शक्ति और साहस का प्रतीक है विजयादशमी पर्व
विजयादशमी पर्व धर्म और आदर्श जीवन का प्रतीक है। देवी दुर्गा की कथा हमें सिखाती है कि धैर्य, तप, साधना और न्याय के मार्ग पर चलकर कोई भी बुराई नष्ट की जा सकती है। यह दिन शक्तिशाली निर्णय, सकारात्मकता और शिक्षा की प्राप्ति का प्रतीक है। घर, मंदिर और समाज में इसे पूजा, हवन और लोक-कला के माध्यम से मनाया जाता है।
महिषासुर का उदय और अत्याचार
सनातन धर्मग्रंथों के अनुसार, महिषासुर अपने अत्याचार और शक्ति के लिए प्रसिद्ध था। उसने देवताओं को परेशान करके स्वर्ग पर अधिकार जमा लिया था। देवताओं ने भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश से प्रार्थना की कि कोई इस असुर का संहार करे। सभी देवताओं ने मिलकर महाशक्ति देवी दुर्गा का आविर्भाव किया।

देवी दुर्गा को अत्याचार और अधर्म का नाश करने के लिए उत्पन्न किया गया। उनके हाथों में त्रिशूल, खड्ग, गदा और धनुष थे। उनका वाहन शेर था, जो साहस और शक्ति का प्रतीक है। देवी दुर्गा ने महिषासुर का सामना करने से पहले नौ दिनों तक तप, साधना और युद्ध की तैयारी की।
नौ दिनों की महा अभियान कथा
यह नौ दिन का युद्ध नवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। हर दिन देवी ने महिषासुर के विभिन्न रूपों का संहार किया। नवरात्रि के दौरान, हर स्वरूप का दर्शन और पूजा भक्तों के लिए शक्ति और साहस का प्रतीक है।
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महिषासुर वध और विजयादशमी
दसवें दिन, देवी दुर्गा ने महिषासुर का नाश कर दिया। यह दिन विजयादशमी या दशहरा के रूप में मनाया जाता है। विजयादशमी का संदेश है- अधर्म पर धर्म की जीत, अज्ञान पर ज्ञान की विजय और बुराई पर अच्छाई की सफलता।
धार्मिक और सामाजिक महत्व
विजयादशमी केवल युद्ध की स्मृति नहीं है, यह पर्व सांस्कृतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक शिक्षा भी देता है। इस दिन से नए कार्य आरंभ करना शुभ माना जाता है।
पर्व अनुष्ठान
- रामलीला और महिषासुर मर्दिनी मंचन- लोक-कला और धर्म का मिश्रण है।
- अलंकृत दुर्गा प्रतिमा का विसर्जन- प्रकृति और देवता के प्रति भक्तों की श्रद्धा है।
- शस्त्र-पूजा- हथियार और उपकरणों के सम्मान का प्रतीक है।
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