हैदराबाद : बहाल हो रहा है बामरुकुनुद्दौला तालाब का वैभव

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हैदराबाद, पुराने शहर का ऐतिहासिक बामरुकनुद्दौला तालाब कचरे के ढेर से बाहर निकलकर पुराने प्राकृतिक सौंदर्य की बहाली की ओर बढ़ रहा है। हैद्रा आयुक्त ए.वी. रंगनाथ ने तालाब के जीर्णोद्धार कार्यों का निरीक्षण किया। उन्होंने बताया कि नवंबर में यह कार्य पूरे कर लिये जाएँगे। आयुक्त ने सदियों पुराने इस तालाब के भावी पीढ़ियों के लिए राष्ट्रीय धरोहर के रूप में संरक्षित करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने बताया कि पिछले साल अगस्त में तालाब पर से अतिक्रमण हटाए गए थे। 18 एकड़ से अधिक क्षेत्रफल वाले इस तालाब का क्षेत्रफल पहले केवल 4.12 एकड़ तक सीमित था, लेकिन अब अतिक्रमण हटाकर इसे पूर्ण रूप से विकसित किया जा रहा है।

अब तालाब का 18 एकड़ क्षेत्र और विस्तारित किया गया है। बाढ़ नियंत्रण के साथ भूजल की प्रचुरता सुनिश्चित करने हेतु इसका विकास किया जा रहा है। आयुक्त ने बाढ़ के पानी को तालाब में प्रवेश करने और पानी भर जाने पर उसे निकालने के लिए बनाए गए इनलेट और आउटलेट का निरीक्षण किया। तालाब के चारों ओर एक बांध और फुटपाथ बनाए जा रहे हैं। तालाब के चारों ओर बाड़ भी लगाई जा रही है।

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बामरुकनुद्दौला तालाब: इतिहास, सौंदर्य और नवसंरक्षण

बच्चों के खेलने के लिए दोनों तरफ मैदान बनाए जा रहे हैं। बुजुर्गों के लिए बैठने की व्यवस्था भी की जा रही है। साथ ही पार्क का निर्माण किया जा रहा है। इसमें ओपन जिम, तालाब के चारों ओर सड़कें, हरियाली जैसी सुविधाओं का विकास भी किया जा रहा है। ऐतिहासिक स्मारकों को संरक्षित करने के लिए कड़े कदम उठाए जा रहे हैं। आउटले पर गेट फिर से लगाए जा रहे हैं। निगरानी को मज़बूत करने के लिए सीसीटीवी कैमरे भी लगाए जा रहे हैं।

आयुक्त ने बताया कि शहर का इतिहास 435 साल से भी ज़्यादा पुराना है। यहाँ हर कदम पर ऐतिहासिक स्मारक और कई विशेषताएँ हैं। 1770 में बामरुकनुद्दौला तालाब का निर्माण नवाब रुक्नु-उद-दौला ने करवाया था, जो हैदराबाद के तीसरे निज़ाम सिकंदर जाह के प्रधानमंत्री थे। ऐतिहासिक अभिलेखों के अनुसार, यह तालाब सौ एकड़ में फैला हुआ था। कहा जाता है कि राजेंद्रनगर, आरामघर और काटेधन इलाकों से आने वाला बाढ़ का पानी इस तालाब में संरक्षित किया जाता था। कहा जाता है कि निज़ामों के समय में बादशाह मीरालम तालाब का इस्तेमाल करते थे और रानियाँ बामरुकनुद्दौला तालाब का।

तालाब में जंगली पेड़ और शाखाएँ लगाई जाती थीं और इसके नीचे बने कुएँ से आने वाले झरने के पानी का इस्तेमाल पीने के लिए किया जाता था। यहाँ का पानी औषधीय गुणों के लिए भी जाना जाता था। तालाब के आसपास कई सुगंधित फूलों के पौधे हुआ करते थे। जब फूल तालाब में गिरते थे, यहाँ के पानी का इस्तेमाल इत्र बनाने के लिए किया जाता था।

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