अंतरराष्ट्रीय अनुवाद दिवस: जहां भाषाएँ टकराती हैं, वहां अनुवादक पुल बनता है

अनुवाद एक ऐसी कला है, जो शब्दों को नहीं, बल्कि आत्माओं को एकाकार करती है। यह महज एक भाषा से दूसरी भाषा में शब्दों का हस्तांतरण नहीं, बल्कि विचारों, भावनाओं और संस्कृतियों को उनकी मूल गहराई के साथ दूसरी दुनिया तक पहुंचाने का पवित्र प्रयास है। हर साल 30 सितंबर को मनाया जाने वाला अंतरराष्ट्रीय अनुवाद दिवस इस कला की महत्ता को रेखांकित करता है और हमें इसे संजोने का अवसर प्रदान करता है।

यह दिन उन अनाम नायकों को सम्मानित करने का पर्व है, जो भाषा की दीवारों को तोड़कर मानवता को एकता के सूत्र में बांधते हैं। यह न केवल अनुवादकों का उत्सव है, बल्कि उन सभी की गाथा है, जो भाषा के माध्यम से विश्व को अधिक संवेदनशील और समावेशी बनाने में योगदान देते हैं। अनुवाद का इतिहास मानव सभ्यता जितना ही प्राचीन है। प्राचीन काल से ही लोग संवाद की खाई को पाटने के लिए अनुवाद का सहारा लेते आए हैं।

चौथी शताब्दी में संत जेरोम ने बाइबिल का लैटिन में अनुवाद कर वुल्गेट की रचना की, जो न केवल धार्मिक, बल्कि सांस्कृतिक और भाषाई एकीकरण की आधारशिला बनी। आज अनुवाद का दायरा धार्मिक या साहित्यिक ग्रंथों से कहीं आगे निकल चुका है। यह वैश्वीकरण, शिक्षा, विज्ञान, व्यापार और मानवीय रिश्तों की नींव बन गया है, जो दुनिया को एक साझा मंच पर लाता है।

भाषाओं और संस्कृतियों को जोड़ने का सेतु

यदि अनुवाद न होता, तो क्या उपनिषदों और भगवद्गीता जैसे भारतीय ग्रंथ विश्व मंच पर अपनी अमिट छाप छोड़ पाते? क्या रवींद्रनाथ टैगोर की कविताएं या प्रेमचंद की कहानियां वैश्विक साहित्य का अभिन्न हिस्सा बन पातीं? अनुवाद ने न केवल भारतीय साहित्य को विश्व तक पहुंचाया, बल्कि शेक्सपियर, दोस्तोयेव्स्की और गाब्रियल गार्सिया मार्केज जैसे साहित्यकारों को भारतीय पाठकों के दिलों तक लाया।

यह एक ऐसा सेतु है, जो विचारों और भावनाओं का निर्बाध आदान-प्रदान करता है। अनुवादक इस सेतु के कुशल शिल्पकार हैं, जो प्रत्येक शब्द और भाव को इस तरह तराशते हैं कि वह नई भाषा में अपनी मूल आत्मा के साथ जीवंत हो उठता है।अनुवाद एक ऐसी कला है, जो शब्दों को नहीं, बल्कि दिलों को जोड़ती है। यह केवल शब्दों का एक भाषा से दूसरी में रूपांतरण नहीं, बल्कि संस्कृतियों, भावनाओं और इतिहास को उनकी मूल संवेदनशीलता के साथ जीवंत करने का सृजनात्मक प्रयास है।

उदाहरण के लिए, हिंदी का शब्द आत्मीयता अपने आप में एक गहरे मानवीय बंधन का प्रतीक है, जिसे अंग्रेजी के वार्म्थ या अफेक्शन जैसे शब्द पूरी तरह व्यक्त नहीं कर पाते। अनुवादक को न केवल दोनों भाषाओं का गहन ज्ञान चाहिए, बल्कि उसे संस्कृतियों की सूक्ष्म बारीकियों को समझकर यह तय करना होता है कि कब शाब्दिक अर्थ को प्राथमिकता देनी है और कब भावनात्मक गहराई को। यह एक तार पर चलने जैसा संतुलन है, जहां रचनात्मकता और सटीकता का मेल अनिवार्य है।

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डिजिटल युग में मानव अनुवादक की महत्वपूर्ण भूमिका

डिजिटल युग ने अनुवाद की भूमिका को और भी विस्तृत कर दिया है। मशीन अनुवाद और कृत्रिम बुद्धिमत्ता, जैसे गूगल ट्रांसलेट, त्वरित अनुवाद तो प्रदान करते हैं, पर क्या वे किसी कविता की लय, साहित्य की गहराई, या लोककथा की आत्मा को पकड़ सकते हैं? नहीं। मशीनें शब्द बदल सकती हैं, लेकिन संस्कृति की बारीकियां, भावनाओं का प्रवाह, और मानवीय संवेदनाएं केवल एक मानव अनुवादक ही समझ सकता है।

उदाहरण के लिए, तमिल कवि तिरुवल्लुवर के तिरुक्कुरल का अनुवाद करते समय, अनुवादक को भाषा के साथ-साथ तमिल दर्शन, नैतिकता और सांस्कृतिक गहराई को भी आत्मसात करना पड़ता है। यहीं मानव अनुवादक की अपरिहार्य भूमिका उभरती है। अनुवाद केवल साहित्य तक सीमित नहीं, बल्कि यह विज्ञान, चिकित्सा, कानून और राजनीति जैसे क्षेत्रों में भी आधारशिला है।

कोविड-19 महामारी के दौरान, विश्व स्वास्थ्य संगठन की सलाह को विभिन्न भाषाओं में अनुवादित कर अनुवादकों ने लाखों लोगों तक जीवनरक्षक जानकारी पहुंचाई। अंतरराष्ट्रीय समझौते, व्यापारिक अनुबंध और वैज्ञानिक शोध पत्रों का अनुवाद वैश्विक सहयोग को सशक्त बनाता है। अनुवादक इन क्षेत्रों में एक अदृश्य, परन्तु अपरिहार्य शक्ति की तरह कार्य करते हैं, जो दुनिया को एकजुट रखते हैं।

भाषाओं का सेतु और अनुवादकों का योगदान

अंतरराष्ट्रीय अनुवाद दिवस हमें याद दिलाता है कि भाषा केवल संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि एक पहचान, एक संस्कृति और एक दृष्टिकोण है। भारत जैसे बहुभाषी देश में, जहां 22 आधिकारिक भाषाएं और सैकड़ों बोलियां हैं, अनुवाद एकता का प्रतीक बन जाता है। जब एक बंगाली कहानी तेलुगु में, या एक मलयालम कविता पंजाबी में अनुवादित होती है, तो यह केवल शब्दों का आदान-प्रदान नहीं, बल्कि संस्कृतियों का हृदयस्पर्शी संवाद है। यह विविधता को न केवल समझने, बल्कि उसका उत्सव मनाने की प्रेरणा देता है।

फिर भी, अनुवादकों को वह सम्मान अक्सर नहीं मिलता, जिसके वे सच्चे हकदार हैं। वे पर्दे के पीछे कार्य करते हैं और उनके योगदान को प्राय अनदेखा कर दिया जाता है। कितनी बार हम किसी अनुवादित पुस्तक को पढ़ते समय अनुवादक का नाम याद रखते हैं? अंतरराष्ट्रीय अनुवाद दिवस हमें इस ओर ध्यान देने को प्रेरित करता है। यह हमें हर अनुवादित पंक्ति के पीछे छिपी मेहनत, संवेदनशीलता और रचनात्मकता को पहचानने का आह्वान करता है।

प्रो.आरके जैन अरिजीत
प्रो.आरके जैन ‘अरिजीत’

यह दिन हमें यह भी सिखाता है कि भाषा को समझना, एक-दूसरे को समझने का मार्ग है। जब हम किसी दूसरी भाषा के विचारों को पढ़ते हैं, तो हम उस भाषा से जुड़े लोगों, उनकी संस्कृति और उनके दृष्टिकोण को भी आत्मसात करते हैं। यह हमें अधिक सहानुभूतिपूर्ण, अधिक समावेशी और सच्चे अर्थों में वैश्विक बनाता है। अनुवाद केवल एक तकनीकी प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक मानवीय सेतु है, जो हमें एक-दूसरे के करीब लाता है। हर भाषा एक खिड़की है, जो हमें एक नई दुनिया से रूबरू कराती है और अनुवादक वे कारीगर हैं, जो इन खिड़कियों को खोलते हैं।

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