डॉ. दुव्वुरी सुब्बाराव ने गीतम यूनिवर्सिटी में दिया केंद्रीय बैंकिंग पर व्याख्यान

हैदराबाद, गीतम डीम्ड यूनिवर्सिटी हैदराबाद के स्कूल ऑफ बिजनेस द्वारा व्याख्यान का आयोजन किया गया। अवसर पर भारतीय रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर तथा अर्थशास्री डॉ. दुव्वुरी सुब्बाराव ने केंद्रीय बैंकों का समष्टि आर्थिक अधिदेश तथा दुविधाओं का समाधान : केंद्रीय बैंकिंग का भविष्य शीर्षक से दो विषयों पर विचार रखे।

डॉ. दुव्वुरी सुब्बाराव ने भारतीय रिज़र्व बैंक की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए केंद्रीय बैंकिंग को अब तक के सबसे महान आविष्कारों में से एक की संज्ञा दी। उन्होंने इसके महत्वपूर्ण कार्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि केंद्रीय बैंक देश की मौद्रिक नीति को नियंत्रित करने वाला सर्वोच्च वित्तीय संस्थान होता है। इसका मुख्य उद्देश्य अर्थव्यवस्था में स्थिरता बनाए रखना तथा आर्थिक विकास को बढ़ावा देना है। इसके महत्वपूर्ण कार्यों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि इसमें मुद्रा का मुद्रण और वितरण, मौद्रिक नीति तैयार करना, विनिमय दरों काप्रबंधन, वित्तीय संस्थानों और बाजारों का विनियमन, भुगतान और निपटान प्रणालियों की देखरेख, सरकारों और बैंकों के लिए बैंकर के रूप में कार्य करना, वित्तीय समावेशन को आगे बढ़ाना आदि शामिल है।

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आरबीआई के उद्देश्यों में मूल्य स्थिरता और आर्थिक विकास पर जोर

डॉ. दुव्वुरी सुब्बाराव ने इस बात पर बल दिया कि आरबीआई के मुख्य उद्देश्य मूल्य स्थिरता, विकास और रोजगार को सहारा देना और वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करना है। मूल्य स्थिरता को निम्न और स्थिर मुद्रास्फीति के रूप में परिभाषित करते हुए उन्होंने बताया कि मौद्रिक नीति और रेपो दर मुद्रास्फीति, उपभोग, निवेश और समग्र आर्थिक गतिविधि को किस प्रकार प्रभावित करती है। उन्होंने मुद्रा में विश्वास बनाए रखने के महत्व पर बल देते हुए कहा कि मुद्रास्फीति गरीबों पर सबसे बड़ा कर है। उन्होंने कहा कि अति मुद्रास्फीति और अपस्फीति दोनों ही आर्थिक कार्यप्रणाली को गंभीर रूप से बाधित कर सकते हैं। चूँकि मुद्रास्फीति की अपेक्षाएँ स्वत ही पूरी हो सकती हैं, इसलिए केंद्रीय बैंकों को इनका प्रबंधन बहुत सावधानी से करना चाहिए।

सरकार और केंद्रीय बैंक की संबंधित भूमिकाओं पर चर्चा करते हुए डॉ. दुव्वुरी सुब्बाराव ने कहा कि मूल्य स्थिरता मुख्य रूप से केंद्रीय बैंकों की जिम्मेदारी है, लेकिन आपूर्ति पक्ष के प्रभावों के लिए कर समायोजन या सब्सिडी जैसे राजकोषीय हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है। उन्होंने स्वतंत्र केंद्रीय बैंक की आवश्यकता पर बल दिया। डॉ. राव ने 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट तथा आरबीआई गवर्नर के रूप में अनुभव साझा करते हुए अशांत समय के दौरान विश्वसनीयता और शांत नेतफत्व के महत्व का उल्लेख किया। अवसर पर जीएसबी हैदराबाद की निदेशक डॉ. दिव्या कीर्ति गुप्ता, पीजी प्रोग्राम के अध्यक्ष प्रो. रणजी, कार्यक्रम समन्वयक डॉ. अजय, संकाय सदस्य व छात्र उपस्थित थे।

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