तेलंगाना : सिगाची हादसे की जाँच रिपोर्ट पर अदालत की फटकार
हैदराबाद, तेलंगाना उच्च न्यायालय ने पाशा मैलारम स्थित सिगाची फैक्ट्री विस्फोट की जाँच रिपोर्ट को लेकर तीव्र असंतोष जताया। हादसे में 54 लोगों की मौत हो गई थी। अदालत ने फटकार लगाते हुए कहा कि जाँच अधिकारी केवल फैक्ट्री कर्मचारियों, प्रत्यक्षदर्शियों और पीड़ितों से पूछताछ तक ही सीमित रहे। अदालत ने कानूनी प्रावधान के कार्यान्वयन में आपराधिक लापरवाही के लिए अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराने में विफलता की कड़ी निंदा की।
अदालत ने कहा कि यह ज्ञात नहीं है कि इस तरह की लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों को बर्खास्त किया गया या नहीं। अदालत ने सवाल उठाया कि क्या केवल एक विभाग ने ही निरीक्षण किया था, जबकि खतरनाक रेड जोन में स्थित उद्योग में एक दर्जन से अधिक विभागों को निरीक्षण करना था। अदालत ने कहा कि जाँच अधिकारी और अतिरिक्त अटार्नी जनरल पूछे गए सवालों का जवाब नहीं दे रहे, जबकि उन्हें मामले के संबंध में पूरी तैयारी के साथ आना चाहिए।
मामले की जाँच पर असंतोष जताते हुए जाँच में सहयोग हेतु अधिवक्ता डोमिनिक फर्नांडीस को अमिकस क्यूरी नियुक्त किया। साथ ही अदालत ने रजिस्ट्री को मामले से संबंधित सभी रिकॉर्ड सौंपने के आदेश दिए। हैदराबाद निवासी के. बाबू राव ने उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर कर सिगाजी फैक्ट्री में रिएक्टर विस्फोट की घटना के लिए मुआवजे की माँग की, जिसमें 8 लोग लापता और 28 लोग गंभीर रूप से घायल हो गए। उन्होंने जाँच में देरी होने के कारण विशेष जाँच दल द्वारा जाँच करवाने का आग्रह किया।
याचिका पर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश अपरेश कुमार सिंह और जस्टिस जी.एम. मोहियुद्दीन की खण्डपीठ ने आज पुन सुनवाई की। डीएसपी एस. प्रभाकर, इंस्पेक्टर विजयकृष्णा और कारखाना विभाग के उप-निरीक्षक पिछले आदेश के अनुसार आज सुनवाई में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित हुए।
निरीक्षण में विस्फोटक सामग्री की सीमा से अधिक उपस्थिति का खुलासा नहीं
सुनवाई के दौरान अतिरिक्त महाधिवक्ता तेरा रजनीकांत रेड्डी ने दलील देते हुए कहा कि जाँच अधिकारी पिछले आदेश के अनुसार उपस्थित हुए। उन्होंने कहा कि मामले को लेकर कई दस्तावेजों के साथ वह हाजिर हुए हैं, लेकिन इस समय वह एक संक्षित रिपोर्ट पेश कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि अधिकारियों, प्रत्यक्षदर्शियों और कारखाना श्रमिकों सहित 283 लोगों से पूछताछ कर उनके बयान दर्ज किए गए। इस दौरान खण्डपीठ ने हस्तक्षेप कर पूछा कि क्या निरीक्षण नियमों के अनुसार किया जा रहा है, तब डीएसपी ने जवाब दिया कि कारखाना निरीक्षक ने पिछले दिसंबर में कारखाने का निरीक्षण किया था।
इस दौरान खण्डपीठ ने पुन हस्तक्षेप कर कहा कि निरीक्षण के दौरान निरीक्षक ने कारखाने में सीमा से अधिक विस्फोटक सामग्री रखने का खुलासा नहीं किया और कहा कि इस विभाग की ऐसी स्थिति है, तब अन्य विभागों की क्या स्थिति होगी। खण्डपीठ ने टिप्पणी करते हुए कहा कि ऐसी घटनाएँ रातोंरात हुई लापरवाही के कारण नहीं होतीं, बल्कि अधिकारियों की दीर्घकालिक लापरवाही और आपराधिक कार्रवाइयों के कारण होती हैं।
खण्डपीठ ने कहा कि कई कानून और दिशा-निर्देश हैं, लेकिन इनका पालन नहीं किया जा रहा है। जाँच एजेंसी को सभी फैक्ट्री नियामक संस्थाओं की जाँच करनी चाहिए और जाँच की निगरानी करना अदालत की प्राथमिक जिम्मेदारी नहीं है। खण्डपीठ ने कड़े शब्दों में कहा कि फैक्ट्री प्रबंधन के खिलाफ आरोप-पत्र दायर किया जाएगा। जिस फैक्ट्री में 90 लोग काम करने वाले थे, वहाँ सिर्फ 50 मजदूर थे।
अस्थाई और ठेका मजदूरों को मुआवजा देने में अन्याय
मामले में श्रम व भविष्य निधि विभाग क्या कर रहा है, यह स्पष्ट किया गया कि यह कुछ समय से चली आ रही लापरवाही के कारण हुआ, जिसमें लोगों की जान गई और ऐसी घटनाएँ दुबारा नहीं होनी चाहिए। खण्डपीठ ने टिप्पणी करते हुए कहा कि यदि अधिकारियों को बर्खास्त भी कर दिया जाए, तो वह स्थिति की गंभीरता को नहीं समझेंगे। मुआवजे के भुगतान के बारे में पूछे जाने पर अतिरिक्त महाधिवक्ता ने जवाब दिया कि कानूनी तौर पर मिलने वाली हर चीज के साथ एक करोड़ रुपये दिए जाएँगे। हाल ही में 23 करोड़ रुपये जारी किए गए हैं।
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याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता वसुधा नागराज ने दलील देते हुए कहा कि अस्थाई और ठेका मजदूरों को मुआवजा देने में अन्याय हुआ है। लापता श्रमिकों की जाँच आगे नहीं बढ़ रही। दलील सुनने के पश्चात खण्डपीठ ने कहा कि सुनवाई स्थगित की जा रही है, क्योंकि अतिरिक्त महाधिवक्ता और जाँच अधिकारी रेड जोन के तहत आने वाले उद्योगों में लागू किए जाने वाले विभिन्न कानूनों और नियमों की निगरानी और विनियमन के लिए वैधानिक निकायों की भूमिका और अधिकारियों की जिम्मेदारी के बारे में पूछे गए सवालों के जवाब देने के लिए तैयार नहीं थे।
हालाँकि उन्होंने कहा कि जाँच जारी रह सकती है। साथ ही जिम्मेदार लोगों से पूछताछ की जा सकती है। खण्डपीठ ने सभी पक्षों को आदेश दिया कि वह जाँच के तरीके पर अपनी शंकाओं को दूर करने के लिए तैयार रहें। इस दलील के साथ मामले की सुनवाई 30 दिसंबर तक स्थगित कर दी। साथ ही कंपनी को घोषित मुआवजे के बारे में स्पष्ट विवरण पेश करने के आदेश दिए।
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