तिरुपति लड्डू विवाद – बाबू को कोर्ट ने खूब सुनाया
हैदराबाद, तिरुपति मंदिर लड्डू विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि कम से कम देवताओं को तो राजनीति से दूर रखा जाना चाहिए। साथ ही न्यायालय ने आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू के इस सार्वजनिक बयान पर सवाल उाया कि वाई एस जगनमोहन रेड्डी के नेतृत्व वाली पूर्ववर्ती सरकार के शासन के दौरान तिरुपति मंदिर के लड्डू बनाने में कथित तौर पर पशुओं की चर्बी का इस्तेमाल किया गया। शीर्ष अदालत ने कहा कि प्रयोगशाला परीक्षण रिपोर्ट बिल्कुल भी स्पष्ट नही है और प्रथम दृष्टया संकेत मिलता है कि अस्वीकृत घी का परीक्षण किया गया था। न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति के. वी. विश्वनाथन की पी ने कहा कि रिपोर्ट से साफ है कि यह वह घी नही है, जिसका इस्तेमाल किया गया है। जब तक आप आश्वस्त न हों, आप इसे लेकर जनता के बीच कैसे गए?
आंध्र प्रदेश सरकार की ओर से पेश हुए वरिष् अधिवक्ता मुकुल रोहतगी से पी ने कहा कि यह बिलकुल भी स्पष्ट नही है और प्रथम दृष्टया संकेत मिलता है कि यह अस्वीकृत घी था, जिसका परीक्षण किया गया। अगर आपने खुद ही जाँच के आदेश दे दिए हैं तो प्रेस में जाने की जरूरत कहाँ रह जाती है? शीर्ष अदालत कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिनमें तिरुपति मंदिर के लड्डू बनाने में पशु चर्बी के कथित इस्तेमाल की अदालत की निगरानी में जाँच का अनुरोध करने वाली याचिकाएँ भी शामिल थी।
यह देखते हुए कि ये दलीलें एक ऐसे मुद्दे से संबंधित हैं जो दुनिया में रहने वाले करोड़ें लोगें की भावनाओं को प्रभावित करता है, पी ने कहा कि मुख्यमंत्री ने सार्वजनिक रूप से यह बयान दिया था कि पिछले शासन के तहत तिरुपति मंदिर के लड्डू बनाने में पशु चर्बी का उपयोग किया गया। इसने कहा कि राज्य सरकार के अनुसार, मामले में प्राथमिकी 25 सितंबर को दर्ज़ की गई और विशेष जाँच दल (एसआईटी) का गन 26 सितंबर को किया गया। पी ने कहा कि इस प्रकार यह देखा जा सकता है कि मुख्यमंत्री द्वारा दिया गया बयान 26 सितंबर को प्राथमिकी दर्ज होने और एसआईटी गित होने से भी पहले का है। मुख्यमंत्री 18 सितंबर को जनता के बीच जा चुके थे। इसने कहा कि हमारा प्रथम दृष्टया यह मानना है कि जब जाँच प्रक्रिया जारी है, तो एक उच्च संवैधानिक पदाधिकारी के लिए सार्वजनिक रूप से जाकर ऐसा बयान देना उचित नही है, जो करोड़ें लोगें की भावनाओं को प्रभावित कर सकता है।