सामूहिक जीवन को उर्जस्वित करने का अवसर

भारतीय संस्कृति में पर्व और त्योहार केवल उत्सव का माध्यम नहीं होते। ये आत्मशुद्धि, सामूहिक जीवन को ऊर्जावान बनाने आदि का अवसर भी होते हैं। शारदीय नवरात्रि इन्हीं में से एक हैं। धार्मिक दृष्टि से यह पर्व मां दुर्गा और उनके नौ रूपों की उपासना का विशेष पर्व है, जिसे शक्ति की साधना का चरम अवसर माना गया है।
शारदीय नवरात्रि की जड़ें हमारे प्राचीन ग्रंथों और पुराणों में मिलती हैं। मार्कण्ड्ये पुराण में वर्णित देवी महात्म्य या दुर्गा सप्तशती इसके आधार हैं। एक कथा है कि महिषासुर नामक असुर ने तीनों लोकों को अपने आंतक से त्रस्त कर रखा था। तब देवताओं की प्रार्थना पर तीनों यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश की संयुक्त शक्तियों से देवी दुर्गा प्रकट हुईं और नौ दिनों तक महिषासुर तथा उसके असुर सैनिकों से भीषण युद्ध कर दसवीं को उसका वध किया।
नवरात्रि : देवी उपासना और जीवन मूल्यों का प्रतीक
इसीलिए शारदीय नवरात्रि के बाद आने वाले दशहरा को विजय पर्व कहा जाता है। एक अन्य धार्मिक मान्यता है कि श्रीराम ने लंका विजय से पूर्व मां दुर्गा की आराधना इसी समय की थी। अकाल बोधन के रूप में की गई उनकी उपासना से उन्हें विजय प्राप्त हुई, इसीलिए बंगाल में नवरात्रि का विशेष स्वरूप दुर्गा पूजा के रूप में देखने को मिलता है।
वास्तव में शारदीय नवरात्रि मां दुर्गा के नौ रूपों की उपासना है और नवरात्रि का प्रत्येक दिन किसी एक रूप की आराधना को समर्पित है। एक, शैलपुत्री- पर्वतराज हिमालय की पुत्री आरंभ और स्थिरता का प्रतीक है। दूसरा, ब्रह्मचारिणी- तपस्या और संयम का संदेश देने वाली। तीन, चंद्रघटा- साहस और पराम देने वाली। चार, कुषमाण्डा- सृष्टि की अधिष्ठाती। पांच, स्कंदमाता- मातृत्व और करुणा का रूप। छठवां, कात्यायनी- शक्ति और साहस की देवी।
सातवां, कालरात्रि- अंधकार का नाश कर प्रकाश लाने वाली। आठवां, महागौरी- पवित्रता और शक्ति की प्रतिमूर्ति। नवां, सिद्धिदात्रि- सिद्धियों और दिव्य शक्तियों को देने वाली। शारदीय नवरात्रि में इन नौ रूपों की पूजा केवल देवी स्तुति नहीं है बल्कि जीवन में आवश्यक गुणों को आत्मसात करने का प्रतीक भी है। नवरात्रि में विधिपूर्वक घट स्थापना की जाती है। घट या कलश को देवी का प्रतीक मानकर उसमें नारियल, आम के पत्ते और जल भरकर रखा जाता है।
नवरात्रि : साधना, संयम और विजय का उत्सव
घर के पवित्र स्थान पर घट की स्थापना करके अखंड ज्योति जलायी जाती है, जो नौ दिनों तक निरंतर प्रज्वलित रहती है। यह ज्योति भक्त की आस्था और साधना का द्योतक है। पूरे नौ दिनों तक देवी मां की आराधना, दुर्गा सप्तशती का पाठ, भजन कीर्तन और उपवास किये जाने का विधान है। गंध, पुष्प, अक्षत, धूप-दीप आदि से देवी की पूजा की जाती है। आठवें दिन कुंवारी कन्याओं को देवी का स्वरूप मानकर घर में आमंत्रित करके कंजक पूजन किया जाता है।
नवरात्रि के दौरान उपवास का विशेष स्थान है। उपवास केवल भोजन का त्याग नहीं है बल्कि मन और इंद्रियों पर नियंत्रण का साधन है। धार्मिक दृष्टि से माना जाता है कि इस समय तपस्या और संयम करने से मनवांछित मनोकामना पूरी होती है। शारदीय नवरात्रि के नौ दिन व्रत रखने वाले लोग, फलाहार, दुग्धाहार या सिर्फ पानी पीकर जीवित रहते हैं। इस संयम से शरीर शुद्ध होता है और आत्मा एकाग्रचित होती है।
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नवरात्रि के अंतिम दिन दशहरा का पर्व मनाया जाता है। धार्मिक और पौराणिक दृष्टि से यह असत्य पर सत्य की विजय है। अन्याय पर न्याय की और अधर्म पर धर्म की विजय का यह प्रतीक माना जाता है। इस दिन नवरात्रि पर शुरु होने वाली रामलीलाओं का समापन होता है। रावण-दहन के साथ लोग एक-दूसरे को बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेशा देते हैं। इस तरह शारदीय नवरात्रि के नौ दिनों का धार्मिक और कर्मकांडीय उत्सव पूर्ण होता है।
-आर.सी.शर्मा
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