साधना का मेरूदंड है ब्रह्मचर्य : सुमंगलप्रभाजी

हैदराबाद, साधना का मेरूदंड है ब्रह्मचर्य। साधना के दौरान साधक पूर्ण रूप से ब्रह्मचर्य का पालन करेगा, तो उसकी साधना सफल होगी। इसलिए ब्रह्मचर्य को तपों में सर्वश्रेष्ठ कहा गया है। उक्त उद्गार सिकंदराबाद मारुति विधि जैन स्थानक में श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ सिकंदराबाद द्वारा आयोजित चातुर्मासिक धर्म सभा को संबोधित करते हुए साध्वी डॉ. सुमंगलप्रभाजी म.सा. ने व्यक्त किये।
पूज्यश्री ने कहा कि एक भिक्षु वह होता है, जो जीवन में घर-घर जाकर भिक्षा माँगता है और आजीविका के लिए भीख माँगता है। उसी से गुजर बसर करता है। एक भिक्षु वह होता है, जो संयम जीवन को अंगीकार करता है। दोनों में अंतर होता है। सयंमी भिक्षु का जीवन प्रकाश पुंज उपयोगी होता है। वह स्व कल्याण के लिए जीवन को जीता है, जो विकार राग द्वेष से ऊपर उठने की चेष्टा करता है। वह स्वयं तो तिरता ही है, पर दूसरों को भी तिराने की बात बताता है। ऐसे भिक्षु विषय वासना, राग, द्वेष से ऊपर होते हैं। दोनों प्रकार के भिक्षु में एक असली खरा सोना होता है और दूसरा नकली।
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भिक्षु जीवन, ब्रह्मचर्य और शील पर साध्वी का प्रवचन
आजकल आर्टिफिशियल आभूषण की चमक दमक है, जिनको बेचने के लिए जाएँ तो मूल्य भी नहीं मिलता, जबकि असली सोना कसौटी पर खरा होगा, जबकी नकली सोना खरा नहीं होगा। म.सा. ने कहा कि भिक्षु खरे सोने की तरह है, जो सयमं जीवन में सभिक्षु कहलाते हैं, दूसरे भिक्षु तो पाखंडी होते हैं, जो किसी के द्वार पर हाथ फैला देते हैं दिया तो आशीर्वाद देंगे और नहीं दिया तो नाराज होकर अनगर्ल शब्द बोलेंगे। वहीं सद्भभित्रु को सम्मान मिले या तिरस्कार, वह कभी अपने जुबान से किसी को अनर्गल नहीं बोलता। भिक्षा मिले या न मिले वह समभाव में रहेगा।
म.सा. ने बताया कि उत्तराध्ययन सूत्र 16 में ब्रह्मचर्य समाधि का स्थान बताया गया है। भारतीय संस्कृति की पहचान शील, ब्रह्मचर्य से होती है। शील का पालन जैन धर्म का प्राण श्वास कहलाता है। शील के प्रभाव से ही साधना में उत्तरोत्तर प्रगति प्राप्त होती है। वर्तमान में पाश्चात्य संस्कृति के वेश से पता नहीं लगता है कि सामने वाला लड़का है या लड़की। उत्तराध्ययन सूत्र को मन के भीतर श्रद्धा, भक्ति, आस्था के साथ धारण कर शील आराधना के साथ जीवन जियेंगे, तो कल्याण होगा।
सभा का संचालन विमल पितलिया ने किया। कार्याध्यक्ष शांतिलाल बोहरा ने बताया कि वंदना मासखमन में अनेक श्रद्धालुओं ने भाग लिया। संघपति संपतराज कोठारी ने बताया कि सुबह 8.30 से 9.30 बजे तक उत्तराध्ययन सूत्र वाचन के पश्चात विवेचना रहेगी। अल्पाहार की व्यवस्था लाभार्थी हस्तीमल, मोहनलाल, प्रणय मुणोत परिवार एवं प्रेमराज, पारसमल, धनराज कोठारी परिवार की ओर से की गयी।
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