दीपावली पर होती है माता काली पूजा

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पूरे देश में धूमधाम से दिवाली का पर्व मनाया जा रहा है। दिवाली पर जहां उत्तर भारत में माता लक्ष्मी और गणेशजी की पूजा की जाती है, वहीं पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और असम में देवी काली की पूजा करने का विधान है। पश्चिम बंगाल में दशहरे के 6 दिन बाद यानी शरद पूर्णिमा को माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है और दिवाली पर माता काली की पूजा का महत्व है।

अमावस्या पर काली पूजा

दिवाली, प्रदोष और अमावस्या दोनों के संयोजन से मनाई जाती है। शास्त्र के अनुसार, लक्ष्मी पूजा प्रदोष काल में ही करनी चाहिए। दिवाली की रात्रि कार्तिक अमावस्या होती है। अमावस्या की रात्रि का स्वामी चंद्र शून्य होता है और अंधकार की देवी महाकाली उसी शक्ति का स्वरूप हैं। इस रात्रि में जब संपूर्ण आकाश तमोमय होता है, तब साधक माँ काली की आराधना द्वारा उस अंधकार पर विजय प्राप्त करता है।

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दरअसल, राक्षसों का अंत करने के बाद महाकाली माता का क्रोध शांत नहीं हो रहा था तो भगवान शंकर स्वयं माता के चरणों के नीचे लेट गए थे। भगवान शंकर के स्पर्श मात्र से ही महाकाली माता का क्रोध शांत हो गया। इसी को याद करते हुए, उनके शांत स्वरूप में माता लक्ष्मी की पूजा होने लगी, जबकि कुछ राज्यों में महाकाली के रौद्ररूप की पूजा करते हैं।

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