महिलाओं के लिए सुरक्षित कोलकाता, अब बेहद खौफनाक क्यों होता जा रहा है?
यह चिंता और सोचने का विषय है कि जो पश्चिम बंगाल कभी महिलाओं के लिए बेहद सुरक्षित माना जाता था, आखिर वह इन दिनों उनके लिए एक दुःस्वप्न क्यों बन गया है? जबकि पश्चिम बंगाल में एक महिला का ही शासन है और वह भी पिछले डेढ़ दशकों से। ऐसे में सोचने वाली बात यह है कि क्या कोलकाता की संवेदनशील संस्कृति बदल गई है या फिर माहौल में राजनीतिक प्रतिद्वंदिता इस कदर हावी हो गई है कि समाज की पारंपरिक संस्कृति को यह प्रतिद्वंदिता रौंदकर आगे बढ़ रही है।
साल 2021 और 2022 इन दोनों सालों में क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक कोलकाता देश के 19 प्रमुख मेट्रो शहरों में महिलाओं की सुरक्षा की दृष्टि से सबसे सुरक्षित दर्ज किया गया था। इन दोनों सालों में कोलकाता में 11-11 बलात्कार की घटनाएं दर्ज की गई थी, जबकि ठीक उसी समय दिल्ली में महिलाओं के साथ बलात्कार की 1226 घटनाएं घटी थी। 2022 में कोलकाता में महिलाओं के खिलाफ अपराध दर 27.01 प्रति एक लाख आबादी थी, जो हालांकि देश के कई अन्य मेट्रो शहरों मसलन चेन्नई और कोयंबटूर से ज्यादा थी।
लेकिन महिलाओं के विरूद्ध विशेषकर बलात्कार की घटनाएं वैसी नहीं घट रही थीं, जैसे देश के दूसरे बड़े शहरों में हो रही थी। लेकिन पिछले तीन सालों से पता नहीं कोलकाता के माहौल में ऐसी क्या तब्दीली आयी है कि यह शहर महिलाओं के लिए दूसरे शहरों से भले आंकड़ों के लिहाज से अभी बहुत खौफनाक न बना हो, लेकिन जिस तरह से महिलाओं के विरूद्ध वीभत्स बलात्कार की घटनाएं पिछले दो तीन सालों से यहां घट रही हैं, उस मामले में इस शहर ने दूसरे शहरों को पीछे छोड़ दिया है।
अभी 9-10 महीने गुजरे हैं, जब अगस्त 2024 में रेप और मर्डर का वीभत्स मामला कोलकाता में आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में घटा था, कुछ वैसा ही बलात्कार का वीभत्स मामला गुजरे 25 जून 2025 को कोलकाता स्थित साउथ कोलकाता लॉ कॉलेज में घटा है, जिसमें कॉलेज की एक छात्रा के साथ गैंगरेप हुआ, जिसका मुख्य आरोपी कॉलेज का पूर्व छात्र मनोजीत मिश्रा और दो वर्तमान छात्र जैब अहमद और प्रमित मुखर्जी हैं और उनकी मदद कॉलेज के गार्ड पिनाकी ने किया था।
राजनीतिक प्रतिद्वंदिता या बढ़ता अपराध?
जो मामला पिछले एक हफ्ते से न केवल मीडिया में सुर्खियों में छाया हुआ है बल्कि आरजी कर मेडिकल कॉलेज जैसा ही यह मामला पूरे देश में डर और दहशत का पर्याय बन गया है। सवाल उठता है जिस पश्चिम बंगाल में और खास करके कोलकाता में महिलाएं देश के बाकी राज्यों और महानगरों के मुकाबले सबसे ज्यादा सुरक्षित हुआ करती थीं, आखिर पिछले दो-तीन सालों से वही कोलकाता महिलाओं के विरूद्ध अपराधों के मामले में इतना खतरनाक क्यों बनकर उभरा है? कहीं इसके पीछे भाजपा और तृणमूल कांगेस जैसे दो प्रतिद्वंदी राजनीतिक पार्टियों की आपसी तनातनी तो नहीं है?
क्योंकि पहले भी पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ दल किसी पार्टी विशेष के साथ जबर्दस्त राजनीतिक प्रतिद्वंदिता में रहता रहा है। जैसे वामपंथी शासन के दौरान कांग्रेस और वामपंथी पार्टियों के बीच जबर्दस्त तनाव रहता था। लेकिन पहले कभी इस तनाव का फायदा उठाकर सत्तारूढ़ दल के कार्यकर्ता इस कदर अपराधों में लिप्त नहीं पाये गये थे। लेकिन जिस तरह से पहले आरजी कर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में हत्या और बलात्कार के लिए तृणमूल कांग्रेस से अपराधियों के तार जुड़े पाये गये थे।
ठीक उसी तरह साउथ लॉ कॉलेज के वीभत्स सामूहिक बलात्कार की घटना में भी मुख्य आरोपी मनोजीत मिश्रा टीएमसी से न केवल जुड़ा हुआ पाया गया है बल्कि इसीकी बदौलत वह पिछले कई सालों से आपराधिक वारदातें कर रहा था और कॉलेज में उसने अपना दबदबा कायम किये हुए था। पुलिस इस मामले में अब जिस निष्कर्ष पर पहुंची है, उससे साफ लग रहा है कि बलात्कार का यह मामला पहले से नियोजित था। आरोपी ने अभियान के रूप में इस घटना को अंजाम दिया है।
राजनीतिक संरक्षण में भयहीन अपराध का खुलासा
यही नहीं अपराधी इस कदर डरमुक्त थे कि उन्होंने न सिर्फ युवती के साथ वीभत्स बलात्कार किया बल्कि इस बलात्कार की घटना को पूरी तरह से कैमरे में फिल्माया भी और इसका इस्तेमाल ब्लैकमेल करने के लिए किया। अपराधियों की यह हरकत बताती है कि उन्हें इस अपराध को लेकर किसी तरह का डर नहीं था। अगर जरा भी डर होता तो घटना को इस तरह अंजाम नहीं दिया गया होता और न ही कॉलेज का पूर्व छात्र कॉलेज के ही गार्ड और दो वर्तमान छात्रों का खुलेआम अपने लिए इस्तेमाल करता।
पर चूंकि इस अपराधी का सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के साथ पिछले कई सालों से गहरा राजनीतिक रिश्ता है। यह तृणमूल कांग्रेस की छात्र शाखा का हिस्सा था। उस वजह से इसे किसी तरह का डर नहीं था। शुरुआत में जिस तरह से पुलिस ने पूरे मामले को रफा-दफा करने की कोशिश की। यहां तक कि बलात्कारियों और इसमें शामिल अपराधियों के नाम तक भी दर्ज न करके सांकेतिक रूप में उन्हें अपराधी एक या अपराधी दो के रूप में दर्ज किया था।
उससे लगता है कि पुलिस को भी इस राजनीतिक कनेक्शन वाले अपराधी से डर या सहानुभूति थी। बहरहाल जिस तरीके से कोलकाता में इस बलात्कार कांड को लेकर पिछले साल अगस्त में घटे आरजी कर मेडिकल कॉलेज अस्पताल के हत्या और बलात्कार कांड की तरह ही पूरे शहर में आंदोलनों का सिलसिला फूट पड़ा और राजनीतिक विरोध का बायस बन गया।
डीएनए जांच से खुला वीभत्स साजिश का राज़
ठीक उसी तरह इस घटना के चलते एक हफ्ते बाद कोलकाता पुलिस को मजबूरन तीनों आरोपियों के डीएनए सैंपल लेने पड़े हैं और जांच की रिपोर्ट में जांचकर्ताओं को भी नया रुख अख्तियार करना पड़ा है, क्योंकि प्रारंभिक रिपोर्ट में मेडिकल जांच के तहत स्पष्ट रूप से यह दावा नहीं किया गया था कि लड़की के साथ बलात्कार जैसा अपराध हुआ है।
हालांकि इससे मनाही भी नहीं की गई थी, लेकिन स्पष्ट रूप से जांच रिपोर्ट में बलात्कार की पुष्टि भी नहीं की गई थी। लेकिन जब पूरे कोलकाता में छात्र और युवा इस कांड के विरूद्ध सड़कों पर उतर आए और अपराध के साथ-साथ यह बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन गया, तब जाकर पुलिस पर दबाव बना कि वह इस मामले को गंभीरता से टैकल करें। इसके बाद गुजरे 30 जून 2025 को कोलकाता पुलिस ने तीनों अपराधियों के डीएनए सैंपल लिए हैं और कॉलेज के पूर्व छात्र मनोजीत मिश्रा और वर्तमान छात्र प्रतिम मुखर्जी और जैब अहमद को कोलकाता मेडिकल कॉलेज व अस्पताल ले जाया गया और वहां उनकी बॉडी से यूल्ड, पेशाब और बालों के नमूने एकत्र किए गए।
उसके बाद लगा कि पुलिस थोड़ी गंभीरता से मामले को टैकल कर रही है। गौरतलब है कि पुलिस का नया अनुमान यह है कि यह योजना बनाकर अंजाम दिया गया वीभत्स बलात्कार कांड है। अब पुलिस अधिकारी कह रहे हैं यह घटना पहले से ही तय थी। तीनों अपराधियों ने कई दिनों पहले से पीड़िता पर नजर रखी थी और उसे टारगेट करने की कोशिश में थे। इसी सिलसिले में पीड़िता को मुख्य बलात्कारी मिश्रा ने कॉलेज में दाखिला दिलाने के नाम पर अपने झांसे में लिया।
यह भी पढ़ें… मैदान की हर धड़कन को शब्दों में ढालने वाले नायक
कोलकाता में घटती संवेदनशीलता और राजनीतिक दबाव
पुलिस जिस तरह से अब सक्रिय हुई है और उसने कॉलेज की यूनियन रूम, गार्ड रूम और बाथरूम से अपराध के सबूत जब्त किए हैं और उन्हें फॉरेंसिक जांच के लिए भेजा है, उससे लगता है कि इसके पहले पुलिस जान-बूझकर पूरे मामले पर मिट्टी डालने की कोशिश कर रही थी। इस घटना से संबंधित डेढ़ मिनट का एक वीडियो फुटेज भी सामने आया है, जिसे अब पुलिस ने अपने कब्जे में लेकर जांच के लिए फॉरेंसिक लैब में भेजा है। हो सकता है इस दबाव के चलते अब इस मामले में सही से जांच हो जाए।
लेकिन यह चिंता और सोचने का विषय तो है कि जो पश्चिम बंगाल कभी महिलाओं के लिए बेहद सुरक्षित माना जाता था, आखिर वह इन दिनों उनके लिए एक दुःस्वप्न क्यों बन गया है? जबकि पश्चिम बंगाल में एक महिला का ही शासन है और वह भी पिछले डेढ़ दशकों से। ऐसे में सोचने वाली बात यह है कि क्या कोलकाता की संवेदनशील संस्कृति बदल गई है या फिर माहौल में राजनीतिक प्रतिद्वंदिता इस कदर हावी हो गई है कि समाज की पारंपरिक संस्कृति को यह प्रतिद्वंदिता रौंदकर आगे बढ़ रही है।

हाल के सालों में जिस तरह कोलकाता और बंगाल पुलिस पर राजनीतिक दबाव के आरोप लगे हैं और जिस तरह से उन आरोपों की छाया भी देखी गई है, उससे साफ महसूस होता है कि प्रदेश और देश के सबसे प्राचीन महानगर में तात्कालिक राजनीति में सत्ता में बने रहने का दबाव गहराता जा रहा है। उसके लिए कुछ भी दांव पर लग रहा है। चाहे वह समाज की संस्कृति ही क्यों न हो?
अब आपके लिए डेली हिंदी मिलाप द्वारा हर दिन ताज़ा समाचार और सूचनाओं की जानकारी के लिए हमारे सोशल मीडिया हैंडल की सेवाएं प्रस्तुत हैं। हमें फॉलो करने के लिए लिए Facebook , Instagram और Twitter पर क्लिक करें।





