अमावसु पितर को अर्पित है अमावस्या तिथि
बहुत कम लोग जानते हैं कि अमावस्या तिथि को अमावस्या ही क्यों कहा जाता है? इस नामकरण के साथ पितरों की एक गाथा जुड़ी है, जिससे पता चलता है कि अमावस्या का नामकरण अमावसु पितर के नाम पर रखा गया है। पितृपक्ष में अमावस्या तिथि पर ही पितर लोग धरती पर अपनी संतानों से भोग ग्रहण करके अपने लोक को विदा होते हैं।
कथा
अनादिकाल में एक प्रतापी त्रषि-कन्या के हृदय में इच्छा उत्पन्न हुई कि वह सशरीर पितृलोक की यात्रा करे और वहां अपने पूर्वजों के दर्शन करे। इसके लिए उसने वर्षों तक कठोर तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर उसके पूर्वज प्रकट हुए और उसकी इच्छा पूछी। पितरों के स्वरूप को देखते ही वह अपनी इच्छा भूल गई। पूर्व में उसने सोचा था कि सभी पितृगण वृद्ध और शरीर से अशक्त होंगे, लेकिन उसने देखा कि पितृगण युवा और कांतियुक्त शरीर के थे।
मान्यता है कि पितृलोक में आयु का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, अत: सभी पितर नवयुवक थे। त्रषि कन्या यह देख आश्चर्यचकित हो अपनी इच्छा भूल गई। प्रकट हुए पितरों में एक अमावसु नामक पितर थे, जो अत्यंत सुंदर थे। जब पितरों ने उससे पुन उसकी इच्छा पूछी तो त्रषि-कन्या ने अत्यंत सुंदर दिखने वाले अमावसु पितृ से कहा, मेरी इच्छा आप स्वयं हैं, मैं चाहती हूं कि आप मुझे अपनी धर्मपत्नी के रूप में स्वीकार करें।
त्रषि-कन्या की बात सुन कर समूचे पितफलोक में आत्मग्लानि के भाव उत्पन्न हो गए। भला किसी पितर की अपनी संतान उससे विवाह की कामना करे, यह कैसे संभव हो सकता था? मानव की अपेक्षा पितृगण अपनी सीमा और अपने उत्तरदायित्व को भलीभांति जानते थे।
अत: उन्होंने नादान त्रषि-कन्या को सस्नेह समझाने का प्रयत्न किया, लेकिन उसने उनकी एक भी बात नहीं मानी। उसका हठ देखकर अमावसु पितृ को क्रोध आ गया। उन्होंने उसे शाप दिया कि तुम न तो पितृलोक में आ सकोगी और न कभी तुम्हारी कोई तपस्या सफल होगी, यह कहकर पितृ वापस लौट गये। उनके जाने के पश्चात त्रषि-कन्या का मोह टूटा, पर अब क्या किया जा सकता था।
पितृपक्ष और अमावस्या तिथि का महत्व
कहा जाता है कि अमावसु की विद्वता देखकर पितृगण प्रसन्न हुए। देवताओं ने भी अमावसु की प्रशंसा की और घोषणा की कि यह दिन धरती पर अमावसु के नाम पर अमावस्या तिथि के रूप में प्रसिद्ध होगा। अमावस्या तिथि का महत्व सर्वाधिक माना जाएगा। अपने पितरों की दिवंगत तिथि ज्ञात न हो तो उन्हें अमावस्या तिथि को संतुष्ट कर सकेंगे।
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पितृपक्ष में पितृ धरती पर आकर अपनी संतानों से भोजन प्राप्त करते हैं और अमावस्या तिथि तक अपना-अपना अंश ग्रहण करके पितृ लोक वापस लौट जाते हैं। अमावस्या तिथि को जो भी अपने पितरों के निमित्त श्रद्धापूर्वक नमन करता है, पितरों के आशीर्वाद से उसकी बाधाएँ दूर होती हैं और उन्नति का मार्ग प्रशस्त होता है।
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