टॉनिक, टॉनिक, कितना टॉनिक !
आजकल मेरे मित्र-बंधु और पड़ोसी मेरे स्वास्थ्य को लेकर बड़े चिंतित हैं। उनकी चिंता से मैं भी चिंतित हो गया हूँ। जो भी मिलता है, वह कहता है कि दिनेश जी आप पहले से दुबले हो गये हो! मैं खोपड़ी नीचे करके अपनी बॉडी पर एक विहंगम दृष्टि डालता हूँ और चिंतित हो जाता हूँ। घर में आदमकद आईने के सामने खड़ा होकर उपर-नीचे, दायें-बाएं निहारता हूँ, चिंता बढ़ती जाती है। पत्नी से पूछता हूं-क्यों जी, आजकल सब कहने लगे हैं कि मैं दुबला हो रहा हूँ क्या ये सच है…? वह आटा गूंदते हुए बिना मेरी तरफ देखे सपाट जवाब देती है -पहले ही कौन से टार्जन थे, छिपकली के छिपकली…!
उनके इस कटाक्ष से आहत मुझे पल भर के लिए लगता है कि मैं पांडवों के रंग-महल में कुंड के पानी को समतल जमीन समझकर डुबकियां खाता दुर्योधन हूँ और वह छज्जे पर खिलखिलाती खड़ी द्रौपदी! आहत मन मैं शाम को अँधेरे में परिचितों से बचता सीधे पड़ोस के मेडिकल स्टोर पहुँच जाता हूँ । अँधेरे में इसलिए कि कोई मित्र-बंधु मुझे देखकर फिर मेरे दुबलेपन पर चिंता न प्रगट करने लगे!
महंगाई में टॉनिक की तलाश का व्यंग्य
होना तो यह चाहिए कि मैं किसी अच्छे डॉक्टर के पास जाऊं पर अगर डॉक्टर के पास गया तो वह पहले नाड़ी छुएगा, जीभ देखेगा, आला लगाकर छाती की धड़कन सुनेगा, फिर हजार पांच सौ की फीस सहित दवाओं के साथ दो तीन टॉनिक लिख देगा! अब मरो! इस महंगाई में सेहत के नाम पर दो-तीन हजार रूपये की जबरदस्ती हजामत हो जाए तो उलटे ऊस्तरे से मूंड़नेवाले डॉक्टर का लिखा टॉनिक क्या ख़ाक असर करेगा!
मेडिकल स्टोर के अमूमन सभी रैक सुंदर-सुगठित महिलाओं तथा पुरुषों के आकर्षक मुस्कुराते फोटो वाले डिब्बों में बंद दवाइयों, टॉनिकों और इंजेक्शनों से खचाखच सजे हुए थे! ऐसे आकर्षक डिब्बे कि भले बीमारी हो न हो मन करे कि दो-चार तो खरीद ही लो यार! मेडिकल स्टोर के मालिक गुप्ता जी मेरे परिचित हैं। जरा हंसोड़ और बातूनी स्वभाव है पर दिल के अच्छे हैं। गुप्ता जी फुर्सत से बैठे अखबार के पन्ने पलट रहे थे।
मैंने कहा -अग्रवाल जी, एकाध बढ़िया जोरदार टाईप का टॉनिक होगा क्या…? उन्होंने नजर उठाकर पहले मुझे देखा फिर मेरी सिकिया पहलवान बॉडी की तरफ गौर से देखकर मुस्कुराते हुए पूछा- आपके लिए न सर….? कौन सा लेंगे, आयुर्वेदिक कि एलोपैथी और हाँ यदि होमियोपैथी में लेना है तो बाजू में मेरे भाई की दुकान है, वहाँ चले जाइए अश्वगंधारिष्ट, दशमूलारिष्ट, प्रोटीनेक्स, प्रोटीटॉस यहाँ सब मिल जाएगा…!
यह भी पढ़ें… जहां दरवाजे हैं, पर आवाज़ें नहीं
राजनीति की सेहत और टॉनिक का व्यंग्य
आजकल अच्छी सेहत के लिए आम जिंदगी में कोई न कोई टॉनिक जरूर लेते रहना चाहिए…! देखिये न, अब तो राजनीति भी इससे अछूती नहीं रही! पिछले बहुत दिनों से मुम्बई वाले ठाकरे ब्रदर्स की राजनीति की सेहत एकदम खराब चल रही है तो स्वास्थ्य-सुधार के लिए उन्होंने हिंदी-मराठी के भाषा-टॉनिक का डोज मारना शुरू कर दिया! अब यह बात अलग है कि इस टॉनिक से उनकी सेहत सुधरती है या नहीं? हाँ, तो बोलिए, कौन सी लेंगे…?
मेरे अंदर का मिडिल क्लास जरा कुनमुनाया और सकुचाते हुए पूछा-कीमत क्या होगी ? उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा – बस यही छह: सात सौ के आसपास…! कीमत सुनकर मेरा दिल धक से रह गया। महीने भर के बजट के फेल होने की संभावना उठ खड़ी हुई! मैंने खिसियाहट भरी मुस्कुराहट के साथ कहा-गुप्ता जी, जरा रुक जाईये।

जरा आपके भाई की होमियोपैथी दुकान का भी एक चक्कर मारकर पता कर लूं…! मैं धीरे से मुड़ा और वहाँ से खिसककर सीधे घर चला आया! मन ने कहा, टार्जन होना अपने बस का नहीं… छिपकली हैं तो छिपकली ही सही! इसमें ज्यादा नुकसान तो नहीं हो रहा न। वैसे भी टॉनिक पीने से कौन सा रातों रात चमत्कार हो जाएगा। हम बस यूं ही अच्छे हैं, अब कोई हंसे तो हंसे।
अब आपके लिए डेली हिंदी मिलाप द्वारा हर दिन ताज़ा समाचार और सूचनाओं की जानकारी के लिए हमारे सोशल मीडिया हैंडल की सेवाएं प्रस्तुत हैं। हमें फॉलो करने के लिए लिए Facebook , Instagram और Twitter पर क्लिक करें।





