बचपन से पारदर्शिता

आपने कई बार देखा होगा कि जब बच्चा चलते-चलते गिर जाता है, ऐसे में उसका रोना स्वाभाविक है। उस समय जो भी समीप होता है, वे उसे यह कहते हुए बहलाने लगते हैं कि इस आँगन ने तुम्हें गिराया है, इसलिए हम इस आँगन को मारते-पीटते हैं। जैसे ही वे आँगन को डाँटने लगते हैं, बच्चा रोना बंद कर देता है। अब उसे किसी मलहम की आवश्यकता नहीं होती है। विचार कीजिए, आपने बच्चे को क्या सिखाया है? आपने परोक्ष रूप से बच्चे को प्रशिक्षण दिया कि वह जब भी गिरेगा तो कोई दूसरा जवाबदेह होगा।

आपने उसे प्यार से यह नहीं कहा कि चलते समय स्वयं का ध्यान रखना चाहिए। जब तक आप उसे स्वयं का उत्तरदायित्व लेने की प्रेरणा नहीं देंगे, तब तक जीवन के सही मूल्य नहीं सिखा पाएँगे। अपनी सोच को बदलते हुए उन क्षणों को खोजिए जिस क्षण में बच्चा विरोध नहीं कर सकता है। यदि माता-पिता बच्चे पर साधना के प्रयोग करना चाहें, जब वह सो जाए, तब करें। जब बच्चा सोता है, तब उसका विरोध सो जाता है, उसका प्रतिरोध भी सो जाता है, इसलिए वह प्रतिकार कर नहीं सकता है।

रिश्तों में पारदर्शिता और आशीर्वाद की शक्ति से बदलती है जीवन दिशा

अत: बच्चे पर जो भी साधना या प्रक्रिया करनी है, सफाई की प्रक्रिया हो या आशीर्वाद देने की, उसके सोने के पश्चात करें। बच्चे को पता ही नहीं चलता है कि आपने कब उस पर आशीर्वाद बरसाए। जब पता नहीं चलता है, तब वह रोकता नहीं है और जब प्रतिरोध नहीं हुआ, तो कार्य संपन्न हो जाता है। भले ही सामने वाला सुधरना चाहे या नहीं, बदलना चाहे या नहीं, कार्य संपन्न हो जाता है। मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ। मैं कहाँ सुधरना चाहता था? मेरे गुरु ने सुधारना चाहा और मैं सुधर गया।

अत: अब से यह निर्णय लें कि आपकी संस्थाओं में सत्यता आरंभ हो जाए। जो भी आपके संकल्प हैं, जो भी आप करना चाहते हैं, उसे अपने बड़ों को बताएँ, छिपाएँ नहीं। यदि आपके परिवार में ऐसी सत्यनिष्ठा आ गई, तो आपके परिवार की लेश्या उत्तम हो जाएगी। हर परिस्थिति को संभालना सहज हो जाएगा। यह रिश्तों में पारदर्शिता का सूत्र है। जब यह सूत्र आपके घर में लागू हो जाएगा, तब आप जो भी करेंगे, अपने माता-पिता को बताकर करेंगे।

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बच्चों की चुप्पी का कारण माता-पिता का पुराना व्यवहार हो सकता है

जो भी खाना-पीना है, वह बताकर करेंगे, जहाँ जाना है, वहाँ बताकर जाएँगे, जो भी करना है, उसे बताकर करेंगे। मैं सदा बच्चों से एक ही बात कहता हूँ कि जो भी करें, अंधियारे में न करें, उजियाले में करें। अपने माता-पिता तथा बड़ों को अंधेरे में न रखें। परन्तु होता इसके विपरीत है। अधिकांश माता-पिता की शिकायत होती है कि जब भी हम बच्चों को सलाह देने लगते हैं तब बच्चे हमें बीच में ही टोक देते हैं। वे हमसे कहते हैं, आप बीच में मत बोलिए।

वे न हमसे परामर्श लेते हैं और न ही हमें कुछ बताते हैं। ऐसी स्थिति में माता-पिता क्या करें? सहज जवाब है- याद करें कि जो आज बच्चे आपके साथ कर रहे हैं, आपने उनके साथ ऐसा ही बर्ताव कितनी बार किया है? जब वे छोटे थे, जब वे बड़े हो रहे थे और जब वे बड़े भी हो गए, तब आपने ऐसे शब्दों का प्रयोग कितनी बार किया? जब आपने पहली बार अपने बच्चे के साथ ऐसा किया होगा, तभी आपने उसके मन में प्रतिक्रिया का यह क्रम शुरू कर दिया होगा।

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उसके पश्चात आप बार-बार यही दोहराते गए, जिस वजह से बच्चे के मन में आपकी बात सुनने की, आपसे परामर्श लेने की इच्छा समाप्त हो गई। ऐसा भी हो सकता है कि उसने कभी आपसे कुछ प्रश्न किया होगा या राय माँगी होगी और आपने परामर्श देकर उसे कठिनाई में डाल दिया होगा। आपने राय देते समय उसकी भावना का ध्यान नहीं किया होगा। यदि माँ-बाप इस बात को पढ़ रहे हैं तब सुधार करें, प्रतिक्रिया न करें। याद रखें कि यह आदत उनके अंदर बचपन से आपने ही डाली है।

-प्रवीण ऋषि

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