भागवत के बयान पर पीएम चुप क्यों : रेवंत

हैदराबाद/दिल्ली, मुख्यमंत्री ए. रेवंत रेड्डी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और भाजपा पर भारत के स्वतंत्रता संग्राम को कमजोर करने और विभाजनकारी विचारधाराओं के साथ गठबंधन करने का आरोप लगाया। साथ ही स्वतंत्रता आंदोलन के बारे में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत की विवादास्पद टिप्पणी पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुप्पी पर सवाल उठाये।

रेवंत रेड्डी आज दिल्ली में नए एआईसीसी मुख्यालय के उद्घाटन समारोह को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने आरोप लगाया कि आरएसएस ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कोई भूमिका नहीं निभाई और देश की आजादी के लिए कोई बलिदान नहीं दिया। आरएसएस खुले तौर पर स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान का जश्न मनाने से बचती रही है। यहाँ तक कि मोहन भागवत ने स्वीकार किया कि स्वतंत्रता आंदोलन से उनका कोई संबंध नहीं है।

मुख्यमंत्री ने देश की स्वतंत्रता को कमजोर करने वाले बयान देने के लिए भागवत सहित सभी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने की माँग की। उन्होंने भाजपा पर आरएसएस की निक्रियता की जाँच से बचते हुए कांग्रेस के खिलाफ झूठे आख्यान गढ़ने का आरोप लगाया।

रेवंत रेड्डी ने भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) पर निशाना साधते हुए कहा कि बीआएरएस आरएसएस से प्रेरित है। उन्होंने दावा किया कि बीआरएस कांग्रेस के खिलाफ निराधार आरोपों की भाजपा की प्लेबुक का पालन कर रही है। उन्होंने पिछली बीआरएस सरकार में राजनीतिक हिंसा की घटनाओं की आलोचना करते हुए पुलिस समर्थन के साथ कांग्रेस कार्यालयों को निशाना बनाने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि बीआरएस के विपरीत कांग्रेस सरकार कानून और न्याय को प्राथमिकता दे रही है। यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि पुलिस किसी भी कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर उचित हस्तक्षेप करे।

रेवंत रेड्डी ने एआईसीसी मुख्यालय के उद्घाटन को भारत के लिए उत्सव का दिन बताते हुए कहा कि नया एआईसीसी मुख्यालय भारत की प्रगति के लिए कांग्रेस के समर्पण का प्रतीक है। भारतीय संविधान का मसौदा तैयार करने और हाशिये पर पड़े समुदायों के कल्याण को बढ़ावा देने में कांग्रेस की भूमिका का उल्लेख करते हुए कहा उन्होंने कहा कि यह कार्यालय भारत को एक शक्तिशाली राष्ट्र में बदलने की योजना बनाने के लिए एक केंद्र के रूप में काम करेगा। कांग्रेस की निस्वार्थ सेवा की 140 साल की विरासत है। दूसरी ओर पिछले चार दशकों में भाजपा और क्षेत्रीय दलों की वित्तीय स्थिति उनकी प्राथमिकताओं पर सवाल उठाती है।

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