पशु व कुम्हड़े की दी जाती है बलि

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नवरात्रि में कई जगहों पर माँ दुर्गा की प्रतिमा स्थापित की जाती है। सनातन धर्म में इस पूजा का विशेष महत्व है। इस पूजा में माता को प्रसन्न करने के लिए बलि प्रथा सदियों से चली आ रही है। कई मंदिरों में बलि प्रथा अभी भी प्रचलित है। कई लोग सप्तमी व अष्टमी को निशा बलि देते हैं।

कुछ लोग सप्तमी की रात में ही निशा बलि देते हैं तो कुछ लोग अष्टमी की रात में निशा बलि देते हैं, जिसमें कुष्मांडा फल को बलि के रूप में उपयोग किया जाता है। कई घरों में क्षागर की भी बलि दी जाती है। मान्यता है कि मां को बलि अतिप्रिय है। उन्होंने जब महिषासुर व उसके सैनिकों का संहार किया था, तभी से बलि प्रथा प्रचलित हुई है।

पहले कई जगहों पर नरबलि दी जाती थी, लेकिन धीरे-धीरे यह प्रथा बंद हो गई है। उसके स्थान पर भक्त पशु की बलि देने लगे हैं। कहा जाता है कोई सिद्धि या कोई मनोकामना पूर्ण होने पर माता को बलि दी जाती है। सनातन धर्म में हर कुल की अलग-अलग देवी होती है। ऐसे में घरों में पशु के स्वरूप में भक्त कुम्हड़े की बलि देते हैं।

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यदि कोढ़ा बलि के दिन उपलब्ध नहीं हो तो आटे की बलि भी दे सकते हैं। गेंहू के शुद्ध आटा को सानकर उससे भेड़ या पक्षी के आकार का बना कर उसकी बलि दी जाती है। माता को बलि अति प्रिय है। लोग अपनी मन्नतें पूरी होने पर भी माता को बलि देते हैं। शहर में भी ऐसे प्रसिद्ध मंदिर हैं, जहां हजारों की संख्या में बलि दी जाती है।

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