नवरात्रि हैं आत्म-परिवर्तन के नौ सोपान


आश्विन मास में मनाए जाने वाले नवरात्रि पर्व के समय वातावरण में चारों ओर आनंद और उल्लास की लहर दौड़ पड़ती है।बाज़ार सज उठते हैं, घर-आंगन सजे-धजे दिखाई देते हैं और समस्त समाज नौ दिनों की भक्ति और उत्सव की तैयारी में डूब जाता है। हर ओर रंग, संगीत और प्रार्थना का माहौल होता है, लेकिन इस भव्यता के बीच एक गूढ़ प्रश्न चुपचाप सिर उठाता है कि आखिर नवरात्रि का वास्तविक अर्थ क्या है? क्या यह केवल परंपराओं और अनुष्ठानों तक ही सीमित है?
हम सभी नवरात्रि के बाहरी रूप से अच्छी तरह परिचित हैं, जैसे- श्रद्धा पूर्वक कलश की स्थापना करना, नौ दिनों तक अखंड दीप जलाना, व्रत-उपवास का पालन करना, गरबा और डांडिया में भाग लेना तथा छोटी कन्याओं का पूजन करना आदि। इन सभी प्रथाओं के पीछे छिपा संदेश क्या है? जिस आदि शक्ति माता की हम आराधना करते हैं, वास्तव में वह हमें क्या सिखाना चाहती हैं? यदि हम दैवी कथाओं पर मनन करें तो उनका गूढ़ संदेश स्पष्ट होता है। उदाहरण के लिए, माँ दुर्गा का महिषासुर का वध केवल एक पौराणिक घटना भर नहीं है।
प्रतीकात्मक रूप से महिषासुर अज्ञान और जड़ता का प्रतीक है। इसी प्रकार मधु और कैटभ वासना और द्वेष के प्रतीक हैं, जबकि शुम्भ और निशुम्भ अहंकार और ईर्ष्या का प्रतिनिधित्व करते हैं। स्मरण रहे! ये कोई बीते युग के राक्षस मात्र नहीं हैं, बल्कि आज भी मनुष्य के अंतकरण में मौजूद नकारात्मक प्रवृत्तियों के रूप हैं। इस दृष्टि से माँ दुर्गा केवल शस्त्रधारी देवी नहीं हैं। उनका तीसरा नेत्र विवेक और प्रज्ञा का प्रतीक है, उनकी अनेक भुजाएँ साहस, धैर्य, करुणा और सहनशीलता जैसे गुणों की प्रतिनिधि हैं।

नवरात्रि: आत्मचिंतन और आत्मशुद्धि का अवसर
अत: नवरात्रि का असली संदेश यही है कि मानव की प्रगति दूसरों को परास्त करने से नहीं, बल्कि अपने भीतर के दोषों पर विजय पाने से होती है। इसीलिए माँ दुर्गा की विजय वास्तव में गुणों की दुर्गुणों पर विजय है। आज की तेज़ रफ़्तार दुनिया में, जहाँ प्रलोभन और व्याकुलता हर ओर फैली है, ऐसे समय में आत्मचिंतन का महत्व और भी बढ़ जाता है। ऐसे समय में नवरात्रि हमें ठहरने व रुककर अपने जीवन को मूल्यों से पुन जोड़ने का अवसर देती है।
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यदि इन नौ दिनों में हम किसी एक गुण, जैसे-धैर्य, दयालुता या आत्मसंयम का भी अभ्यास करें तो इस त्योहार की आत्मा जीवंत हो उठती है। हमें नवरात्रि मनाते समय सतही परंपराओं से आगे बढ़ना होगा। इन नौ दिनों को आत्म परिवर्तन के नौ सोपानों में बदलना होगा। अपने भीतर छिपी दुर्गा शक्ति को जागृत करना होगा। सरस्वती रूपी ज्ञान को अपनाना होगा और लक्ष्मी रूपी मूल्यों को अपने जीवन में आमंत्रित करना होगा। नवरात्रि पर्व इस भावना के साथ मनाई जाए तो वह जीवन जीने की एक शैली बन जाती है।

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