तेलंगाना हाईकोर्ट : जमीनों के नियमितीकरण पर उच्च न्यायालय हैरान
हैदराबाद, तेलंगाना उच्च न्यायालय ने सरकारी अधिकारियों को स्पष्ट करते हुए कहा कि वे पूर्व सांसद और सरकारी सलाहकार केशव राव के पुत्र के. वेंकटेश्वर राव और हैदराबाद की महापौर गदवाल विजयलक्ष्मी जमीनों के नियमितीकरण के संबंध में नीतिगत निर्णय के अनुसार सही निर्णय ले। न्यायालय ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि उनके पक्ष में लिए गए निर्णय की समीक्षा की जानी चाहिए और हुई गल्ती को सुधारा जाना चाहिए।
न्यायालय ने चेतावनी दी कि यदि पूर्व निर्णय को उचित ठहराया जाता है, तो अदालत को आदेश जारी करने होंगे। न्यायालय ने कहा कि निजी व्यक्तियों के लिए सरकारी जमीनों का नियमितीकरण करते समय सरकार द्वारा लाए गए नीतिगत निर्णय को सभी पर समान रूप से लागू किया जाना चाहिए। अदालत ने सवाल उठाया कि किसी एक व्यक्ति के पक्ष में निर्णय कैसे लिया जा सकता है।
न्यायालय ने 1998 के सरकारी आदेश संख्या 56 की सुनवाई की
सिद्दिपेट ज़िले के कोंडापाका के जी. रघुवीर रेड्डी ने गत 23 मई, 2023 को पूर्व भारास सरकार द्वारा जारी सरकारी आदेश संख्या 56 को चुनौती देते हुए उसी वर्ष एक जनहित याचिका दायर की थी, जिसमें केशव राव के पुत्र और पुत्री की जमीनों को नियमित किया गया था। उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस अपरेश कुमार सिंह और जस्टिस जी.एम. मोहियुद्दीन की खण्डपीठ ने आज इस मामले की सुनवाई की।
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता वाई. श्रेयस रेड्डी ने दलील देते हुए कहा कि सरकार ने वर्ष 1998 में सरकारी आदेश संख्या 56 जारी कर बंजारा हिल्स झुग्गी बस्ती में केशव राव के पुत्र वेंकटेश्वर राव की 1,161 वर्ग गज जमीन को 2,500 रुपये प्रति वर्ग गज के बाजार मूल्य पर और विजयलक्ष्मी को जीपीए धारक के रूप में 425 वर्ग गज जमीन को 350 रुपये प्रति वर्ग गज के बाजार मूल्य पर नियमित किया था। उन्होंने कहा कि उस समय सरकार द्वारा निर्धारित बाजार मूल्य 60 हजार रुपये प्रति वर्ग गज से अधिक था। उन्होंने कहा कि वर्तमान में इस जमीन का मूल्य करोड़ों रुपये है। जब 1998 में नियमितीकरण के लिए आवेदन किया गया था, तब पूर्व भारास सरकार ने इस आवेदन पर उस समय के बाजार मूल्य के आधार पर ही नियमित किया।
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1998 में जमीन नियमितीकरण में बाजार मूल्य के आधार पर विवाद
अतिरिक्त महाधिवक्ता मो. इमरान खान ने दलील देते हुए कहा कि यह विशेष रूप से जारी किया गया सरकारी आदेश था। प्रतिवादियों ने तत्कालीन वित्त मंत्री को याचिका पेश की थी और कहा था कि एक भूखंड में पहले से ही बिजली का कनेक्शन था। इसीलिए नियमितीकरण बाजार मूल्य पर किया गया था।
दलील सुनने के बाद खण्डपीठ ने कहा कि इस मामले में यह नहीं कहा गया था कि निजी व्यक्तियों को जमीन से हटाया जाए, बल्कि यह कहा गया था कि नीति के अनुसार निर्णय लिया जाना चाहिए। यदि अतिक्रमित भूमि को नियमित करने के लिए कोई नीति लाई गई है, तो उसे सभी पर समान रूप से लागू किया जाना चाहिए। खण्डपीठ ने कहा कि इस मामले में ऐसा प्रतीत होता है कि निजी व्यक्तियों के साथ उदारतापूर्वक और अनुकूल व्यवहार किया गया है और इस मामले में सरकार का निर्णय संतोषजनक नहीं है।
खण्डपीठ ने सवाल उठाया कि क्या आम लोगों की जमीन को नियमित करने के ऐसे ही मामले सामने आए हैं। झुग्गी झोपड़ियों में जमीन को नियमित करने की सीमा 50 से 100 गज है और यहाँ इसके अनुसार नहीं किया गया। सरकारी आदेश के बाद वर्ष 1998 में आवेदन की तारीख पर बाजार मूल्य के बजाय उस समय के मूल्य को मानकर शुल्क वसूलना उचित नहीं है।खण्डपीठ ने कहा कि नियमितीकरण के निर्णय में कोई गलती हो सकती है और प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचाए बिना इसे सुधारने में कोई बुराई नहीं है। इस दलील के साथ मामले की सुनवाई 7 जनवरी तक स्थगित कर दी गई और अधिकारियों को मामले की जाँच करने और निर्णय लेने का आदेश दिया गया। यदि गलती को सुधारा जाता है, तो मामले को न्यायालय की दृष्टि में लाने के भी आदेश दिए गए।
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