जब वरदान बन जाए अभिशाप
हम सब देवी-देवताओं के द्वारा प्रदत्त वरदान एवं शाप संबंधित अनेक कथाओं से परिचित हैं। इसके साथ ही उन सिद्ध पुरुषों की चमत्कारी शक्तियों के बारे में भी सुना है जिन्होंने अपने तप से ऐसी सिद्धियाँ प्राप्त की हैं। सुना है कि जब सिद्ध महापुरुष कुपित होते हैं तो एक दृष्टि मात्र से या एक शब्द से वे किसी को भी श्राप दे देते थे, जिस कारण उस व्यक्ति का जीवन निरर्थक हो जाता था। यदि वे किसी की तपस्या से प्रसन्न हो जाते थे तो उसे आशीर्वाद देकर उसका जीवन धन्य कर देते थे।
यह सब बातें सुनने के पश्चात मन में सहज ही प्रश्न उत्पन्न होता कि क्या 21वीं सदी में जीने वाले हम सभी आधुनिक मनुष्यों के जीवन में सचमुच इन आशीर्वाद या शाप का कोई प्रभाव पड़ता है? क्या सचमुच हम मनुष्यों में ऐसी शक्तियां होती हैं जिससे हम किसी को भी आशीर्वाद या शाप दे सकते हैं? क्या किसी को प्राप्त हुआ वरदान शाप में परिवर्तित हो सकता है? इन सभी प्रश्नों के उत्तर प्राप्त करने के लिए हमें आशीर्वाद एवं शाप के बारे में गहन समझ धारण करने की आवश्यकता है।
कर्म का सार्वभौमिक सिद्धांत — जैसा बोओगे वैसा काटोगे
सरल शब्दों में कहा जाए तो आशीर्वाद एक व्यक्ति को विशेष शक्ति एवं संरक्षण प्रदान करता है जिससे वह खुद को धन्य महसूस करता है। कुछ आशीर्वाद सर्वदा के लिए होते हैं तो कुछ अल्पकालिक। इस प्रकार से कुछ आशीर्वाद प्रासंगिक होते हैं तो कुछ बिल्कुल सशर्त। वर्तमान में अच्छे भाग्य का पात्र बनना, प्रतिभावान होना, सफलता होना आदि भक्त और भगवान से डरने वाले व्यक्तियों द्वारा पवित्र निशानी के रूप में माना जाता है। अधिकतर लोग इस बात से अनभिज्ञ होते हैं कि प्राप्त आशीर्वाद या वरदान स्वत ही अभिशाप बन जाता है।
यदि कोई व्यक्ति काम, क्रोध, मोह, लोभ, अहंकार जैसे विकारों के वशीभूत होकर उसका दुरुपयोग करता है। उसी प्रकार से वास्तविक जीवन के अनुभवों में देखा गया है कि कैसे पश्चाताप एवं उग्र तपश्चर्या के द्वारा किसी व्यक्ति ने मिले हुए शाप को आशीर्वाद में परिवर्तित कर दिया। इससे सिद्ध होता है कि दुर्भाग्य और दुःख के अंतहीन चरण का अंत योग्य कर्म एवं सर्वोच्च सर्वशक्तिमान परमात्मा की सेवा में खुद का जीवन अर्पण करके लाया जा सकता है। हम सभी कर्म के सार्वभौमिक कानून को भली-भाँति जानते हैं, जो यह कहता है कि जैसा बोओगे, वैसा काटोगे।
शोषण, क्रोध और हिंसा—स्वयं के विनाश का मार्ग
अत: हमें यह समझना है कि आशीर्वाद उदार कर्मों का इनाम है और अभिशाप बुरे कर्मों का। जो दूसरों को नुकसान पहुँचाने की कोशिश करता है, वह एक दिन खुद ही शापित होकर नीचे गिर जाता है और जो निस्वार्थ भाव से परमात्मा के बताये मार्ग पर चलकर दूसरों की सेवा करता है, वह बड़े से बड़े वरदानों को प्राप्त करता है। याद रखें! जब हम बल, हिंसा, धोखा और शोषण का उपयोग करते हैं तब स्वत: शापित हो जाते हैं।
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देखा गया है कि शोषकों को हमेशा शोषित किया जाता है और क्रोध उसको करने वाले को ही सदैव जलाता है। इसलिए, आशीर्वाद पाने और स्वयं को शाप से सुरक्षित रखने का सबसे आसान और सबसे अच्छा तरीका है- अपने मन की पवित्रता बनाए रखना और सर्व के प्रति अनुकंपा की भावना रखना। सभी को सुख देना और सभी से सुख लेना। ऐसा करने में ही हमारी भलाई है।
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