शिष्य का कल्याण कैसे करते हैं गुरु ?

गुरु गंगा नदी की भांति अपने ज्ञान के शीतल प्रवाह से शिष्य के मन में स्थित गंद को पूरी तरह साफ करके उसे शुद्ध और प्रबुद्ध करते हैं। अज्ञानतावश हम गुरु की शरणागति से अधिक महत्व शास्त्रां के ज्ञान, व्रत, उपवास, तीर्थ, हवन, मंत्र जाप, सिद्धि, आसन, प्राणायाम या कुंडलिनी जागरण आदि को देते हैं और पीढ़ियों से चली आ रही परंपराओं तथा पूजा-पद्धतियों का निर्वाह करते हुए हमारा मानव जीवन कब समाप्ति पर पहुंच जाता है, इसका हमें एहसास ही नहीं हो पाता है।
मानव रूप में जन्म लेना खुद में एक बहुत बड़ी उपलब्धि है और उससे भी बड़ी उपलब्धि है- मानव की गुरु शरणागति। बिना गुरु की शरणागति के मानव जीवन सार्थक नहीं हो सकता। जैसे एक मां अपने बच्चों की सुख-सुविधा, भूख-प्यास का हर समय ख्याल रखती है, उसी तरह गुरु भी अपने प्रत्येक शिष्य का ख्याल रखते हैं, क्योंकि हर गुरु में करोड़ों माताओं की ममता समायी है। गुरु ममता का स्रोत है। गुरु बिना किसी भेदभाव और अपेक्षा के हमारी सारी कमियों के साथ स्वीकार करते हैं। इसीलिए कहा जाता है कि गुरु का मिलना जीवन की महत्वपूर्ण घटना होती है।
गुरु का उद्देश्य: शिष्य का आत्मिक कल्याण और मोक्ष की ओर मार्गदर्शन
गुरु हमें अपनी करुणा और प्रेम के पाश में बांधते हैं और जब हम उनके प्रेम में बंध जाते हैं तब वे अपने ज्ञान का अमृत हमें पिलाकर हमें जीवन, कर्म, संसार आदि के बंधनों से मुक्त कर देते हैं।गुरु के वचनों व क्रियाओं को बुद्धि से नहीं आंकना चाहिए, क्योंकि वे सब कुछ आत्मिक स्तर पर और आत्मिक उद्धार के लिए करते हैं। हमारे जीवन के कई उद्देश्य होते हैं, मोटे तौर पर धर्म, अर्थ, काम और अंत में मोक्ष की प्राप्ति, लेकिन गुरु के जीवन का एक ही उद्देश्य होता है-प्रत्येक शिष्य का कल्याण करना। इसके लिए वे साम, दाम, दंड, भेद सभी नीतियां अपनाते हैं।
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यहां साम का अर्थ है- शिष्य के गुणों को पहचान कर उसके अनुरूप शिष्य का उद्धार करना, दाम अर्थात् ज्ञान धन लुटाना, यदि जाने-अनजाने शिष्य का अहंकार बढ़ने लगे तो उसकी परीक्षा लेना मतलब दंड ताकि वह अपने मार्ग से फिसल न जाए। जीव, आत्मा और परमात्मा के भेद का गूढ़ रहस्य प्रकट करके अनित्य संसार में छुपे उस परम नित्य में शिष्य को स्थित करना यानी भेद के परे अभेद अभिन्न एकाकार की अनुभूति करवाना। गुरु सत्संग में न केवल हमें ज्ञान देते हैं बल्कि हमें उस ज्ञान में स्थापित करते हैं। गुरु के सान्निध्य की तरंगें हमारी नकारात्मकता को सकारात्मकता में परिवर्तित करती हैं।
गुरु की डांट उद्धार की आहट
गुरु की डांट हमारे उद्धार की आहट होती है। गुरु शिष्य के कल्याण के लिए अपना समय रूपी धन देते हैं, कृपा और शक्तिपात से नवीन प्राणों का संचार करते हैं। इसीलिए कहा गया है कि गुरु के चरणों में अपना शीश काट कर रख देना पर भी यह बहुत सस्ता सौदा है। गुरु हमें जो भी देते हैं, वह अनंत है, असीम है, अनमोल है। जो स्वयं अनंत है, असीम है, समस्त चराचर में व्याप्त है, उसे शिष्य क्या दे सकते हैं? गुरु दक्षिणा का अर्थ है- गुरु के ज्ञान को जीवन में उतारकर आत्मबोध में स्थित हो, आनंदित जीवन जीते हुए गुरु की गुरुता को फैलाना। गुरु अपने भाव व संकल्प से देश-काल के पार जाकर कष्ट उठाकर भी शिष्य का निरंतर कल्याण करते हैं ।

–सद्गुरु रमेश
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