
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की रणभेरी बज चुकी है। प्रचार की आँधी चल रही है। घोषणा दर घोषणा! वायदे दर वायदे! भाषा और नैतिकता जाएँ भाड़ में; वोट मिलने चाहिए! प्रतिज्ञाओं का ऐसा घटाटोप कि वोटर का दिल बैठा जा रहा है। उसे मालूम है कि चुनाव के मौसम की प्रतिज्ञाएँ तो होती ही हैं टूटने के लिए! फिर भी उसने ध्यान से देखा-सुना कि उसके दरबार में पहले तो महागठबंधन तेजस्वी प्रण पत्र लेकर उतरा और उसके पीछे-पीछे एनडीए भी अपने संकल्प पत्र 2025 के साथ आ प्रगटा।
हाँ, यह तो मानना होगा कि ये दोनों घोषणापत्र बिहार की 12 करोड़ जनता के सपनों का आईना हैं। रोजगार, महिला सशक्तीकरण, किसान कल्याण और विकास – इन पर दोनों गठबंधनों ने भारी-भरकम वायदे किए हैं। सयाने दिमागी कसरत कर रहे हैं कि इनमें कौन सा घोषणापत्र ज्यादा यथार्थवादी है और मतदाताओं पर इनका असर कैसा पड़ेगा। तुलना तो बनती है न!
रोजगार और महिला सशक्तीकरण के बड़े वादे
पहली बात तो यही कि दोनों पक्ष राज्य को रोजगार-समृद्ध बनाने के लिए जंग पर उतारू हैं। जगज़ाहिर है कि बेरोजगारी बिहार का सबसे बड़ा सिरदर्द है। एनडीए का वादा है – पांच साल में 1 करोड़ सरकारी नौकरियाँ। हर जिले में मेगा स्किल सेंटर, 10 औद्योगिक पार्क और डिफेंस कॉरिडोर। वहीं, महागठबंधन का दावा और भी बड़ा – हर परिवार को एक सरकारी नौकरी, वह भी 20 दिनों में।
युवा वर्ग, जो 40 प्रतिशत मतदाता हैं, इन वायदों से ललचाएगा। कुछ को लगता है, एनडीए का फोकस कौशल विकास पर है, जो लंबे समय तक टिक सकता है। वायदा तो महागठबंधन का भी आकर्षक लगता है, पर बजट और कार्यान्वयन की चुनौती बनी रहेगी। दूसरी बात; महिलाओं को हमेशा दोयम-सोयम बनाए रखने पर आमादा रहने वालों को भी चुनाव के वक़्त उनका सशक्तीकरण अपरिहार्य लगने लगता है।
आखिर सब वे विशाल वोट बैंक बन चुकी हैं! इसलिए अचरज नहीं कि एनडीए 1 करोड़ लखपति दीदी बनाने, महिला उद्यमियों को 2 लाख तक सहायता देने और मिशन करोड़पति से उन्हें स्वावलंबी बनाने के सब्ज़ बाग दिखा रहा है, तो महागठबंधन: हर महिला को 2500 रुपये मासिक देने और माई-बहन मान योजना लाने की कसमें उठा रहा है। दोनों ही तो लोक-लुभावन हैं! काश, सचमुच इनका ध्यान उद्यमिता पर होता!
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किसान, विकास और वायदों की सियासी जंग
तीसरी बात; चुनाव हों और सियासी पार्टियों की छाती किसान और गरीब के नाम पर फट-फट न जाए – ऐसा कभी होता है क्या? अब देखिए न, दोनों ने सभी फसलें पर एमएसपी कानूनी गारंटी का वादा किया है। एनडीए पीएम किसान योजना में 6 हजार से 9 हजार सालाना देने और मत्स्य पालन सहायता दोगुनी करने पर तुला है, तो महागठबंधन पुरानी पेंशन बहाली और मुफ्त बिजली की मीठी तान उठाए हुए है।
63 जातियों वाले ईबीसी समूह के लिए हैं एनडीए के पास 10 लाख तक की सहायता का लॉलीपॉप है, तो महागठबंधन के पास सामाजिक न्याय का चमकदार झुनझुना है। दोनों ही आबादी के 50 प्रतिशत, यानी किसान, का विश्वास जीतना चाहते हैं; लेकिन किसान तो मतदान के दिन ही बताएगा कि उसे कौन ज़्यादा विश्वसनीय लगता है। अब रही बात विकास और इंफ्रास्ट्रक्चर की।
एक तरफ एनडीए वाले गला फाड़ रहे हैं – 9 लाख करोड़ निवेश, 7 एक्सप्रेसवे, पटना-भागलपुर मेट्रो, हर जिले में मेडिकल कॉलेज, सीतामढ़ी धार्मिक नगरी! तो दूसरी ओर महागठबंधन वाले चिंघाड़ रहे हैं – आईटी पार्क, ग्रीन बिहार मिशन, 25 लाख स्वास्थ्य बीमा। दोनों ही मुफ्त पढ़ाई देने की डुगडुगी भी बजा रहे हैं। … लेकिन लंबे अनुभव से मतदाता जान गया है कि आश्वासन चाहे जितने अच्छे हों, निर्वाह में खरापन केवल दिवास्वप्न है! फिर भी वोट देना ही है – इसे नहीं तो उसे! यही तो लोकतंत्र के इस पर्व की रीत है!
