संस्कृति और प्राचीन परंपरा का महापर्व छठ

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छठ एक अति प्राचीन हिंदू पर्व है, जो भगवान सूर्य और छठी मईया को समर्पित है। इस पर्व का मतलब प्रकृति, सूर्य और जीवन-शक्ति के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना तथा उनका आशीर्वाद हासिल करके पारिवारिक व सामाजिक समरसता को बढ़ावा देना है। छठ पूजा सूर्य को अर्घ्य देने और छठी मईया से आशीर्वाद प्राप्त करने का अनुष्ठान है। भारत में छठ के सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व की बहुत लंबी परंपरा है।

तिथि मुहूर्त

25 अक्तूबर, शनिवार : नहाय-खाय
26 अक्तूबर, रविवार : लोहंडा, खरना
27 अक्तूबर, सोमवार : सूर्य अस्तगामी अर्घ्य
28 अक्तूबर, मंगलवार : सूर्योदय अर्घ्य

छठ पर्व विशेषकर बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तरप्रदेश और नेपाल में सैकड़ों सालों से मनाया जा रहा है। यह स्थानीय लोगों के बीच सहयोग, सामुदायिक भावना और आराधना की एकता का पर्व है। नदी किनारे सभी लोग एकत्र होकर पूजा करते हैं। एक-दूसरे के साथ पारिवारिक संबंध विकसित करते हैं और प्रकृति के साथ अपने जुड़ाव की गहराई महसूस करते हैं। छठ पर्व इसी सामाजिक ताने-बाने का महापर्व है।

छठ पर्व: ऐतिहासिक कथाएँ और नहाय-खाय अनुष्ठान

महाभारत और दूसरे धार्मिक ग्रंथों में छठ पर्व से संबंधित अनेक कहानियां मिलती हैं। माना जाता है कि द्रोपदी ने वनवास के समय छठ व्रत किया था और तभी से छठ की परंपरा विकसित हुई है। एक अन्य धार्मिक कथा के मुताबिक, भगवान राम और सीता ने अयोध्या लौटने के बाद सूर्य को अर्घ्य दिया था। कुछ लोगों के मुताबिक छठ पर्व की परंपरा तभी से प्रचलित हुई। लेकिन इसके कई अन्य स्रोत इसे वैदिक विधि-विधानों से जोड़ते हैं।

माना जाता है कि छठ पर्व पूजा, संयम और मानसिक शांति का प्रतीक है। यह पर्व मूलत चार दिनों का अनुशासनात्मक अनुष्ठान है। पहले दिन छठ पूजा की तैयारी की जाती है। जैसे- छठ पर्व के एक दिन पहले व्रती भोजन और मांसाहार का त्याग कर देते हैं। अपने घर और घाट की सफाई करते हैं। छठ पूजा के पहले दिन को नहाय-खाय कहा जाता है। इस दिन व्रती जलाशय में स्नान करते हैं और शुद्धता व संयम के साथ भोजन करते हैं।

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छठ पूजा: संयम, पवित्रता और प्रकृति का महत्व

दूसरे दिन को खरना कहते हैं। इसमें व्रती दिन भर व्रत रखकर शाम को पारणा करते हैं। इस दिन खीर, फल और मिठाई आदि का प्रसाद बनाते हैं और सूर्यास्त को अर्घ्य देकर भोग लगाते हैं। तीसरे दिन को अस्ताचल अर्घ्य कहा जाता है। यह इस पर्व का मुख्य अनुष्ठान होता है। इस दिन व्रती और उसके अन्य साथी नदी या तालाब किनारे इकट्ठे होते हैं और सूर्यास्त के समय सूर्य को नदी या तालाब के भीतर खड़े होकर अर्घ्य देते हैं। इस दिन संध्या समय स्तुति, भक्ति गीत और लोक गीत गाये जाने की परंपरा है। जबकि छठ पर्व का चौथा दिन उषा अर्घ्य या उदय अर्घ्य कहलाता है। इसमें सूर्योदय के समय व्रती भगवान सूर्य को अर्घ्य देते हैं, जिससे छठ-व्रत पर्व समाप्त होता है।

इस तरह लोग पूजा-स्थल से घर लौटकर, घर-परिवार और अपनी जान-पहचान के लोगों में प्रसाद का वितरण करते हैं। इन अनुष्ठानों में संयम, पवित्रता और सामूहिकता का बहुत महत्व है। इस पूरे पर्व में प्रकृति की पूजा होती है। छठ पूजा सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है बल्कि यह गहरे आध्यात्मिक जीवन से जुड़ा पर्व है। इसमें व्रती संयम और नियम से तीन दिन गुजारते हैं। यह साधना मन को नियंत्रण में लाती है। आत्मसंयम की शक्ति को बढ़ाती है। इस पर्व के साथ प्रकृति और प्रकृति आश्रित जीवन भी भव्य परंपरा जुड़ती है।

छठ पर्व स्मरण दिलाता है कि हम सब प्रकृति की संतानें हैं। सूर्य ऊर्जा, जल स्रोत, पृथ्वी की उपज हमें जीवन देती है। हमें इन संसाधनों का आदर करना चाहिए। इन्हें स्वच्छ रखना चाहिए। छठ पूजा का मूल भाव कृतज्ञता है। जीवन देने वाले सूर्य और उसकी शक्ति के प्रति आभार प्रकट करना है।

धीरज बसाक

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