जीवन को धर्म में लगाने वाला ही सच्चा साधक : भक्तिरत्नसूरीजी

हैदराबाद, इन्द्रधनुष और आकाश की बिजली के समान यह मानव जीवन है। सच्चा साधक वही है, जो समय रहते शरीर और संसार के पदार्थों की नश्वरता को समझते हुए जीवन को धर्म की राह में लगा लेता है। उक्त उद्गार गोशामहल स्थित शंखेश्वर भवन में श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ जैन संघ के तत्वावधान में आचार्य भक्तिरत्नसूरीश्वरजी म.सा. ने व्यक्त किए। म.सा. ने कहा प्रभु महावीर ने श्री उत्तराध्ययन सूत्र के चौंतीसवें लेश्या अध्ययन में छह प्रकार की लेश्याओं की विवेचना किया है। इनमें प्रथम तीन अशुभ फल प्रभाव वाली और अन्तिम तीन शुभ प्रशस्त प्रभाव वाली हैं।
जिस लेश्या में आयुष्य का बंध होता है, मरते वक्त जीव में वही लेश्या के परिणाम रहते हैं। म.सा. ने कहा कि मन वचन काया की कषाय प्रवृत्ति को लेश्या कहते हैं। पाप का सम्बन्ध मन से है। म.सा. ने कहा कि हमारा भाव अच्छा तो प्रभाव भी अच्छा होता है। संसार के जितने भी पदार्थ हैं, वह सब अनित्य, नाशवान, क्षणभंगुर हैं। एक हमारी आत्मा ही सदा शाश्वत नित्य है। जन्म के साथ मृत्यु निश्चित है। आप घड़ी, कैलेंडर बदल सकते हैं, पर समय को नहीं। इन्द्रधनुष और आकाश की बिजली के समान यह मानव जीवन है।

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प्रचार संयोजक जसराज देवड़ा धोका ने बताया कि भक्तिरत्नसूरीश्वरजी म.सा. ने भक्तिदर्शनविजयजी, भाग्यरत्नविजयजी म.सा. एवं साध्वी प्रियदरशिताश्रीजी आदि ठाणा सकल संघ के साथ कांतिलाल नथमल भंडारी के निवास स्थान पर पगलिया किया। धर्म सभा में कांतिलाल भंडारी परिवार के सदस्य, पारसमल ढेलड़िया, किशन लुंकड़, दिनैश छत्रगोत, बाबूलाल सालेचा व अन्य उपस्थित थे।
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