माँएं

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माँएं!
हमारे हर दु:ख/हर सुख
हर तकलीफ को जानती हैं
जैसे नदियां जानती हैं
मछलियों की बेचैनी
हर्ष और उल्लास।

बस हम ही भूल जाते हैं माँओं को
जिनकी साँसों की संजीवनी
हमें उतप्त रक्त के शाश्वत प्रवाह से
निरंतर गतिमान रखती है।

माँएं पेड़ों की तरह होती हैं
बल्कि पेड़ ही होती हैं छायादार/साक्षात
पेड़ की छाल उतारकर देखेंगे जब आप
तो माँओं और पेड़ों का गोत्र एक ही पायेंगे।

माँएं
अपनी सारी ऊर्जा देकर
हमें मौसम की हर ज्यादती के खिलाफ
लड़ना सिखाती हैं
ज़िंदगी के कैलेंडर में
जब कोई रेखा विपरीत खिंची दिखती है
तो अपने आशीष से
उसका दिशा संधान करती हैं।

जब माँएं
कुछ नहीं करतीं
तो सूखे पेड़ की खोखल बनी
मौत का इंतजार करती हैं
घर की ढहती दीवारें
उन्हें देखती रहती हैं चुपचाप/और सोचती हैं
कहाँ चले गये वे पाँव
जिन्हें ठुमुक-ठुमुक कर
इन्होंने एक दिन
चलना सिखाया था
और अक्षांशों के पार जो बसे हैं देश
उनका पता बताया था।

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माँएं
धरती का भूगोल भी हैं
और इतिहास भी
आरंभ भी हैं/और अंत भी
मैं सोचता हूं कि
यदि मौत का इंतजार करतीं माँएं
अपनी संततियों को
दुआओं से सींचना बंद कर दें
तो फिर
धरती के भावी इतिहास का क्या बनेगा?

माँएं
हमारे हर दु:ख/हर सुख को जानती हैं
जैसे नदियां जानती हैं
मछलियों की बेचैनी
हर्ष और उल्लास!

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-सुभाष रस्तोगी

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