
इक्कीसवीं सदी विज्ञापन की सदी कहलाती है। विज्ञापन समाचार पत्र की रीढ़ होते हैं। बीते पच्चीस वर्षों में मीडिया में विज्ञापन को लेकर क्रांतिकारी परिवर्तन आये हैं। समय के साथ-साथ समाचार पत्रों पर भी बाज़ार बनने का आरोप लगता रहा है। इन परिस्थितियों में हिन्दी मिलाप ने पूरे भारतीय प्रिंट मीडिया के समक्ष एक ऐसी विज्ञापन नीति पेश की, जो न केवल अद्वितीय है, बल्कि सामाजिक दायित्व बोध से भरपूर है।
इसका श्रेय निश्चित रूप से मिलाप परिवार की तीसरी पीढ़ी के पत्रकार विनय वीर जी को जाता है। अहिन्दी प्रदेश में हिन्दी का अख़बार निकालना और उसके प्रकाशन को नयी ऊर्जा और नये दौर की मांग के अनुरूप निरंतर प्रकाशित करते रहना आसान नहीं था। यह तय था कि हिन्दी भाषा को राज्य की सरकारी भाषा के रूप में स्थान नहीं मिलेगा। ना ही हैदराबाद के हिन्दी पाठकों में कॉर्पोरेट दुनिया अपने लिए कोई आकर्षण देखती है।
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ऐसे में मिलाप के सामने एक बड़ी चुनौती यह भी थी कि अपने पाठक वर्ग को जागरूक और सूचित रखते हुए प्रगति पथ पर आगे बढ़ने के हौसले को सींचा जाए। उन्हें आपस में सुख-दुख का भागीदार बनाया जाए। आज हैदराबाद और आस-पास के शहरों का हिन्दी भाषी समाज मिलाप को अपने घर का सदस्य और अपने सुख-दुख की सूचनाओं का संवाहक मानता है। समाज बंधुओं के दुख के पलों का साझेदार बनने के लिए सुबह मिलाप की प्रतीक्षा की जाती है। यह देश में अपनी तरह का एक अनोखा सामुदायिक तंत्र है, जो लोगों को आपस में जोड़ता है, जिसका उदाहरण कहीं और नहीं मिलेगा।
