हेमंत सोरेन की ऐतिहासिक विजय का अर्थ
झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 ने भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ प्रस्तुत किया है। हेमंत सोरेन के नेतृत्व में झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) की शानदार जीत न केवल भाजपा की हार है, बल्कि यह झारखंड के राजनीतिक और सामाजिक ढांचे में एक गहरी परिघटना की ओर इशारा भी है। यह विजय उनके कुशल नेतृत्व, जमीनी नीतियों और सशक्त रणनीतियों का प्रमाण है।
सयाने बता रहे हैं कि झारखंड में हेमंत सोरेन का विकास मॉडल शहरी क्षेत्रों में शायद ही नजर आए, लेकिन ग्रामीण इलाकों में उनकी नीतियों ने ाढांतिकारी बदलाव किए हैं। गाँव-गाँव में पेयजल, सड़क और बिजली जैसी मूलभूत सुविधाओं की पहुँच ने उनकी लोकप्रियता को बढ़ावा दिया है। हाशिये पर स्थित आदिवासी और ग्रामीण समुदाय सोरेन के कार्यकाल में सशक्त हुए हैं। उनकी सरकार ने स्थानीय खनिज संपदा पर झारखंडवासियों का अधिकार सुनिश्चित करने की दिशा में ठोस कदम उठाए, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गति मिली।
हेमंत सोरेन की सबसे बड़ी उपलब्धि उनकी स्वीकार्यता का विस्तार है। झारखंड की 32 जनजातियों के बीच संथाल, मुंडा, उराँव और पहाड़िया जैसे समूहों में उनकी व्यापक स्वीकृति ने उन्हें आदिवासी राजनीति के केंद्र में ला दिया है। यह ऐसी सफलता है, जो उनके पिता शिबू सोरेन के समय में भी अधूरी रही थी।
याद रहे कि झारखंड में भाजपा का आधार सदैव मजबूत रहा है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की जमीनी सािढयता और भाजपा के सघन संगठनात्मक ढाँचे के बावजूद, सोरेन ने भाजपा को हराने में सफलता पाई। इसका श्रेय उनके सोशल मीडिया कैंपेन और राष्ट्रीय मुद्दों को झारखंड की राजनीति से अलग रखने की उनकी नीति को जाता है। झामुमो का आईटी सेल इस समय राज्य में सबसे प्रभावी है, जिसने ग्रामीण और शहरी मतदाताओं के साथ संवाद स्थापित करने में अहम भूमिका निभाई।
इस सच को नकारा नहीं जा सकता कि हेमंत सोरेन ने सामाजिक और आर्थिक स्तर पर झारखंडवासियों को सशक्त बनाया है। स्थानीय व्यापारियों और मजदूरों को खनिज आधारित उद्योगों में अधिक अवसर मिले हैं। गाँवों में धन का प्रवाह और रोजगार के अवसर बढ़े हैं। इसके साथ ही, पढ़े-लिखे युवाओं को सरकार के साथ जोड़ने और उनकी आकांक्षाओं को राजनीतिक मंच प्रदान करने की कोशिश ने नागरिक समाज और युवा मतदाताओं को सोरेन की ओर आकर्षित किया।
इसके अलावा, झारखंड के इतिहास में लाल-हरा गठजोड़ की वापसी भी इस जीत का एक अहम पहलू है। भाकपा (माले) और झामुमो का गठबंधन उत्तर छोटानागपुर क्षेत्र में भाजपा के लिए घातक साबित हुआ। यह गठबंधन झारखंड में वामपंथी विचारधारा और आदिवासी आकांक्षाओं के एक मजबूत समीकरण का प्रतीक है। भाजपा को इसका तोड़ खोजना होगा।
अंतत यह भी कि चुनाव से कुछ महीने पहले भ्रष्टाचार के आरोपों में फँसने के बावजूद हेमंत सोरेन ने न केवल अपनी छवि को बहाल किया, बल्कि खुद को एक ऐसे नेता के रूप में भी उभारा, जो मुश्किल हालात में भी अपनी जनता के साथ खड़ा रहता है। उनके करीबी सहयोगियों द्वारा छोड़ा गया साथ भी उनकी विजय को रोक नहीं पाया। इस तरह हेमंत सोरेन ने न केवल भाजपा को चुनौती दी, बल्कि कांग्रेस पर झामुमो की निर्भरता को भी कम किया। अब कांग्रेस के लिए झामुमो के साथ खड़े रहना राजनीतिक मजबूरी बन गया है।
इस चुनाव ने झारखंड में क्षेत्रीय दलों के महत्व और उनकी स्वतंत्रता को नए सिरे से परिभाषित किया है। यह एक संकेत है कि जमीनी राजनीति और क्षेत्रीय दलों के पास भारतीय राजनीति में निर्णायक भूमिका निभाने की क्षमता है। यह जीत दिखाती है कि जब नेता जनता के साथ वास्तविक जुड़ाव स्थापित करते हैं, तो वे राष्ट्रीय स्तर के मुद्दों के प्रभाव को भी हरा सकते हैं।