा रही है।
ऐसे में इजराइल सैन्य दबाव और बातचीत के बीच फँसा है। सैन्य कार्रवाई बंधकों को खतरे में डालती है, जबकि हमास के साथ समझौता आतंकी समूह को मजबूत कर सकता है! इधर कुआँ, उधर खाई! फलत ग़ाज़ा सिटी पर कब्ज़े की इजराइली ज़िद से कई आशंकाएँ उभर रही हैं। पहली, ग़ाज़ा में मानवीय संकट और गहरा सकता है, जिसमें 20,000 बच्चे गंभीर कुपोषण का शिकार हैं।
दूसरी, क्षेत्रीय अस्थिरता बढ़ने की आशंका है, क्योंकि ईरान और इजराइल के बीच तनाव पहले ही चरम पर है। तीसरी, बंधकों की सुरक्षा को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है, क्योंकि हमास ने रिहाई में देरी की है। इसमें संदेह नहीं कि इजराइल का यह कदम हमास के प्रति शून्य सहिष्णुता का स्पष्ट संदेश देता है। लेकिन, अंतरराष्ट्रीय समुदाय, विशेष रूप से मुस्लिम देशों, को यह अस्वीकार्य होगा। वे तो इसे नरसंहार करार दे रहे हैं! इजराइल की दीर्घकालिक रणनीति ग़ाज़ा के पुनर्गठन की ओर इशारा करती है, लेकिन बंधकों की सुरक्षा और मानवीय संकट इसके रास्ते में सबसे बड़ी बाधाएँ हैं।
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