विषाक्त कूटनीति के सूत्रधार!
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र महासभा में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप के भाषण ने दुनिया को चौंका दिया। उन्होंने यूएन को शांति स्थापना में नाकाम करार दिया, नाटो सहयोगियों को अपनी बर्बादी का कारण बताया और जलवायु परिवर्तन को धोखा कहकर खारिज किया। ऐसे बयानों के आलोक में यह कहना शायद ही ग़लत हो कि राष्ट्रपति ट्रंप वैश्विक रिश्तों में ऩफरत का जहर घोलकर विश्व व्यवस्था को दूषित कर रहे हैं!
दरअसल पिछले कुछ महीनों में राष्ट्रपति ट्रंप एक के बाद एक ऐसे अहंकारपूर्ण बयान देते रहे हैं, जो वैश्विक रिश्तों के वातावरण में विद्वेष की हवा चलाने के बराबर हैं। उनकी अमेरिका फर्स्ट नीति कहीं न कहीं वैश्विक मंचों को कमजोर कर रही है। संयुक्त राष्ट्र में उन्होंने यूरोपीय देशों को अनियंत्रित प्रवास के लिए कोसा और कहा, तुम्हारे देश नरक की ओर जा रहे हैं। यह बयान शरणार्थी संकट जैसी मानवीय समस्याओं को नज़रअंदाज़ करता है और सहयोगियों के बीच दरार पैदा कर सकता है।
ट्रंप की बयानबाज़ी और वैश्विक व्यवस्था पर असर
जलवायु परिवर्तन को हवा के पंखों का धोखा कहकर ट्रंप महोदय पर्यावरणीय समझौतों को ठुकराया, जो पेरिस समझौते से (उनके पहले कार्यकाल में) बाहर निकलने की याद दिलाता है। भारत जैसे विकासशील देशों के लिए यह चिंताजनक है, क्योंकि हमारी अर्थव्यवस्था कृषि और जल संसाधनों पर निर्भर है। ट्रंप का रुख वैश्विक कार्बन उत्सर्जन कटौती को बाधित करता है।
उनके बयान – जैसे चीन को आर्थिक चोर और रूस को यूक्रेन युद्ध में मजबूत कहना – नफ़रत फैलानेवाले हैं। इससे द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद बनी बहुपक्षीय व्यवस्था कमजोर हो रही है। ट्रंप की शैली अमेरिकी हितों को बढ़ावा देती है, लेकिन अन्य देशों को अपमानित करती है, जो कूटनीति के मूल सिद्धांतों – सम्मान और संवाद – के खिलाफ है। लेकिन दूसरी ओर, ट्रंप के समर्थक उनकी ऐसी तमाम विषाक्त बयानबाज़ी को सच्चाई का दर्पण मानते हैं।
उनके अनुसार, ये बयान वैश्विक संस्थाओं की निष्क्रियता को उजागर करते हैं। ट्रंप का दावा है कि उन्होंने सात युद्ध समाप्त किए और यूक्रेन जैसे संघर्षों को आसानी से ख़त्म कर सकते हैं, क्योंकि रूसी राष्ट्रपति पुतिन से उनके अच्छे रिश्ते हैं! यह निर्मम प्रेम का विचित्र उदाहरण है। अपमानित करके सहयोगियों को जागृत करना! जैसे कि, नाटो पर दबाव डालकर उन्होंने यूरोपीय देशों से रक्षा खर्च बढ़वाया, जिससे अमेरिकी करदाताओं का बोझ कम हुआ। उनका कहना है कि ट्रंप की आक्रामक शैली वैश्विक व्यवस्था की खामियों को उजागर करती है।
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ट्रंप की आक्रामक कूटनीति और विश्व शांति संकट
फिर भी, संतुलित नजरिया जरूरी है। ट्रंप के बयान ख़ासकर छोटे देशों को बहुत असुरक्षित महसूस कराते हैं। ग़ाज़ा युद्ध में उनका इजराइल के प्रति अंधसमर्थन और फिलिस्तीनियों के प्रति उदासीनता मध्य पूर्व में शांति की संभावना पीछे ठेलती है। ट्रंप का घोर स्वार्थी व्यापारी रवैया भारत जैसे बहुलतावादी देश के लिए खुली चेतावनी है। अमेरिकी नीतियाँ कभी भी बदल सकती हैं, इसलिए हमें आत्मनिर्भर होना होगा। ट्रंप की शैली सोशल मीडिया पर तेजी से फैलती है । इससे वैश्विक संस्थाओं में सुधार की बहस तो ज़रूर छिड़ी है, लेकिन अवांछित ध्रुवीकरण से वैश्विक व्यवस्था अनिश्चितता के जाल में भी फँसती नज़र आ रही है।
निष्कर्षतः, ट्रंप के बयान ऩफरत का जहर घोल रहे हैं और विश्व व्यवस्था को दूषित कर रहे हैं। वे उचित-अनुचित की स्वीकृत परिपाटियों को ध्वस्त कर रहे हैं और सारी दुनिया पर अपनी धौंस चलाना चाहते हैं। जो उनकी धौंस में नहीं आएगा, उस पर वे मनमाना टैरिफ ठोक देंगे। भारत को सतर्क कूटनीति अपनानी होगी। जहाँ संभव हो वहाँ ट्रंप से लाभ लीजिए। पर उनकी आाढामकता से सावधान रहिए। ध्यान रहे कि विश्व शांति के लिए सद्भावनापूर्ण संवाद की ज़रूरत है, न कि दुर्भावनापूर्ण बयानबाज़ी की। काश, कोई ट्रंप महोदय तक बशीर बद्र का यह संदेश पहुँचा पाता कि-
सात संद़ूकों में भर कर दफ़्न कर दो ऩफरतें;
आज इंसाँ को मोहब्बत की ज़रूरत है बहुत!
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