भारत में कोर्ट ने X की ‘मुक्त अभिव्यक्ति’ याचिका खारिज की, सरकार को दिया समर्थन


हैदराबाद, कर्नाटक उच्च न्यायालय ने अमेरिका की सोशल मीडिया कंपनी X (पूर्व ट्विटर) द्वारा भारतीय सरकार के कंटेंट हटाने के आदेशों को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि विदेशी कंपनियों को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत मुक्त अभिव्यक्ति का अधिकार नहीं है। अनुच्छेद 19 केवल भारतीय नागरिकों के लिए लागू होता है।
न्यायालय ने बुधवार को सरकार के केंद्रीकृत ऑनलाइन पोर्टल ‘सहयोग’ के माध्यम से कंटेंट हटाने के आदेशों को वैध माना। इस पोर्टल के जरिए सरकारी एजेंसियां सीधे सोशल मीडिया कंपनियों को अवैध या आपत्तिजनक सामग्री हटाने के लिए निर्देश देती हैं। X ने इसे ‘सेंसरशिप पोर्टल’ बताते हुए पारदर्शिता की कमी और अभिव्यक्ति के अधिकार के उल्लंघन का दावा किया था।
न्यायाधीश एम नागप्रसन्ना ने कहा कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19 महान है, लेकिन यह केवल नागरिकों को अधिकार प्रदान करता है। जो विदेशी कंपनी इसके तहत सुरक्षा की मांग करती है, वह इसका लाभ नहीं उठा सकती। अदालत ने X की याचिका को खारिज कर दिया।
इस मामले में X ने मार्च 2024 में याचिका दायर की थी, जिसमें कुछ खातों और पोस्ट्स को ब्लॉक करने के सरकार के आदेशों को चुनौती दी गई थी। यह विवाद खासकर उस ‘सहयोग’ पोर्टल के उपयोग को लेकर था, जो अक्टूबर 2023 में शुरू हुआ था।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह फैसला भारत में वैश्विक टेक कंपनियों के नियमन की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। इससे सरकार और प्लेटफॉर्म्स के बीच समन्वय में सुधार हो सकता है, लेकिन यह जरूरी है कि पोर्टल सिर्फ समन्वय और सूचना संग्रह का माध्यम बने। किसी भी बाध्यकारी कार्रवाई का अधिकार केवल सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 69A के तहत संबंधित अधिकारी के पास होना चाहिए।

भारत में कंटेंट हटाने और न्यायालय का फैसला
भारत में कंटेंट हटाने के आदेश पिछले कुछ वर्षों में तेजी से बढ़े हैं। किसान आंदोलन (2020-21) के दौरान सोशल मीडिया पर व्यापक गतिविधियों को नियंत्रण में रखने के लिए कई प्लेटफॉर्म्स पर सामग्री हटाई गई थी।
सहयोग पोर्टल के माध्यम से माइक्रोसॉफ्ट, गूगल, मेटा, शेयरचैट और लिंक्डइन जैसी कंपनियों ने सरकार के नोटिस मिलने के बाद कंटेंट हटाने की प्रक्रिया अपनाई। X ने फरवरी 2024 में कहा था कि वह कुछ खातों को रोक रही है, ताकि सरकार द्वारा लगाए गए संभावित दंड, जुर्माने और जेल की सजा से बचा जा सके।
इस फैसले से यह स्पष्ट हो गया है कि भारतीय न्यायालय इंटरनेट नियमन और टेक नीति को सिर्फ कानूनी दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि नीतिगत दृष्टिकोण से देख रहे हैं। X अब सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकती है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि उच्चतम न्यायालय संभवतः कर्नाटक उच्च न्यायालय की ही सोच को आगे बढ़ाएगा।
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विशेषज्ञों का कहना है कि अदालत ने यह स्पष्ट नहीं किया कि सरकार को पोर्टल के माध्यम से कंटेंट हटाने का अधिकार होना चाहिए या नहीं। न्यायालय आदेश की कॉपी आज जारी करेगा।
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