मित्र का निर्णय

भगवान महावीर के समय एक नगर में दो सेठ शांतनु और जिनदत्त रहते थे। एक समय शांतनु को व्यापार में बहुत घाटा हुआ, जिससे उसकी आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर हो गई, तो उसने चोरी करने का मन बना लिया। वह अक्सर स्थानक में सामायिक करता था। एक दिन मौका देखकर उसने जिनदत्त के कोट से सोने का हार चुराया और बाजार में बेचने का निश्चय किया, लेकिन पत्नी ने पकड़े जाने पर बदनामी होने का डर बताकर हार को गिरवी रखने की सलाह दी।

शांतनु जिनदत्त के पास गया और उसके ही हार को गिरवी रखकर बदले में पाँच सौ रुपये देने की बात कही। पहले तो जिनदत्त ने रुपये देने में आना-कानी की, लेकिन अंत में दे दिये। जिनदत्त जान गया था कि यह हार उसी का है, किन्तु अनजान बना रहा। कुछ समय बाद शांतनु ने पैसे कमा लिए और ब्याज सहित रुपये लेकर जिनदत्त के घर गया और उसे रुपये देने लगा।

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-जैन जसराज देवड़ा धोका

जिनदत्त ने रुपये लेने से मना करते हुए कहा, मुझसे एक ग़लती हुई। मुझे मेरे धार्मिक भाई की आर्थिक स्थिति का ध्यान रखना चाहिए था। उसे समय पर सहायता करनी चाहिए थी ताकि वह चोरी करने को मजबूर न हो। दोनों सेठ भगवान महावीर के पास गये और अपनी गलतियों का प्रायश्चित किया।

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