देशी सामग्रियों का देना उपहार

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बेटा अपनी अम्मा से बोला-
पाँच दिनों के पर्व दिवाली पर पहनने के लिये पाँच साड़ियां लाऊंगा,
ऐसी-वैसी नहीं, अत्यंत महंगी, आकर्षक साड़ियां ही लेकर आऊंगा,
सारी नई साड़ियां अबके त्यौहार पर तुम्हें पहननी ही पड़ेंगी,
किसी भी प्रकार की बहानेबाजियां बिल्कुल भी नहीं चलेंगी।
हाँ, एक बात और, इस बार दीपावली पर आयातित फल,
चॉकलेट इत्यादि बटवाऊंगा,
परिजनों, परिचितों के बीच स्वदेशी
फल, मेवा, मिठाई आदि वितरित नहीं करवाऊंगा।
लोगबाग दाँतों तले ऊंगली दबाते रह जाएँगे,
हम लोगों की तारीफों के पुल बांधते रह जाएँगे।
इस बीच अम्मा बोलीं-
बहुतेरी नई-नई साड़ियाँ रखी हुई हैं मेरे पास,
मत लाना मेरे वास्ते कोई नया लिबास।
परंतु, कुछ बेसहारा महिलाओं के लिये अवश्य ले आना,
अपने हस्तों से किसी अनाथालय में जाकर उन्हें दे आना।
उन लाचार, तंगहाल माँओं, बहनों की आँखें खिल उठेंगी,
पावन दीप-पर्व पर उन सभी को आत्मिक शांति मिलेगी।
उन्हें उपहार देकर तुझे भी सुकून मिलेगा,
तेरे पुण्य का घड़ा भी कुछ-न-कुछ भरेगा।
एक बात मेरी समझ में बिल्कुल भी नहीं आई,
विदेशी सामान बांटने की बात मन में कैसे समाई?
तीस साल की जवानी में ही तेरी अक्ल सठिया गई?
आश्चर्य! शिक्षित होते हुए भी अक्ल घास चरने गई?
स्वदेशी त्यौहारों पर स्वदेशी चीजें ही वितरित करनी चाहिए,
विदेशियों को भी स्वदेशी वस्तुएँ देकर देश की आन बढ़ानी चाहिए।
विदेशी पदार्थ भेंट में मिलने पर असली देशभक्त कभी खुश नहीं हुआ करते,
उल्टे, देने वाले को ख़ूब खरी-खोटी सुनाकर नज़राना वापस कर दिया करते।
लोभी, गद्दार देशवासी ही फोकट में आयातित
सामान मिलने पर प्रसन्न हो जाया करते,
मुफ्त का चंदन घिस मेरे नंदन वाली बात,
वे पाखंडी देशभक्त चरितार्थ किया करते।
गर देश से है शत-प्रतिशत प्यार,
करना चाहता है भारतवर्ष का उद्धार,
विदेशी सामानों का करना बहिष्कार,
केवल देशी सामग्री देना उपहार।

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-महेन्द्र अग्रवाल, कोलकाता

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