प्रभु का प्रसाद है जीवन, तनाव से विषाद न बनाएँ : ललितप्रभजी

हैदराबाद, हमारा जीवन प्रभु का प्रसाद है, इसे बेवजह मानसिक तनाव पाल कर विषाद न बनाएँ। जिंदगी एक बाँसुरी है। उसमें दुःख रूपी छेद तो बहुत सारे हैं, पर जिसको बांसुरी बजानी आ जाती है, वह उन छेदों में से भी मीठा संगीत पैदा कर लेता है।

उक्त उद्गार श्री जैन संघ, निजामाबाद के तत्वावधान में माहेश्वरी भवन में आयोजित 2 दिवसीय प्रवचन माला में 1 घंटे में सीखे जीवन जीने की कला विषय पर राष्ट्र संत ललितप्रभजी म.सा. ने व्यक्त किये। प्रदीप सुराणा द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, संत प्रवर ने कहा कि जिंदगी जलेबी की तरह होती है। यह टेढ़ी-मेढ़ी जरूर है, पर मुस्कान की चाशनी अगर हम लगाते रहेंगे, तो यह भी मधुर लगेगी। जिंदगी एक गजब की परीक्षा है। जब परीक्षा की जिंदगी खत्म हो जाती है, तो जिंदगी की परीक्षा शुरू होती है।

माहेश्वरी भवन, निजामाबाद में संतप्रवर का प्रवचन कार्यक्रम

जिंदगी में हर किसी को अहमियत दीजिए। विश्वास रखिए, जो अच्छे होंगे वे आपका साथ देंगे और जो बुरे होंगे वे आपको सबक देंगे। जिंदगी में सदा खुश रहो, गम को भुला दीजिए। न खुद रूठिए, न दूसरे को रूठने का अवसर दीजिए। खुद भी हँसकर जीने की कोशिश कीजिए और दूसरों को भी हँसकर जीना सिखा दीजिये।

राष्ट्र संत ने कहा कि कभी भी पीपल के पत्तों जैसा मत बनिए, जो वक्त आने पर सूखकर गिर जाते हैं। जिंदगी में हमेशा मेहन्दी के पत्तों की तरह बनिए, जो खुद घिसकर दूसरों की जिंदगी में रंग भर देते हैं। जिंदगी तस्वीर भी है और तकदीर भी। अगर इसमें अच्छे रंग मिलाओगे, तो वह सुन्दर बन जाएगी और अच्छे कर्म करोगे, तो तकदीर सँवर जाएगी। संतप्रवर ने कहा कि दुनिया में गाय की तरह रहो, साँप की तरह नहीं।

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संतप्रवर ने जीवन में विश्वास, रिश्ता और वचन बनाए रखने का संदेश दिया

गाय घास खाती है, पर बदले में दूध देती है और साँप दूध पीता है, पर बदले में जहर देता है। जो गाय की तरह रहेंगे, वह गोविन्द की तरह पूजे जाएँगे और जो साँप की तरह रहेंगे, वह शैतान कहलाएँगे। जीवन में विश्वास, रिश्ता, दिल और वचन मत तोड़िए। जब यह टूटते हैं, तो कोई आवाज नहीं होती, लेकिन दर्द बहुत होता है।

माहेश्वरी भवन, निजामाबाद में संतप्रवर का प्रवचन कार्यक्रम

संतप्रवर ने कहा कि रंगोली दो दिन की होती है, फिर भी उसे हम खूब सजाते हैं। ठीक वैसे ही जिंदगी भी कुछ वर्षों की है, इसे श्रेष्ठ कर्मों से सजाने की कोशिश कीजिए। केवल ज्यादा धन होने से जिंदगी में खुशियाँ नहीं आतीं, जिंदगी में खुशियाँ भरने के लिए प्रेम और मिठास का रंग घोलना जरूरी है। डॉ. मुनि शांतिप्रियसागरजी म.सा. ने कहा कि जीने के नाम पर तो सभी जीते हैं, पर असली जीना उसी का होता है, जिसे जीने की कला आती है।

आइने के सामने तो हर कोई सजता-सँवरता है, पर जिंदगी उसी की होती है, जो आइने सरीखी साफ-सुथरी जिंदगी जीता है। आर्ट ऑफ लिविंग के सैकड़ों सूत्र हैं, पर यदि हम इसकी एबीसीडी भी सीख लें, तो जीवन से जुड़े अनेक गिले-शिकवे मिटाए जा सकते हैं, प्रेम और आनंद के अनेक फूल खिलाए जा सकते हैं।

कार्यक्रम के लाभार्थी सुभाषचंद, मनोज, महेश गेलड़ा परिवार का श्री जैन संघ, निजामाबाद द्वारा अभिनंदन किया गया। प्रवचन और सत्संग का आयोजन गुरुवार, 20 नवंबर को सुबह 9.30 से 11.30 बजे तक माहेश्वरी भवन, निजामाबाद में होगा। सभी से इसका लाभ लेने का आग्रह किया गया।

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