नरकासुर वध स्मृति पर्व छोटी दीपावली

Ad

तिथि मुहूर्त
पाम पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी 19 अक्तूबर, रविवार की दोपहर 1 बजकर 51 मिनट से शुरु हो रही है, जिसका 20 अक्तूबर, सोमवार की दोपहर 3 बजकर 44 मिनट पर समाप्त होगी। अत चतुर्दशी तिथि दो दिन पड़ रही है। इस आधार पर नरक चतुर्दशी या रूप चौदस की पूजा 19 अक्तूबर, रविवार की रात को होगी, जबकि अभ्यंग स्नान 20 अक्तूबर, सोमवार की भोर में किया जाएगा।
शुभ योग
इस साल नरक चतुर्दशी पर अमृतसिद्धि योग और सर्वार्थसिद्धि योग बन रहे हैं।
नरक चतुर्दशी पूजा मुहूर्त
19 अक्तूबर, रविवार की शाम 5 बजकर 58 मिनट से शाम 6 बजकर 23 मिनट तक।
रूप चौदस अभ्यंग स्नान मुहूर्त रूप चौदस अभ्यंग स्नान मुहूर्त 20 अक्तूबर, सोमवार सूर्योदय से पूर्व 5 बजकर 13 मिनट से 6 बजकर 25 मिनट तक।

पौराणिक कथा

कहा जाता है कि कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर का वध करके सोलह हजार कन्याओं को कारावास से मुक्त कराया था। इस विजय की स्मफति में दीप जलाए गए और यह परंपरा छोटी दिवाली के रूप में आज भी जारी है। इस दिन हनुमानजी, यमराज और श्रीकृष्ण की पूजा का विशेष महत्व है।

सुबह जल्दी उठकर उबटन लगाने, कड़वे पत्तों (नीम, चिचड़ी आदि) के जल से स्नान करने या तिल के तेल से स्नान करने की परंपरा है। इसे रूप चौदस कहा जाता है। मान्यता है कि इस स्नान से रूप-लावण्य और तेज की प्राप्ति होती है। सनातन धर्म ग्रंथों में इस बात का उल्लेख है कि भगवान सूर्य तथा उसके प्रकाश की पूजा करना अति प्राचीन परंपरा है। आश्विन और कार्तिक माह में सूर्य विषुवत रेखा पर होता है, इसलिए इसे शरद संपात भी कहा जाता है।

वर्षा त्रतु के अंत व शीत प्रारंभ होने की खुशी में दीपावली पर्व मनाए जाने का उल्लेख है। इसलिए वर्ष के इस महान व पुनीत पर्व से पूर्व मृत्यु के देवता यम की पूजा-अर्चना करते हुए, उसके नाम का दीपक जलाकर अकाल मृत्यु से मुक्ति की याचना करते हुए, दीर्घायु की कामना करने की परिपाटी चली आ रही है। इसे कहीं नरक चौदस या यम चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है।

जीवों के शुभाशुभ कर्मों के निर्णायक हैं यमराज

वैसे तो अंधकार को मृत्यु का प्रतीक माना जाता है, लेकिन पौराणिक मान्यताओं के आधार पर यम को ही मृत्यु का देवता माना गया है। माना गया है कि मानव कल्याण की दिशा में बलि होने वाले प्रथम पुरुष महर्षि और परम ज्ञानी यमदेव ही थे। अत: जीवन के गूढ़ रहस्य को समझने व इसे प्रचारित करने वाले एक व्याख्याता होने के यमराज में सर्व गुण हैं।

Ad

यमराज को यमुना का भाई भी माना गया है, जो यम द्वितीया के दिन उनको तिलक लगाकर भ्रातफ-स्नेह का परिचय देती हैं और अपनी रक्षा का वचन लेती हैं। यमदेव इस सफष्टि को व्यवस्थित रखने के लिए अपना काल पा चलाते हैं, जिससे बदलाव होता है। मृत्यु को मनुष्य ने कठोर सत्य के रूप में स्वीकारा है, इसीलिए यमराज को मृत्यु के प्रतीक स्वरूप भी स्वीकार किया गया है, इसीलिए प्राणी प्रतिपल मृत्यु की कामना करते हैं।

नचिकेता से यमराज तक: आत्मा, ज्ञान और दीपोत्सव की कथा

यमराज वैसे तो एक वैदिक त्रषि का नाम था, जिन्होंने देवताओं के लिए स्वयं मृत्यु को स्वीकारा था, लेकिन उन्होंने मनुष्य के लिए अमरत्व की कामना नहीं की, बल्कि अपनी बलि देकर देह का परित्याग किया। कालान्तर में वही सूर्य के पुत्र आदित्य के नाम से जाने गए, जो दक्षिणांचल के स्वामी बनाए गए। देवलोक व यमलोक के विकास के पश्चात वह यमलोक के स्वामी हुए और उन्हें मृत्यु के देवता की उपाधि प्रदान की गई।

यह भी पढ़े : पर्व के वर्जित एवं विशेष कार्य

पुराणों में सर्वविदित है कि त्रषि उद्दालक ने अपने पुत्र नचिकेता को गुस्से में यमराज को भेंट कर दिया था। नचिकेता ने यमलोक में यमराज से आत्मा का रहस्य जानना चाहा, जिसे यमराज ने नहीं बताया बल्कि यमलोक में ब्रह्मलोक का ज्ञान अवश्य उसे दिया था। कहा जाता है कि पुन: भूलोक पर आने व ज्ञान प्राप्त करने की खुशी में कार्तिक चतुर्दशी को मृत्युलोक (संसार) में सर्वत्र दीप जलाकर उन्होंने प्रकाशोत्सव का शुभारंभ किया था।

अब आपके लिए डेली हिंदी मिलाप द्वारा हर दिन ताज़ा समाचार और सूचनाओं की जानकारी के लिए हमारे सोशल मीडिया हैंडल की सेवाएं प्रस्तुत हैं। हमें फॉलो करने के लिए लिए Facebook , Instagram और Twitter पर क्लिक करें।

Ad

Related Articles

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *

Back to top button