यूनाइट द किंगडम : एकता या विभाजन ?
हाल ही में लंदन की सड़कों पर निकली यूनाइट द किंगडम रैली ने ब्रिटेन के सामाजिक ताने-बाने की भीतरी खींचतान को एक बार फिर उजागर किया है। धुर दक्षिणपंथी कार्यकर्ता टॉमी रॉबिन्सन द्वारा बुलाई गई इस रैली में 1.10 लाख, या शायद इससे अधिक, लोग शामिल हुए। यह रैली ब्रिटिश ध्वजों, क्राँस और राष्ट्रवादी नारों से सजी थी, लेकिन इसमें छिपी गहरी दरारें ब्रिटेन की वर्तमान राजनीतिक उथल-पुथल को दर्शाती हैं।
ग़ौरतलब है कि रैली का स्वरूप शांतिपूर्ण प्रदर्शन जैसा कम और राजनीतिक उत्सव जैसा अधिक था। हिंसा की छाया भी दिखी। प्रतिभागी मुख्यत सामान्य ब्रिटिश नागरिक थे – ज़्यादातर कामगार और मध्यम वर्ग के लोग। वे वी वॉन्ट अवर कंट्री बैक जैसे नारे लगा रहे थे। रैली के अंत में पुलिस के साथ झड़प भी हुई। 26 अधिकारी घायल हुए और 25 गिरफ्तारियां हुईं। यहाँ यह भी कहा जा सकता है कि दूसरी ओर स्टैंड अप टू रेसिज्म जैसे समूहों की काउंटर-रैली में सिर्फ करीब 5,000 लोग थे, जो फासीवाद विरोधी नारे लगा रहे थे। कहना न होगा कि इस दृश्य से ब्रिटेन में बढ़ते ध्रुवीकरण का पता चलता है – राष्ट्रवाद बनाम विविधता।
आप्रवासन नीतियाँ और बढ़ता ध्रुवीकरण
सयाने बता रहे हैं कि यूनाइट द किंगडम रैली के मूल कारण ब्रिटेन की आप्रवासन नीतियों में निहित हैं। 2019 से 2023 तक आप्रवासन स्तर चार गुना बढ़ा है, और 2024 में नेट माइग्रेशन 4.31 लाख तक पहुँच गया। साउथपोर्ट छुरेबाजी और एपिंग बलात्कार जैसी घटनाओं ने जनता के गुस्से को भड़काया, जिन्हें आयोजकों ने आप्रवासियों से जोड़ा। साथ ही, ऑनलाइन सेफ्टी एक्ट और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कथित पाबंदियों ने इसे फ्री स्पीच फेस्टिवल का नाम दिया।
आयोजक टॉमी रॉबिन्सन (जिनके आपराधिक रिकॉर्ड हैं) इसे पैट्रियॉट्स का आंदोलन बताते हैं, लेकिन यह धुर दक्षिणपंथी विचारधारा से प्रेरित है, जो आप्रवासियों को सांस्कृतिक खतरा मानती है। ऐसे में, यह रैली आप्रवासी-विरोधी भावनाओं को वैश्विक स्तर पर प्रभावित कर सकती है, जहाँ भारत जैसे देशों से कुशल श्रमिकों का प्रवाह प्रभावित हो सकता है। बेशक इस तरह के उभार के संभावित परिणाम चिंताजनक हैं। यह रैली धुर दक्षिणपंथी ताकतों को मजबूत कर सकती है।
रिफॉर्म पार्टी की बढ़ती लोकप्रियता तो यही दिखाती है। पहले से ही कैबिनेट फेरबदल और आर्थिक दबावों से जूझ रही ब्रिटेन सरकार पर इससे और दबाव बढ़ेगा। समाज में विभाजन गहराएगा। हिंसक घटनाएँ भी बढ़ सकती हैं। यानी, लोकतंत्र कमजोर होगा, क्योंकि असली मुद्दों के बजाय ध्रुवीकरण पर फोकस रहेगा। चिंताएँ कई हैं। सबसे बड़ी चिंता हिंसा और नस्लवाद की है, जो ब्रिटेन की बहुलवादी पहचान को चुनौती देती है।
यह भी पढ़ें… चिर प्रतीक्षित यात्रा का हासिल
ब्रिटेन की विविधता बनाम बढ़ता राष्ट्रवाद
रैली में क्रिश्चियन राष्ट्रवाद और एंटी-मुस्लिम भावनाएँ प्रमुख थीं, जो सामाजिक सद्भाव को खतरे में डाल सकती हैं। साथ ही, फ्री स्पीच की आड़ में नफरत फैलाने की आशंका से भी इनकार नहीं किया जा सकता। भारतीय नज़रिये से कहें तो, इससे आप्रवासी समुदायों की सुरक्षा खतरे में है। क्योंकि ब्रिटिश भारतीयों को हिंसा का निशाना बनाया जा सकता है। वैश्विक स्तर पर, ऐसे आंदोलन राष्ट्रवाद को बढ़ावा देंगे। इसे व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के लिए अच्छी खबर तो नहीं ही कहा जा सकता!
कहना न होगा कि इस सामाजिक-राजनीतिक दरार को पाटने के लिए ब्रिटेन सरकार को संवाद पर जोर देना चाहिए। बेहतर आप्रवासन नीतियाँ बनाई जाएँ। जैसे, कुशल श्रमिकों के लिए वीजा सुधार और एकीकरण कार्यक्रम। फ्री स्पीच और नफरत के बीच संतुलन बनाने के लिए कानूनी ढाँचा मजबूत हो। सामुदायिक स्तर पर शिक्षा और संवाद से पूर्वग्रह कम किए जा सकते हैं। भारत जैसे देशों (जहाँ बहुलवाद संविधान का आधार है) से सीखते हुए, ब्रिटेन को अपनी विविधता को ताकत बनाना चाहिए। अंतत, यूनाइट द किंगडम का नारा तभी सार्थक होगा जब यह विभाजन के बजाय सच्ची एकता की दिशा में हो। फिर भी यह रैली इतना तो जता ही गई कि- उपेक्षित शिकायतें एक न एक दिन विस्फोटक रूप लेती ही हैं!
अब आपके लिए डेली हिंदी मिलाप द्वारा हर दिन ताज़ा समाचार और सूचनाओं की जानकारी के लिए हमारे सोशल मीडिया हैंडल की सेवाएं प्रस्तुत हैं। हमें फॉलो करने के लिए लिए Facebook , Instagram और Twitter पर क्लिक करें।





