कर्म संतुलन के देवता चित्रगुप्त की आराधना का पर्व

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को भगवान चित्रगुप्त की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन ब्रह्मा की छाया से चित्रगुप्त का जन्म हुआ था, जो कलम-दावत की सहायता से समस्त जीवों के कर्मों का लेखा-जोखा रखते हैं। इसे मास्यधार पूजा भी कहते हैं। हिंदू धर्म में यह पर्व विशेष रूप से कायस्थ समाज द्वारा मनाया जाता है।
पूजा विधि
एक लकड़ी की चौकी पर पीले रंग का कपड़ा बिछाकर उस पर भगवान चित्रगुप्त की तस्वीर या मूर्ति स्थापित करें और उसके समक्ष घी का दीपक प्रज्वलित करें। भगवान को हल्दी, चंदन, फूल, फल, पंचामृत, मिठाई एवं भोग अर्पित करें। भगवान चित्रगुप्त की कथा सुनें और आरती करने के पश्चात भक्तों में प्रसाद का वितरण करें।
ये काम जरूर करें
इस पूजा में कलम, दवात और सफेद कागज जरूर रखें। कागज पर हल्दी से श्री गणेशाय नम लिख कर कुमकुम से ॐचित्रगुप्ताय नम: मंत्र 11 बार लिखें। इस कलम-दवात को सामान्य कार्यों में प्रयोग नहीं किया जाता है, बल्कि इसे संभालकर रखने की परंपरा है। इस मंत्र से भगवान चित्रगुप्त की प्रार्थना की जाती है-

मसिभाजनसंयुक्तं ध्यायेत्तं
च महाबलम्।
लेखिनीपट्टिकाहस्तं
चित्रगुप्तं नमाम्यहम्।।
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महत्व
भगवान चित्रगुप्त को जीवों के पाप-पुण्य का लेखा-जोखा रखने वाले देवता माना जाता है। यह पूजा ज्ञान और बुद्धि के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है।
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