लेश्या ज्ञान, स्वयं समाधान

लेश्या एक ऐसा विषय है जिसका समग्र स्वरूप समझ लें, तो किसी भी समस्या के समाधान के लिए किसी के पास जाने की आवश्यकता नहीं है। आप स्वयं ही अपने प्रश्नों के उत्तर प्राप्त कर सकते हैं। किस लेश्या से समस्या उत्पन्न होती है तथा किस लेश्या से समाधान प्राप्त होता है? कृष्ण व नील कपोत लेश्या से समस्या उत्पन्न होती है और तेजस्वी, पद्म और शुक्ल लेश्या से समाधान प्राप्त होता है। इनमें अंतर मात्र समाधान मिलने की गति का है।

शुक्ल लेश्या की सबसे तीव्र, पद्म लेश्या की थोड़ी कम तथा तेजस्वी लेश्या की उससे भी कम है अर्थात् समाधान क्रमानुसार तीव्रतम होता है। एक सूत्र सदा स्मरण रहे कि किसी भी परिस्थिति के छ दृष्टिकोण होते हैं, तो किसी भी समस्या के के छ हल होते हैं, आवश्यकतापूर्ति के छ उपाय होते हैं। मंथरा की बातों में उलझकर कैकेयी कृष्ण लेश्या में पहुँच गई थी।

अशुभ सोच छोड़कर शुभ लेश्या की ओर बढ़ने का सरल मार्ग

उस समय वह उस अशुभ विचार से बाहर निकलने का विकल्प ढूँढ सकती थी, अपनी लेश्या को बदल सकती थी। उसके समक्ष अन्य विकल्प थे। हर किसी के पास दूसरे विकल्प होते हैं। अपनी साधारण अवधारणाओं से बाहर आएँ तथा नई अवधारणाओं के लिए तत्पर रहें। उचित विचार की ओर बढ़ेंगे तो शुभ को आमंत्रण देंगे, कैकेयी की तरह सर्वनाश के मार्ग पर नहीं चलेंगे। तीर्थंकर महावीर ने समस्या का समाधान करने के पाँच मार्ग बताए हैं।

  • उत्तरीकरणेणं- भीतर की दुर्बलता को सबलता में बदलें।
  • पायच्छित्तकरणेणं- शक्ति अत्यधिक तो उसका परिष्कार करें।
  • विसोहीकरणेणं- मैल है तो उसकी सफाई करें।
  • विसल्लीकरणेणं- भीतर कोई काँटा है तो उसे निकाल फेंके।
  • पावाणं कम्माणं निग्घाएण ठाए हैं- पूर्व जन्म के कुछ प्रारब्ध कर्म हैं तो उन्हें भी समाप्त करें।

समाधान ढूँढने का दृष्टिकोण आपके पास है- कर्ज, रोग या रिश्तों के संदर्भ में। यदि आप समाधान ढूँढने की वृत्ति रखेंगे, तो समाधान अवश्य प्राप्त होंगे। समाधान ढूंढते समय यदि आप नई समस्या को जन्म देते रहेंगे, तब समाधान मिलकर भी नहीं मिलेंगे। यदि आप अशुभ लेश्या से बाहर नहीं निकल पाए तब रिश्तों, क्रिया, संक्रमण, जानकारी, नियोजन आदि में समस्या रहेगी। शुभ लेश्या की ओर कैसे बढ़ें?

शुक्ल लेश्या का मार्ग-उलाहना नहीं, सिर्फ समाधान

परिवार एवं स्वयं के विचार तथा चिंतन की पद्धत्ति में बदलाव करें। सर्वप्रथम तेजस्वी लेश्या की वृत्ति को अपनाएं और शुक्ल लेश्या में पहुँचने का लक्ष्य रखें। यदि आपको शुक्ल लेश्या में पहुँचना है तो सरल-सा मार्ग है- अट्टरूद्दणि वज्जित्ता, धम्मसुक्काणि झायए। उत्तराध्ययन सूत्र 34.31 अर्थात् आर्त तथा रौद्र ध्यान न करें। धर्म ध्यान तथा शुक्ल ध्यान में रहें। शुक्ल लेशी का स्वभाव है कि वे उलाहना नहीं देते हैं। उनका सारा ध्यान समाधान पर होता है। आपको भी ऐसा ही करना है। यदि कोई कमी है तो बिना उपालम्भ दिए उस कमी की पूर्ति करें।

प्रवीण ऋषि

किसी से कचरा निकालना छूट गया है तब बिना शिकायत किए स्वयं आगे बढ़कर कचरा निकाल दें। ऐसी प्रवृत्ति रखने वाले साधक आर्त ध्यान तथा रौद्र ध्यान से मुक्त होने लगते हैं। अब उनका संपूर्ण ध्यान केवल समाधान पर रहता है। धर्म ध्यान यानि समाधान, शुक्ल ध्यान यानि सिद्धि। वह ऐसे समाधान निकालते हैं, जहाँ शत-प्रतिशत सफलता मिलती है। ऐसा जिसका चित्त है, उनकी शुक्ल लेश्या है। उनका चित्त प्रसन्न है, प्रशांत है।

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