गुरु पूर्णिमा: आदि गुरु की परंपरा को सम्मान देने का पर्व

गुरु पूर्णिमा, आषाढ़ पूर्णिमा या व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। इसे महर्षि वेदव्यास की जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। वेदव्यास ने वेदों का संकलन, महाभारत और पुराणों की रचना की थी। हिंदू परंपरा में उन्हें सर्व गुरु माना जाता है। हिंदू परंपरा में यह दिन बहुत शुभ माना जाता है।
इसका सांस्कृतिक एवं धार्मिक महत्व है।मालूम हो कि योग विज्ञान की शुरुआत आदि गुरु शिव द्वारा सप्त ऋषियों को प्रदान किये गये ज्ञान से हुई थी। उसी दिन प्रथम गुरु की स्थापना हुई। इस तरह यह दिन गुरु पूर्णिमा के रूप में जाना गया। गुरु पूर्णिमा का गहन रिश्ता बौद्ध धर्म से भी है।
मालूम हो कि गौतम बुद्ध का पहला धर्मोपदेश सारनाथ में इसी दिन हुआ, माना जाता है। जैन धर्म में भी इसी दिन महावीर स्वामी ने अपने पहले शिष्य को दीक्षा दी थी। गुरु पूर्णिमा की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्ता बहुत ज्यादा है। गुरु-शिष्य परंपरा वाले हमारे देश में गुरु पूर्णिमा को प्राचीन काल से ही बहुत महत्व दिया गया है।
श्रद्धा, पूजन और गुरु-भक्ति का पर्व
हिंदू समाज की तो गुरु-शिष्य परंपरा रीढ़ ही है। गुरु ज्ञान, संस्कार और आत्मा के विकास का मार्गदर्शन करते हैं। इस दिन शिष्य अपने जीवित गुरुओं का सम्मान, उनके चरण-स्पर्श करके व्यक्त करते हैं। जिन गुरुओं की मृत्यु हो चुकी होती है, उनके शिष्य इस दिन उन्हें श्रद्धा और आभारपूर्वक याद करते हैं।
स्कूलों, कॉलेजों तथा शैक्षिणक संस्थानों में गुरु पूर्णिमा को खूब रौनक रहती है। इस दिन विद्यार्थी अपने गुरुओं के प्रति सम्मान और श्रद्धा व्यक्त करने के लिए कई तरह के सांस्कृतिक कार्पाम करते हैं। धार्मिक और आध्यात्मिक तौर-तरीके से इस दिन को मनाने वाले लोग इस दिन स्नान व दान को महत्व देते हैं।
पूजा और सेवा से जताई जाती है श्रद्धा
गुरु पूर्णिमा के दिन लोग अपने गुरुओं के सम्मान में पवित्र नदियों पर स्नान करते हैं। अपने गुरुओं को याद करते हैं, उनके प्रति श्रद्धा व सम्मान व्यक्त करते हैं। गुरुओं के सम्मान में जरूरतमंदों को दान देते हैं। इससे उन्हें पुण्य की प्राप्ति होती है। इस दिन पूजा, अर्चना और गुरु-पूजन ये प्रमुख कार्य किए जाते हैं।
लोग सुबह स्नान करके सफेद वस्त्र पहनते हैं। भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश और गुरु के चित्रों के सामने श्रद्धा से सिर नवाते हैं। इनकी तस्वीरों को सफेद वस्त्र पर रखकर पुष्प, चंदन, अगरबत्ती, दीप तथा फल आदि अर्पित करते हैं। गुरु-चरणों पर जलाभिषेक करते हैं और शिष्य परंपरा की निबाह के लिए गुरु के चरणों के पानी को अमृत मानकर ग्रहण करते हैं। इस दिन गुरु को तिलक लगाकर और उनकी गले में माला डालकर सम्मान किया जाता है। शिष्यों द्वारा गुरु की याद कीर्तन और उचित स्थानों पर सत्संग तथा हवन भी किया जाता है। इस दिन गीता और व्यास पुराण आदि का पाठ करते हैं।

गुरु भक्ति, आत्मज्ञान और मार्गदर्शन का पर्व
अपने जीवित गुरुओं को इस दिन शिष्य कोई दक्षिणा एवं उपहार देते हैं। यह गुरु भक्ति और गुरुओं के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक है। उपहार में कोई विशेष पुस्तक, गुरु को पसंद खाने-पीने की विशेष चीज, कोई वस्त्र या कोई ऐसी सेवा हो सकती है, जिससे गुरु प्रसन्न हों और अपने शिष्य के प्रति प्यार बरसाएं। ध्यान व साधना में रत साधु-संन्यासी भी इस दिन को बहुत खास तरीके से मनाते हैं।
इस दिन साधु संन्यासी विशिष्ट सत्संग का हिस्सा बनते हैं। श्रवण ज्ञान प्राप्त करते हैं और गुरु शिष्य परंपरा को सम्मान प्रदान करते हैं। इस दिन के साथ कई कथाएं जुड़ी हैं। इसी दिन महर्षि व्यास का जन्म हुआ था। इसी दिन आदियोगी शिव ने ज्ञान की प्रथम डिग्री सप्त ऋषियों को दी थी और योग तथा गुरु पंरपरा की शुरुआत की थी। इसी दिन गौतम बुद्ध ने सारनाथ में पहला उपदेश दिया था। इसी दिन भगवान महावीर ने भी अपने अनुयायियों को दिव्य उपदेश दिए थे।
आध्यात्मिक उन्नति और सामाजिक सम्मान का पर्व
गुरु पूर्णिमा के सामाजिक पहलू भी हैं। इस दिन स्कूलों व विश्वविद्यालयों में शिक्षकों को सम्मानित किया जाता है। विद्यार्थियों और नवोदितों के लिए गुरु पूर्णिमा मार्गदर्शन के नये अवसर लाती है। कई आध्यात्मिक संस्थाएं आश्रम और मठ इस दिन गुरु दीक्षा या उपनयन समारोहों का आयोजन करते हैं। गुरु पूर्णिमा मनाने के कई लाभ हैं।
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गुरु की कृपा से आत्मज्ञान और मार्गदर्शन मिलता है, मानसिक शांति मिलती है, आध्यात्मिक उन्नति होती है, गुरु शिष्य संबंध दृढ़ होते हैं और समुदायों में मेल बढ़ता है। गुरु पूर्णिमा मनाने से नैतिक शिक्षा का संचार होता है और जीवन में गुरु के आदर्शों से आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है। इसलिए गुरु पूर्णिमा एक धार्मिक या आध्यात्मिक उत्सव भर नहीं, यह गुरु-शिष्य परंपरा की रीढ़, आस्था-कृतज्ञता, आध्यात्मिक विकास और सामाजिक सम्मान का महापर्व है। अत आप भी इस दिन अपने गुरु का मन की गहराइयों और लबरेज कृतज्ञता से सम्मान करें।
–आर.सी.शर्मा
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