आत्म विजेता का मार्ग है धर्म : साध्वी जयश्रीजी


हैदराबाद, मनुष्य जीवन में ही धर्म अपनाने का अलौकिक अवसर मिलता है। आत्मा नित्य अविनाशी शाश्वत है, यह न कभी जन्म लेती है और न कभी मरती है। आत्मा को न शस्त्र काट सकते हैं और न अग्नि जला सकती है। न ही पानी गला सकता है और न ही वायु आत्मा को सुखा सकती है। व्यवहार लोक में जन्म मरण जो देखा जाता है, वह शरीर का होता है, आत्मा का नहीं।
उक्त उद्गार श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ ग्रेटर हैदराबाद के तत्वावधान में काचीगुड़ा स्थित श्री पूनमचंद गांधी जैन स्थानक में चातुर्मासिक धर्म सभा को संबोधित करते हुए श्रमण संघीय राजस्थान वीरांगना साध्वी जयश्रीजी म.सा आदि ठाणा-3 ने व्यक्त किये। संघ के कार्याध्यक्ष विनोद कीमती द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, साध्वी जयश्री म.सा ने कहा कि यह आत्मा जब अपने शुभ कर्मों में प्रवृत्त होती है, तब शुभ कर्मों से सुख की पुण्य अर्जन होता है।

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जब अशुभ कर्म होते हैं तब दुख पापों का सृजन होता है। सुखी बनने के लिए धर्म रूपी नौका में सवार होना ही पड़ेगा। अपनी इच्छाओं को सीमित करना ही होगा। साध्वी राजश्री म.सा ने अपने संबोधन में कहा कि जीव हृदय में आत्मा का आलोक उपस्थित हो जाता है, वह आत्मा सुंदर उपक्रम प्राप्त करने में सफल हो जाती है। साध्वी समीक्षाश्री म.सा ने कहा कि धर्म आत्मा विजेताओं का धर्म है, इस विषय पर सुंदर गीतिका को अपने भाव भी व्यक्त किये। धर्म सभा का संचालन संघ के कोषाध्यक्ष धर्मीचंद भंडारी ने किया और संघ व चातुर्मास की गतिविधियों का विवरण पेश किया।
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